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त्याग व आदर्शो का युगारम्भ

'जब समाज अपने उद्देश्यों से,अपनी जिम्मेदारियों से,प्रतिबद्धता से,समर्पण से, अलग हट जाए और उसकी सुरक्षा प्रभावित होने लगे तो अध्यात्मिक ऋषियों-सन्यासियों को आगे आकर बीमारी ठीक करना चाहिए।राष्ट्र का संतुलन बनाना उनका दायित्त्व है। जिम्मेदारी के साथ तब तक नेतृत्व संभालना चाहिए जब तक व्यवस्था ठीक ना हो जाए। -- 'अगस्त्य ऋषि,

योगी का आना वही संदेशपूर्ति है।अगर गृहस्थों में से त्याग,आदर्श,चरित्र और प्रेरणाए नहीं मिल रही हैं तो सन्यासियों को आगे आकर के राजनीतिक आकार-प्रकार तय करना होगा।संघ वह बखूबी कर रहा है।अपने प्रचारको के द्वारा। मुझे लगता है अब प्रचारकों की प्रशासनिक ट्रेनिंग भी जरूर होनी चाहिए।संघ ही नहीं समाज भी अब यह मानने लगा है कि सामान्य ग्रहस्थ स्वार्थ केंद्रित हो चुका है काफी स्तर तक उसे बेईमान भी कहा जा सकता है।अमूमन व्यक्तिगत प्रतिबद्धताएं और महत्त्वाकांक्षये उसे पूरा परिणाम नही लाने देती.. उसे नए आदर्श की जरूरत महसूस हो रही है।योगी आदित्यनाथ,नरेंद्र मोदी,खट्टर तथा बहुत से सन्यासी प्रचारकों के आगे आने से सामान्यतया नेतृत्व की धारणा में बड़ा बदलाव आया है।अमूमन ग्रहस्थ उतना ईमानदारी से परफारमेंस नहीं कर पाया तब अटल जी,नरेंद्र मोदी,मनोहर लाल खट्टर और कम से कम 20 प्रचारको को मेनस्ट्रीम के काम में लगाया गया।परफारमेंस अच्छा ही नहीं सर्वश्रेष्ठ है।क्योंकि प्रचारक पूरा 24 घंटे का टाइम देकर,विचलित हुए बगैर परिवार रहित अवस्था में फोकस्ड हो कर काम कर पाता है यह गृहस्थों से कहीं ज्यादा परफार्मिंग है।

योगी का प्रदेश में मुख्यमंत्री बनाया जाना एक अभूतपूर्व प्रयोग है।वह समाजिक संगठक हैं,संवैधानिक ढंग से चुने हुए लोकसभा सदस्य रहे,जनता के नेता हैं,प्रचारक भी,योगी भी, प्रशिक्षित स्वयंसेवक भी।उन्हें जाति-पाति रहित संत जो SC केटेगरी में समझा जा सकता है।योगी घर वाले नहीं रह गए सन्यासी हो गए है।इसीलिए समाज ने उन पर ज्यादा भरोसा किया।माने या ना मानिए परिवार आज स्वार्थ के मूल में, केंद्र में है।परिवार इकाई ही भृष्टाचार का काम कर रही है।वह एक कमजोरी जैसी है। परम चेतना उस से निकालना चाहती है।यह एक आदर्श स्थिति होगी।हजारों लोगों को नरेंद्र मोदी,योगी आदित्य नाथ जैसे संतो से आदर्श मिलेगा।प्रेरणा मिलेगी।युवाओं को चरित्र के लिए प्रेरणा मिलेगी।वह केवल प्रचारक रूप में ही नही निकलेंगे बल्कि अविवाहित आध्यात्मिक अवस्था के साथ प्रशासनिक मशीनरी को भी ठीक करने की साधना करेंगे इससे भारतीय समाज का भला होगा।प्रचारक,योगी सन्यासी होना एक कैरियर के रूप में अच्छा विकल्प भी उपलब्ध होगा।
ज़ात ना पूछो साधू की पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तलवार का पड़ी रहन दो म्यान।।
हिन्दुओं में साधू की ज़ात पूछी ही नहीं जाती।युगों से साधू-सन्यासियों-योगियो को जात-पांति में नही बांधा जाता।नाथ मठो में तो सबके साथ खिचड़ी खाने की परम्परा युगों से विद्यमान थी।योगी आदित्यनाथ की जाति कल तक ज्यादातर लोगों को पता नहीं थी।लेकिन कल से मीडिया सामान्य नैतिकता छोड़कर उन्हें एक जाती में समेटने पर जुटा हुआ है,।चालाकी और नैरेटिव बिल्डिंग देखने का ये बिलकुल सही मौका है।जैसे ही वो मुख्यमंत्री बने हैं मीडिया के टुकड़ाखोरों को अपने फंडिंग एजेंसी का हुक्म बजाते हुए ज़ात में घुस रहा है। उसे किसी भी तरह हिन्दू समाज की एकता तोडनी है।जिस साधू की ज़ात हिन्दू नहीं पूछ रहे थे उसे एक ज़ात का मुख्यमंत्री घोषित करने की धीमी सी इसी कोशिश को नैरेटिव बिल्डिंग कहा जाता है।समाज सन्यासियो को दिया परमपद ही मान्य रहता है।
मुझे विश्वास है उत्तर प्रदेश में भी यह प्रयोग सफल रहेगा।इससे अगले 50 सालों तक हम अपने विजन, कार्यप्रणाली और वैचारिक अधिष्ठान की सुरक्षा कर सकेंगे।हमें अपने प्रशिक्षित कार्यकर्ता जो पूर्णकालिक है गवर्नमेंट मशीनरी को ठीक करने के लिए लगाना चाहिए।यह भी राष्ट्र का ही काम है और शायद समुच्चय समाज इकाई को भी ठीक कर सके।अलग बात है कि उनको ट्रेंड करना, उनको विधिक,संवैधानिक प्रक्रियाओं का ज्ञान देना,उनको गवर्नमेंट मशीनरी के हथकंडे की समझ पैदा करना यह हमें सिखाना पड़ेगा।महिमामंडित नेतृत्व और इनबॉर्न लीडरशिप में स्वाभाविक परिवर्तन दिख रहा है।समाज इसे नए बदलाव के रूप में स्वीकार कर रहा है निश्चित ही यह अच्छे लक्षण हैं।
संघ ने अगर प्रचारक परंपरा ना शुरू की होती तो शायद वह इतना विराट संगठन ना हो पाता।संगठन की शाखा जैसी प्रक्रियाएं,नित्य नैमित्तिक मिलन जैसी प्रक्रियाएं बहुत सारे संगठनों ने शुरू की थी लेकिन कोई भी अपने 200 सालों में भी हिंदू समाज का इतना बड़ा संगठन नहीं बना पाए।अब यह सामान्य सिद्धांत के रूप में मान्यता प्राप्त कर रहा है 'अविवाहित प्रचारक संत ही समाज का भला कर सकता है,।
साथ ही मेरा कहना यह है कि संघ शिक्षा वर्ग में( o t c) में स्वयंसेवकों को प्रशासन का भी अनुभव करना चाहिए।विधिक और संवैधानिक प्रक्रियाओं का ज्ञान होना संघ स्वयंसेवको के लिए अब आवश्यक हो गया है। क्योंकि प्रशासनिक मशीनरी में हस्तक्षेप के लिए स्वयंसेवकों का प्रशासन के संदर्भ में सम्यक अनुभव-समझ आवश्यक है।धीरे-धीरे स्वयंसेवको को नागरिकशास्त्र के नियमो का दक्ष होने की जरूरत है यह देश को नया आयाम देगी।

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