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हिंदुत्व के प्रति घृणा का इतिहास - ३८
क्षेपक-3

मैं जानता था एकसाथ इतने उद्धरणों के कारण कुछ पाठकों को असुविधा होगी. मुझे स्वयं होती थी. मैं चाहता हूँ कि इनका अनुवाद भी साथ देता चलूँ पर इससे लेख और भी लंबा होने का डर रहता है.

जो लोग आराम से अंग्रेजी समझ लेते हैं उन्हें भी अपने मत को बिना उसे स्पष्ट किए समझा पाना आसान नहीं होता. समझा कर लिखने या कहने पर भी दृष्टि की भिन्नता होने पर अन्य व्यक्ति को अपने मत से सहमत कर पाना सम्भव नही होता. असहमत व्यक्तियों के विचारों का महत्त्व अधिक होता है. वे हमें अपनी सीमाओं से परिचित कराते हैं या भिन्न दृष्टि से सोचने को विवस करते है.

इस भूमिका के बाद ही हम अपने मन्तव्य को स्पष्ट कर सकते हैं जिसको ग्रहण कर ने का भर पाठकों पर डाल कर आज फोबिया वाले पक्ष पर लौट ना चाहता था.

विचार एक हथियार है. परंतु इसके द्वारा किसी भिन्न मंतव्य या भरम के विरुद्ध लड़ने से पहले इसे धार देने के लिए अपने आप से लड़ना होता है. अपने मन में उतारे गए विश्वास, अपने अहंकार और स्वार्थ और परिवेशीय दबाव से, तभी विचारों में वह धार पैदा होती है. इसीलिए मैंने पहले कहा था विचारों, (जिसमे विचारधारा और संगठन भी आते हैं) विश्वासों की बेड़िया सबसे खतरनाक होती है क्योंकि ये चेतना को जकड़ती हैं.

मैकाले पर ही आज भी रुकना होगा. मैंने कहा मैकाले वोल्टेयर आदि की परम्परा में आते हैं तो इसका अर्थ वह उनमें से किसी के बराबर थे यह नहीं है बल्कि उससे प्रेरित हैं. वैसा बनाने या उस उदारता को जीवित रखने और आगे बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं.

मैकाले राष्ट्रवादी थे जिसमें राष्ट्र के हित और राष्ट्र के गौरव और मानवीय गरिमा की चिंता थी और इसलिए वह संकीर्णता का, अन्याय का और किसी मनुष्य की या जाति की गरिमा की चिंता करते हैं परंतु वह क्रांतिकारी नहीं हैं. उन्होंने यहूदियों के विरुद्ध ब्रिटिश पूर्वाग्रहों और उनके साथ किये जा रहे भेदभाव के खिलाफ भी मोर्चा लिया था और भारत के पक्ष में भी. उनकी जानकारी बहुत व्यापक थी और जिज्ञासा उससे भी अपार. जब उन्होंने भारत की ज़मीन पर कदम रखा, उन्हें मद्रास (चेन्नई ) से उटकमंड तक की जहाँ गवर्नर जनरल विलियम बेंटिंग गर्मियों में डेरा जमाये थे, चार सौ मील की यात्रा पालकी में सवार होकर करनी पड़ी थी. रास्ते में ही उसने जितने पोथे पढ़ डाले थे उतने अपने को पढ़ा लिखा मानने वाले बहुतेरे लोग ज़िन्दगी में नहीं पढ़ पाते:

परंतु हमारे लिए उसकी वे टिप्पणियां अधिक माने रखती हैं जिनका सम्बन्ध हमारे समाज से है.

मैकाले न संस्कृत जानते थे न अरबी, न फ़ारसी. इनके सम्बन्ध में उनकी सूचनाएं तब तक अनूदित हो चुकी पुस्तकों और संस्कृत, अरबी और फारसी के विद्वानों से प्राप्त जानकारी तक सीमित थीं. संस्कृत साहित्य के विषय में उनके विचारों को जेम्स मिल के इतिहास ने प्रभावित किया था. उनके सामने दो समस्याएं थीं. एक था कानून का शासन स्थापित करने का जिसके लिए उन्होंने ब्रिटिश संसद में भी जंग लड़ी थी. तब तक कानून की दो तरह की व्यवस्थाएं, हिंदुओं का मनुस्मृति पर आधारित, मुसलमानों का सरियत पर आधारित. अंग्रेज़ कानून से ऊपर थे और उन्होंने चेत सिंह और अवध की बेगमों तक को नहीं बख्शा था, साधारण लोगों की तो बात ही अलग. कानून ऐसा हो जो सब पर लागू हो और धर्म, नस्ल, जाति का इसमें हस्तक्षेप न हो इसके लिए उन्होंने संहिता के निर्माण का काम हाथ में लिया.

शिक्षा भी अबतक धार्मिक प्रकृति की थी जिसका व्यापक जीवन से कोई सरोकार न था. मैकाले धर्मनिरपेक्ष और ज्ञान वर्धक, सुरुचि का विकास करने वाली ऎसी शिक्षा के पक्ष में थे जिसका जीवन में उपयोग हो और जिसे किसी के दान के बल पर नहीं अपने साधनों से अर्जित किया जाय और जिसमें आधुनिक ज्ञान विज्ञानं की शिक्षा हासिल हो सके. शिक्षा की भाषा क्या हो इस पर दस सदस्यों की जो समिति बनी थी मैकाले उसके एक सदस्य थे. इसमें दो तरह के विचार थे. पुराने लोग शिक्षा को पुराने ढर्रे पर चलने देना चाहते थे. मैकाले शिक्षा को संस्कृत अरबी के जाल से बाहर लाना चाहते थे. One-half of the committee maintain that it should be the English. The other half strongly recommend the Arabic and Sanscrit. The whole question seems to me to be-- which language is the best worth knowing?

भारत की बोलचाल की कोई भाषा इतनी विकसित नहीं थी की उसमें शिक्षा दी जाय. मत समान रूप में विभाजित था. इसका मिनट लिखने का जिम्मा मैकाले का था जिसमे उसने अंग्रेज़ी को शिक्षा की भाषा बनाने का पक्ष लिया था. इसका विरोध करने वालों का मानना था कि भारतीय अधिक से अधिक कामचलाऊ अंग्रेज़ी ही सीख सकते है. यह आधा सच था.

पूरा सच यह था कि संस्कृत, फ़ारसी, अरबी और अंग्रेज़ी सभी शिक्षा लभ्य भाषाएं थीं और इन पर आधाकारिक ज्ञान के लिए बहुत अधिक परिश्रम और बहुत लंबे समय की आवश्यकता होती है और इनपर अधिकार करना ही इतनी बड़ी चुनौती बन जाती है कि इन्हें बोल पाना ही विदत्ता का प्रमाण बन जाता है. भाषा से आगे किसी विषय का ज्ञान हो या न हो. जो बात एक अनपढ़ अपनी बोली में कहता है वही आप एक शैक्ष भाषा में कहने की योग्यता हासिल करने के बाद विद्वान मान लिए जाते हैं.

मैकाले जानते थे कि शिक्षा की भाषा बोलचाल की भाषा ही हो सकती है. क्योंकि उनमें अक्षर ज्ञान के बाद जो कुछ भी पढ़ते हैं वह ज्ञान और सुरुचि का विस्तार होता है जो ही शिक्षा का लक्ष्य है. परंतु सभी इस बात पर एकमत थे कि किसी भाषा में ज्ञान साहित्य सुलभ नहीं है और बोलचाल की भाषाएं इतनी अविकसित हैं कि उनमें अभी ऐसे साहित्य का अनुवाद करना भी समभव नहीं!
All parties seem to be agreed on one point, that the dialects commonly spoken among the natives of this part of India contain neither literary nor scientific information, and are moreover so poor and rude that, until they are enriched from some other quarter, it will not be easy to translate any valuable work into them.
अब We have to educate a people who cannot at present be educated by means of their mother-tongue. We must teach them some foreign language.

विदेशी भाषाओँ में से चुनाव करना है तो किसी अन्य भाषा की तुलना में अंग्रेजी अधिक उपयुक्त है. ध्यान रहे कि मैकाले की नज़र में रूस का उदाहरण था, जिन्होंने फ्रेंच को वरीयता दी थी कुछ ने अंग्रेजी का भी चुनाव किया था . अंग्रेजी ऎसी थी जिसका साहित्य सभी दृष्टियों से संपन्न और आधुनिक था. जिसे लोग अपने प्रयत्न से सीख रहे थे और जिस पर अधिकार रखने वाले विद्वान भी थे जो इस संशय को दूर करता था की हिंदुस्तानी अंग्रेजी पर अधिकार नहीं कर सकते और ऊपर से अंग्रेज़ी शासकों की भाषा थी और आनेवाले समय में यह व्यापार की भाषा बनाने जा रही थी.
In India, English is the language spoken by the ruling class. It is spoken by the higher class of natives at the seats of Government. It is likely to become the language of commerce throughout the seas of the East.

यह नहीं भूलना चाहिये कि अंग्रेज़ी का पहला कालेज हिन्दू कालेज राममोहन राय की पहल से १८१७ में स्थापित हुआ था, मैकाले की टिप्पणी से अठारह साल पहले ही बंगाल ने अंग्रेजी को अपनी उन्नति की भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया था. कहें फैसला पहले हो चुका था उसपर मुहर लगनी बाकी थी. वह मुहर शिक्षा समिति में पांच पांच के बटवारे के बाद लार्ड विलियम बैंटिग को लगानी थी. वह लगी.

अंग्रेज़ी का ज्ञान जनता की शिक्षा की समस्या को तो दूर करता नहीं, पर यह काम कोई संस्कृत और अरबी फ़ारसी भी नहीं करतीं. पर अंग्रेजी के साथ इसकी संभावना थी. आधुनिक शिक्षा प्राप्त लोग अपनी भाषा में उसी तरह साहित्य रचेंगे और बोलियों का स्तर ऊँचा करेंगे जैसे रूसियों ने किया जिनकी पिछड़ी हुई भाषा आज किसी भी यूरोपीय भाषा से टक्कर ले सकती है.
Within the last hundred and twenty years, a nation which had previously been in a state as barbarous as that in which our ancestors were before the Crusades has gradually emerged from the ignorance in which it was sunk, and has taken its place among civilized communities. I speak of Russia.

मैकाले के सामने एक दूसरी समस्या न्यायपूर्ण शासन की थी. इसके लिए वह उच्च पदों पर भारतीयों की भागीदारी को जरुरी मानते थे और इस दृष्टि से अंग्रेज़ी पढ़े लोग ही उपयुक्त थे. हम अपनी ग्रंथि के कारण कई बातों का आशय उलट देते हैं मानो वह उनका धर्मान्तरण कर रहे थे. मध्य काल में रिश्वतखोरी इतनी व्यापक थी कि इसे दस्तूरी कहा जाता था. बिना फीस के कोई काम न होता था. क्लाइव और हेस्टिंग्स की भ्रष्टता का भी यही कारण बताया जाता रहा कि वे भारतीयों के संपर्क में आने के कारण भ्रष्ट हुए थे और बाद में संपर्क न रखने की नीति अपनाई गई थी. अतः हिंदुस्तानियों को धीरे धीरे प्रशासन में हिस्सेदार बनाना क्या प्रशासन को भ्रष्ट बनाना नही था? मैकाले का विचार था कि अंग्रेजी शिक्षा से उनका चरित्र अंग्रेजों जैसा ही हो जाएगा. वे उस ज्ञान और संस्कार से लैस होंगे जो उच्च शिक्षा से होता है. इसलिए
It would be… far better for us that the people of India were ruled by their own kins, but wearing our own broadcloths, and working with our cutlery ... To trade with civilized men is infinitely more profitable than to govern savages.

इसके कुछ खतरे थे, पर वे हिंदुस्तानियों के लिए नही अपितु अंग्रेजों के लिए थे कि यूरोपीय ज्ञान और संस्थाओं से लैस होकर वे कभी न कभी आज़ादी की मांग करेंगे, 'परंतु वह भी हमारे लिए गौरव की बात होगी'. ध्यान रहे कि इस आज़ादी में अपनी भाषा को विकसित और समृद्ध बनाने के बाद उसे उसी तरह अंग्रेजी से आज़ाद होना भी शामिल है जैसे यूरोपीय भाषाएं लातिन के दबाव से आज़ाद हुई थीं.

मुझे नहीं लगता कि ऐसे व्यक्ति के लिए महामना(broadminded) विशेषण अनुचित है. यदि हमारे अंग्रेजी के ज्ञाता अपना राज कायम करने के लिए अंग्रेजी से चिपके रह गए तो इसमें मैकाले का क्या दोष. यदि आज़ादी के इतने कम समय बाद फिर खुला भ्रष्टाचार आरम्भ हो गया और मुग़ल कालीन ऐयाशी और दम्भ प्रदर्शन आरम्भ हो गया, ताकतवर लोग कानून से ऊपर हो गए तो इसमें मैकाले के कानून का दोष तो नहीं. हमें अपनी कमियों के लिए दूसरो को कोस कर छुटकारा पाने से बचना होगा तभी अपनी कमियों को दूर कर सकेंगे. आज़ादी आंतरिक उपनिवेशवाद से प्राप्त करें और सं घर्ष अवसर की उस समानता के लिए करें जिसका आरम्भ शिक्षा की भाषा की समानता से होता है.

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