हिन्दी English
       To read Renowned Writer Sri Bhagwan Singh Click here.      Thank you for visiting us. A heartly welcome to readwritehere.com.      Please contact us to show your message here.      Please do not forget to login to read your favorite posts, it will get you points for reading too.      To read Nationalist Poet Dr. Ashok Shukla Click here.


बचपन में मुझे मेरी पहली साइकिल गुलाबी-बैंगनी 'लेडीबर्ड' मिली थी।सिखाने की जिम्मेदारी मिली पड़ोस के एक लड़के को जो मुझ से डेढ़ हाथ लम्बा, दस अंगुल चौड़ा था।कुछ दिनों में जब मैं चार से दो पहिये पर उतर आयी तो उसने आइडिया दिया कि अब छुपते-छुपाते शहर और हाइवे भ्रमण किया जाये।"घरवाले तो हमें बड़ा होने देने से रहें खुद ही चल कर देखनी पड़ेगी दुनिया।" उसके अनुसार चूँकि मेरी पहली स्वतन्त्र यात्रा थी मुहल्ले की गली से आगे की, इसीलिये एक साईकिल-दो सवार ज्यादा ठीक थे।जब मैं तीन बजे दुपहरी घर से झूठ बोल कर निकली अपनी साईकिल के साथ तो चौराहे पर जाकर उसने सख्त, परिपक्व लहजे में कहा कि मैं कोई लड़कियों वाली हरकतें ना पटकूँ रास्ते में।थोड़ा रफ-टफ चलूँ लड़को टाइप। और बाकी तो जब लड़का साथ में हैं तो ज्यादा आगे-पीछे सोचने की जरूरत नहीं है। मैंने भी सहमति में सिर हिलाया और पीछे स्टैंड में लोड हो कर चल पड़ी।ट्रको के बीच से गुजरते हुए हनुमान मन्दिर तक की यात्रा एवरेस्ट फतह जैसी सफल लगी। हमने मन्दिर में माथा टेका। जिंदगी के इस नए अध्याय की सफलता बरकरार रहने की कामना की।फिर बस लायंस क्लब से लेकर भट्टा बाजार रोज नपने लगे।कुछ दूर वो स्टैंड पर होता और मैं सीट पर।फिर ज्यादा दूर वो स्टैंड पर होता और मैं सीट पर।फिर तो रोज मूंगफली के साथ पिछवाड़े के निचे मोटा कपड़ा लगाये वो स्टैंड पर ही होता और मैं कमान सम्भाले सीट पर। मैं बरसाती मेंढक की तरह हाँफते हुए उसे पूरी पूर्णिया भर खिंचती फिरती।शिकायत करने का सवाल नहीं उठता था, क्यूकी मेरे साथ ही नारीवाद पैदा हो गया था(ऐसा मैं मानती थी)। मेरे लिये "रोतली लड़की" दिखना मतलब समाज में "पगड़ी उछल जाना","मूंछे कट जाना","गर्दन नीची हो जाना", "इज्जत लूट जाना" जैसा था।माने बहुत सीरियस बात।तो मैं अपने पैरों की हड्डियां मजबूत करती रही।फिर एक दिन मैं धौंकनी की तरह सांस लेते हुये सुनसान सड़क पर मजदूरी में लगी हुई थी कि पान चबाते, बीड़ी फूंकते, शर्ट की बटन खोले दो खतरनाक-आवारा दिखने वाले लड़के उधर से गुजरे। हमें गौर से देखा।करीब आये।मेरे पुरुष मित्र की ऊंचाई तक झुके,
"बहन है तेरी?"
"नहीं, फ्रेंड हैं।" दोस्त सकपकाया।
"बेटा तुमको पहिले भी देखे हैं। काहे बेचारी बचिया से रोज साईकिल खिंचवाते हो?टांग में कोनो समस्या हैं?"
"नहीं भैया"
"अच्छा तो शरम नहीं आता?" फिर उनमें से एक मेरी ऊंचाई तक झुका और मेरे नथुनों को गुटखा और बीड़ी की तेज गन्ध से भभकाते हुए बोला,"आधा रास्ता इससे भी चलवाया करों।बहादुरी दिखाने के चक्कर में बेवकूफ बनने की जरूरत नहीं है।" ये दो मेरी जिंदगी के पहले मसीहा थे जिन्होंने मुझे नारीवाद का सबसे बड़ा दर्शन दिया था, "बराबरी करना और बेवकूफी करना दो अलग बातें होती हैं।"
*******
आज मुझे वो दो लड़के बरबस याद आ जाते हैं जब मैं औरतों को आजादी के नाम पर बेवकूफ बनते देखती हूँ, जब बाजार इनको वस्तु बना रहा होता हैं सशक्तिकरण के नाम पर, जब एक ठरकी इन्हें लिव-इन और स्वतन्त्रता का आपस में भाईचारा बता कर इन्हें प्रयोग करता हैं और जा कर अपने घरवालों की पसन्द से शादी, जब इनको हर वो चीज आजादी का प्रतीक बता दी जाती हैं जो पुरुषों को खुश करती हो।उन्हें गुदगुदाती हो।

Comments

Sort by
Newest Oldest

© C2016 - 2025 All Rights Reserved