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1973-74 की फिल्म "दोस्त" का एक गीत, "गाडी बुला रही है, सीटी बजा रही है", बडा हिट हुआ था. इस बीच बयांलीस वर्षों का लंबा अंतराल बीत चुका है पर जब कभी सुनता हूँ, बरबस बचपन की यादों में खो जाता हूँ.

(मेरा चाय का कप ठंडा हुआ जा रहा है. पत्नी जी चिढ़ रही हैं मुझपर...पर मुझे और समय चाहिए बाहर निकलने को. पहले भी बता चुका हूँ इधर.)

हम उन दिनों सातवीं में थे. हमारी क्लास, स्कूल की सबसे बेहतरीन क्लास मानी जाती थी. स्कूल के सभी शिक्षक व प्रधानाचार्य, कक्षा के सभी छात्रों की ओर से इतने आश्वस्त रहते की किसी समय, किसी शिक्षक की अनुपस्थिति में, हमारी कक्षा के शिक्षक को किसी और क्लास में घंटा लेने भेज दिया जाता. कक्षा, Class Monitor की जिम्मेदारी पर छोड़ दी जाती. हम बच्चों को तो निकल पड़ती. कहानियों, लतीफों व गानों का दौर शुरू हो जाता और पूरा घंटा हम सब अपनी इन प्रतिभाओं को निखारने में लग जाते.

ऐसे ही एक खाली घंटे में, मैं कक्षा में उपरोक्त गाना गा रहा था. पूरी क्लास कोरस में रिपीट करती जाती इसे. सच कहूं, समां बंध गया था. सम्मिलित स्वरों में गाया जा रहा गीत, स्वयं के कानों को ही इतना सुंदर लग रहा था की हम बच्चे जोश में आ गए व कब और कैसे हमारा volume, खतरे की सीमा पार कर गया, किसीको पता ही न चला. पडोस की कक्षा में गणित पढा रहे मेहता सर कब आकर खडे हो गए, जब तक पता चलता, देर हो चुकी थी. अब क्योंकि लीडर हम थे, सो कान पकड कर ले गए मेहता सर, हमें अपनी क्लास में! उनका वर्ग मेरी कक्षा को लग कर ही था. मेरे पीछे मेरी कक्षा में सन्नाटा छा चुका था. सारे बच्चे चुप हो गए. मैं डर रहा था की, अब पूरा घंटा, बेंच पर खडा होना पडेगा मुझे. क्या किया जा सकता था. सर झुकाए, लज्जित चेहरा लिए, मेहता सर की क्लास में ब्लैक-बोर्ड के पास खडा कर दिया गया मैं!

"ये हैं हमारी स्कूल के महान गायक...किशोर कुमार!! जब गाते हैं तो याद नहीं रहता की कहाँ हैं, क्या गा रहे हैं...........स्कूल में फिल्मी गाने गाते हो, क्यों ?"

"सर, आगे से गलती नहीं होगी. माफ कर दीजिए!"

मैं, मूर्तिमान लज्जा बना, विनंती करने लगा....

"बिना दंड भुगते?," मैं घबरा रहा था, "सजा तो मिलेगी तुम्हें. तो बच्चों, Our Kishore Kumar will sing for us. और आप सभीको कोरस में दोहराना है....ठीक?"

मेरे आश्चर्य की सीमा न थी. लज्जा को अचरज ने रिप्लेस कर दिया था. निर्देशानुसार मैंने गाना शुरू किया, पूरी क्लास मेरी पंक्तियों को follow कर रही थी. मुखडा समाप्त होते होते, पड़ोस की मेरी कक्षा के छात्रों की भी समझ में आ गया था माजरा! कुछ ही क्षणों में, वे भी कोरस में शामिल हो गए. अब दो कक्षाओं के लगभग अस्सी छात्रों के सम्मिलित स्वरों से पूरा स्कूल गूंज रहा था.

"गाडी बुला रही है...
सीटी बजा रही है !!"

गीत समाप्त होते होते, हमारी स्कूल के घंटा बजाने वाले, "गौरीशंकर" ने, क्लास में प्रवेश किया और मेहता सर से बोले;

"चलिये, तुमका बुलाय रहे हैं, बडे मास्साब !!"

कुछ देर पहले जिस सन्नाटे में अपनी कक्षा को छोड़ यहाँ लाया गया था मैं, अब वही मेहता सर के मुखमंडल पर घनीभूत हो चला था और चिंतित मुद्रा लिए, वे बडे मास्साब के कार्यालय की ओर प्रस्थान कर रहे थे.

( "कक्षा"....चित्र साभार : गूगल से!)

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