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स्वतंत्र लेखन
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फिरोजा

सांझ का समय सुर्य पुर्व से निकल कर पश्चिम के छोर पर अपनी प्रेयसी की बांहो में विश्राम के लिये व्याकुल तेजी से भागा हुआ चला जा रहा था ,फिरोजा महल के झारोखे से सुर्य के शांत हो चुके शीतल गोले को निहार कर इक छवि बुन रही थी ,,
उसको गुलाबी होठो पर एक थिरकन थी ...
सिर्फ कल्पना से ही उसके रोम पुंजो में हलचल सी मच जाती थी ,,,
फिरोजा मुगल बादशाह अल्लाउदीन खिजली की पुत्री थी .....
वह अपनी कल्पना की स्वप्निल दूनिया में खोई ही थी की किसी आहट से उसका ध्यान भंग हुआ .....
ज्लद ही उसने अपने अस्त व्यस्त वस्त्रो को सही किया और दौड़ कर छज्जे पर आ गयी ......
वह ऐसा दिखाने का नाटक करने लगी जैसे सब कुछ समान्य हो ...
तभी एक दासी द्वारा उसके पिता के आने का समाचार मिलता हैं !
"आदाब अब्बू "
हम जीत गये बेटी काफिर आज फिर हार गये ,,
खिजली ने फिरोजा को गले लगाते हुये कहा ....
अब्बू काफिरो में अब वीर नही रहें लगता हैं ....
फिरोजा ने अभी बात पूरी न कि थी ...
खिजली बोल पड़ा"
नही मेरी बच्ची वो दस होते हैं और हम हजार फिर भी हमें छल करना पड़ता हैं उनसे ....
काफिरो की तलवार के वार से सैनिक घोडे सहित दो टूकडो में बट जाता हैं ,,,,
यह बोलते ही खिजली फिरोजा का माथा चुम कर बाहर की तरफ निकल जाता हैं ,,,
फिरोजा अपनी सहेलियों के साथ खेलने में व्यस्त हो जाती हैं ,,,
परन्तु उसके मस्तिष्क में कुछ चल रहा था ....
तभी एक सहेली ने उसे परेशान करने के लिये कहा - तु शादी किससे करेगी फिरोजा "
फिरोजा एकाएक शांत हो जाती हैं ,,
जैसे वह कोई चोर हो और समाने कोतवाल आ गया ....
"जो इस पृथ्वी पर सबसे वीर होगा उससे करूगी "....
और उठ कर सुर्य के तिहाई बचे भाग को निहारने लगी ,,,
फिरोजा के मन में एक द्वन्ध चल रहा था ,,
जालौर के राजकुमार विरम देव से उसे प्रेम था ...
न ही एक दुसरे को देखा था न ही मिले थे ....
बस विरम की वीरता की गाथाये सुन सुन कर फिरोजा उससे प्रेम कर बैठी ....
उसे पता था इस बात के लिये उसका अब्बू कभी न मानेगा ...
फिर भी वह हठ कर बैठी की विवाह करूगी तो विरम से अन्यथा कुआरी रह जाऊगा ,,,
उसे गुमसुम था देख खिजली को कुछ शंका हुयी ...
उसने फिरोजा से जानना चाहा तो फिरोजा ने सबकुछ बता दिया खिजली ने उसे समझने की बहुत कोशिश की परन्तु पुत्रमोह के आगे विवश हो गया ....
उसने अपना एक दूत जालौर भेजा ...विवाह प्रस्ताव के साथ ..
परन्तु राजपुत तो राजपूत था ...
विरम ने साफ मना कर दिया ..
की मैं अपने कुल की मर्यादा को नही तोड़ सकता ...
खिजली ने क्रोध में जालौर पर अाक्रमण कर दिया ...
वीर की प्यासी तलवार को आज रक्त मिला ...
जालौर की धरती की रक्त पिबासा शांत करने के लिये एक एक योध्दा कट गया ...
परन्तु विरम न माना ...
उसकी तलवार की चमक से मुगल सेना में दहसत सी मच गयी थी ...
वह अकेला हजारो पर भारी था ....
खिजली ने ऐसा बांका जवान न देखा था .....
अंत में संख्या बल के आगे बाहुबल हार गया ...
हजारो तलवारे एक साथ टूट पड़ी ...
कुछ ही छणो में विरम के रक्त से ....
धरती की पिबासा शांत हो गयी ...
विरम का सर दिल्ली लगा गया ....
फिरोजा मुर्छित हो गयी यह दृश्य देख कर ...
सुर्य शांतचित आज फिर यमुना की गोद में जा रहा था विश्राम के लिये ....
लाखो का जनसैलाब उमंड पड़ा था वह दृश्य देखने ,,
मां यमुना की गोद में अपने प्रेम के अमरत्व का अमृत लिये फिरोजा ने विरम के सर के साथ ...
छलांग लगा दी ,,,,,,,,
..
@अंकित तिवारी

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