हिन्दी English
       To read Renowned Writer Sri Bhagwan Singh Click here.      Thank you for visiting us. A heartly welcome to readwritehere.com.      Please contact us to show your message here.      Please do not forget to login to read your favorite posts, it will get you points for reading too.      To read Nationalist Poet Dr. Ashok Shukla Click here.
Studied Chemistry at University of Mumbai, Writes on Several Topics.
V-55K
L-348
C-9
S-325
F-450


अगर दर्गा- मजार पर मन्नत मांगना शिर्क है तो बनाए क्यूँ गए ?

मंदिर तोड़े गए इसलिए दर्गे – मजार बनाए गए । या ये कहिए कि परोसे गए । पूजने के लिए कुछ तो चाहिए । फिर सड़ते शव को पड़ी मूर्ति भी कहा गया । चमत्कारों की कहानियाँ भी प्रसृत की गयी । उन चमत्कारों में हमेशा हिन्दू साधू – सिद्ध – मांत्रिक – तांत्रिक या कहीं तो देवी देवताओं का भी इन पीरों के हाथों हारने की कहानियाँ बनी । वैसे इन पीरों के मजारों पर कुछ और “चमत्कार” भी होते रहे हैं इसमें कोई नई बात नहीं है, ऐसे ही चमत्कारों का ये गज्जब मज्जब है, ऐसे चमत्कारों से ही फैला है ।

इतिहास की समझ से देखेंगे तो जहां जहां प्रतीक पूजक संस्कृति पर मजहब तलवार से थोपा गया और बलात्कार से रोपा गया, वहाँ वहाँ दर्गे मजार अवश्य मिलेंगे । यह क्यूँ हुआ होगा, आप सोच सकते हैं, जवाब आसान है फिर भी दे देता हूँ ।

किसी भी पुरानी संस्कृति को जड़ से उखाड़ना आसान नहीं, खास कर के जब हमलावर उसके माननेवालों को वास्तव में अपना नहीं रहे हों । इस्लाम ने यही किया, हमलावरों ने जिन्हें मुसलमान बनाया उनको कभी बराबरी नहीं दी । बस क्लास मॉनिटर बना रखा बाकी काफिरोंपर मॉनीटरी करने ताकि इनमें सत्ता चलाने का मुगालता पनपे – ठीक गाड़ी के नीचे चलते कुत्ते वाला । लेकिन इसके ऊपर कोई प्रमोशन नहीं । वे आका, तुम खाक । आज भी बात वही है, आज काफिर इनके आका से नजर भिड़ा सकता है, इनकी नजर आज भी नीची ही है लेकिन कोई वामपंथी आप से यह नहीं कहेगा, खैर, हम मुद्दे से भटकेंगे नहीं । बात पुरानी संस्कृति की हो रही थी ।

प्रतीक की पूजा होती है, मूर्ति भी प्रतीक ही होती है । पूजनेवाले भी जानते हैं । असल बात तो यही होती है - जित समाज का आत्मगौरव खत्म करने के लिए उसके प्रतीक नष्ट किए जाते हैं कि देखो, तुम अपने आप को हम से बचा नहीं सकते । लेकिन यही narrative होती है कि हमने तो तुम्हारे ईश्वर को तोड़ दिया, हम उस से भी ऊंची चीज है, अब हम से डरा करो । यहूदियों ने अपने शत्रुओं के साथ यह किया था, इस्लाम ने जैसे खतना भी उनसे कॉपी किया, यह भी उनसे ही कॉपी पेस्ट किया है । लेकिन प्रतीक ध्वस्त होने पर मन से निकलता नहीं, उसकी जरूरत महसूस होती रहती है । और आप मॉनिटर तो कुछ को ही बना सकते हैं, बाकी लोग तो है ही जिनसे आप को काम लेना है, उनकी खून पसीने की कमाई लूटकर सवाब लूटना है ।

यहाँ ये पीर काम में आते हैं । दर्गे मजार बनाओ, कहानियाँ फैलाओ, अपने आप अवचेतन में मजहब का दबदबा भी बना रहेगा । तोड़े प्रतीक की रिप्लेसमेंट भी हो जाएगी, लूट का नया जरिया भी मिलेगा, झूठ से परहेज तो कभी था ही नहीं । सांस्कृतिक आक्रमण ही है । कहते हैं कि जहरीले नाग हमेशा बने बनाए बिलों में ही घुसकर कब्जा जमाते हैं ।

जब तक काफिर, काफिर बन कर जीते रहते हैं, ये दर्गे मजार काम आते रहते हैं । एक स्टेज आने पर अपनों को यहाँ जाने पर रोका जाता है, प्रचारित किया जाता है कि शिर्क है । जहां मजहब के राजा प्रजा दोनों हो वहाँ तोड़ा भी जाता है जैसे सऊदी में तोड़े गए । अब पाकिस्तानी तोड़ रहे हैं धीरे धीरे । वहाँ अब काफिर बचे तो नहीं, जो हैं उनसे दर्गे मजार चलते नहीं । तो तोड़ना ही ठीक समझा जा रहा है, क्योंकि मोमिन दर्गे मजार में माने यह तो शिर्क है, वे तो केवल काफिर को लूटने का जरिया है । पूछिए किसी अजमेरिया के मुरीद से भी, पहले तो चमत्कारों की टेप लगाएगा लेकिन पूछिए, क्या दरगाह पर मरे पीर से मन्नत मांगना एक मुसलमान के लिए शिर्क नहीं ? उनको ज़ोर की नमाज लग जाएगी, निकल जाएँगे !

वैसे यह सवाल किसी वामिए से पूछवाना चाहिए, लेकिन वे हमारा ही एनालिसिस कर सकते हैं, मजहब का एनालिसिस करने को कहें तो उनकी जबान को पैरालिसिस हो जाता है यह अनुभवित है, आप भी कभी भी अनुभव कर सकते हैं । चू से पूछिए, बंडल ही छोड़ेगा ।

पाकिस्तान में दर्गे मजार टूटे तो टूटे, लेकिन यहाँ तौहीद जमातवाले लाखों मोमिनो का मेला लगाकर दर्गे मजार को शिर्क बताते हैं (तमिलनाडु, जनवरी 2016) यह चिंता का विषय है, क्या यह गजवा ए हिन्द के टाइम टेबल का हिस्सा तो नहीं ?

Comments

Sort by
Newest Oldest

Please login to continue.
© C2016 - 2025 All Rights Reserved