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अल्लाह का इस्लाम - महज एक जुमला

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अल्लाह के इस्लाम के बारे में सुना ही है, लेकिन दिखता मुल्ला का इस्लाम ही है । लगता है अल्लाह का इस्लाम अल्लाह के पास जानेपर ही दिखेगा । क्योंकि अल्लाह के इस्लाम की दुहाई देनेवाले अपने जुमले के समर्थन में कोई डॉकयुमेंट पेश नहीं करते । ना ही मुल्ला के इस्लाम को गलत बताकर खारिज करने का इनमें माद्दा है । जैसे इसाइयों ने कैथॉलिक चर्च से जब अति हुई तो प्रोटेस्टंट पंथ का आविष्कार किया । 'प्रोटेस्टंट' - नाम ही अपनी कहानी खुद बता रहा है । इस्लाम में फिरके तो कई हैं लेकिन केवल शांति की बात करनेवाला और हिंसा की हिदायतों को अब कालबाह्य बताकर खारिज करनेवाला फिरका एक भी नहीं है । कुरआन - सिरा - हदीस - सब के लिए वही है । कम अधिक मात्रा में फॉलो करते हैं बस ।

वास्तव ये है कि इस्लाम की सीख में हिंसा और शांति दोनों पाये जाते हैं । कोई भी व्यवस्था केवल हिंसा से दूसरों को हराकर दीर्घकाल तक चल नहीं सकती, हिंसा ही उसको खा जाएगी। बहुसंख्य समाज शांतता प्रेमी होता है, यूंही कोई घर के मर्द खोना नहीं चाहता । इसलिए एक स्थिर समाज के लिए इस्लाम के भी नियम हैं । और यह भी सत्य है कि सरकार को सजाएँ लागू करने में निष्पक्ष के साथ साथ निर्मम भी होना चाहिए ताकि समाज क्रूर या हिंसक न हो। जहां उपद्रवी तत्व सजा की क्रूरता को ज्यादती बताकर सजा या तो खारिज कराते हैं या बहुत ही सौम्य कराते हैं वहाँ सब से ज्यादा गुनहगार किस तबके से आते हैं यह देखना रोचक होगा।

और हाँ, सब से कम गुनाह कहाँ होते हैं वहाँ की शांति की दुहाई ये भी देते हैं । लेकिन वहाँ की सजाओं की बात नहीं करेंगे, भारत का कानून सेक्युलर है, संविधान सर्वोपरि है आदि आदि नारेबाजी शुरू करते हैं । दूसरे ही सांस में शरिया ही हमारा कानून है यह कहने में भी इन्हें ना कोई हिचक है ना कोई शर्म । "मैं सेक्युलरिज़्म का कूली नहीं हूँ" कहने में ओवैसी साहब को जरा भी हिचक नहीं थी; शो पर दूसरों को ही यह पूछना नहीं आया कि क्या सेक्युलरिज़्म बोझ है जो आप कूली होने की बात करते हैं ? या कहीं आप लोग ही तो वो बोझ नहीं जो सेक्युलरिज़्म के नाम पर भारत के हिंदुओं को ढोने को मजबूर किया गया है ? आप एक पदासीन सांसद हैं, कानून और संविधान के प्रति आप की भी ज़िम्मेदारी है, आप ऐसे कैसे कह सकते हैं ? पूछना चाहिए था, ओवैसी साहब को अगर कोई हिचक नहीं थी तो आप को क्यों?

कहीं ऐसा तो नहीं कि आप ये पूछेंगे नहीं इस बात से वे आश्वस्त होते हैं इसीलिए ही ऐसी बातें बेहिचक on camera कहते हैं ? अगर ऐसा तीखा प्रतिप्रश्न तपाक से पूछे जाने की उन्हें गैरंटी होती तो क्या उनकी जुबान उठती ऐसी वाहियात बात कहने को ?

हम बात कर रहे थे इस्लाम में हिंसा और शांति दोनों की । दोनों पायी जाती है लेकिन t &c apply होते हैं । शांति और न्याय पे हक़ मुसलमानों का होता है । काफिर मुसलमानों के रहमो करम पर जीता है, मुसलमान को जो भी चीज इस्लाम के नजर से नागवार लगे उसे वो रोक सकता है । मतलब आप अपने धार्मिक उत्सव नहीं मना सकते । और भी कई अपमानजनक शर्तें होती हैं और काफिरों का अपमान करते रहना कुरआन की ही सीख है । कितने सबूत चाहिए ? बस कोई भी PDF अनुवाद ले लीजिये और humiliate सर्च कीजिये देखें कितने बार और किस संदर्भ में मिलेगा ।

सूरह 9:120 तो सीधा सीख है कि जितना काफिरों को कष्ट दोगे, उनका दिल दुखे ऐसे काम करोगे, तुम्हारे नाम पर एक नेकी लिखी जाएगी। यह "नेकी" है इनकी । आइंदा किसी मुसलमान के बारे में "नेक नीयत" कहा जाये तो उसका यह इस्लामी संदर्भ भी ध्यान में रखिएगा । आप का कोई मित्र है तो पूछिएगा उसे सूरह 9:120 के मायने । जवाब मजेदार होगा और अगर आप जवाब तलब करेंगे उसे मोबाइल में वो आयत दिखाकर, तो दोस्ती खत्म यह भी समझ लीजिये । डिक्शनरी में या आप के मन में जो अर्थ होता है वही इस्लाम के नजरिए से भी होता हो यह जरूरी नहीं । तो, अगर आप अपने धार्मिक उत्सव मना नहीं सकते तो कब तक आप के धर्म से जुड़े रह सकते हैं ? अगर पग पग पर आप को किसी न किसी बात से काफिर होने के कारण वंचित रखा जाएगा तो कितने लोग कब तक धर्म से जुड़े रहेंगे ?

ये आप काफिर को मानसिक रूप से "हलाल" किया जाता है, क्या नहीं ?

और यह सब सीख कुरआन में ही है जिसका उल्लेख मुसलमान "holy” के साथ ही करते हैं । क्या ये अल्लाह का इस्लाम नहीं है ? क्या आप कुरआन को अल्लाह की जुबान नहीं कहते ? क्या आप फख्र के साथ नहीं कहते कि उसमें एक भी शब्द बदला नहीं है ? तो कौनसा अलग अल्लाह का इस्लाम है जो कहता है कि काफिरों को भी इस्लामी शासन में मुसलमान के बराबरी में हक़ और इज्जत दो ? कौनसा अलग अल्लाह का इस्लाम है जो कहता है कि इस्लामी हुकूमत में काफिरों अपने धार्मिक उत्सव वैसे ही धूमधाम से मनाने दो जैसे मुसलमान विधर्मी देशों में अपने उत्सव मनाते हैं ? क्या आप का अल्लाह का इस्लाम आप को ऐसे कहता है ? कोई अलग किताब है आप के अल्लाह के इस्लाम की ? क्या उसमें काफिरों को humiliate करने की सीख नहीं है ? जरा हम भी तो देखें ?

सच कहूँ तो मुझे ऐसे अल्लाह के इस्लाम वाले लोगों से मुल्ला का इस्लाम वालों पर ज्यादा भरोसा होता है । ये अल्लाह का इस्लाम वाले काफिरों के पास ही अपनी बात रखते हैं । भाई, अगर आप की ज़्यादातर कौम अमनपसंद है तो इन मुल्ला का इस्लाम वालों को दफना दीजिये, आप का अल्लाह का इस्लाम क्या है वो दुनिया को दिखाये । ये नहीं होगा, आप बस यही कहते रहते हैं कि हमारे कुछ भाई भटके हैं, वे जिसमें मानते है वह अल्लाह का इस्लाम नहीं, मुल्ला का इस्लाम है । लेकिन आप उनसे कहिए कि चलिये हम मिलकर उन्हें खत्म कर देते हैं तो भी ये नहीं मानेंगे । ना खुद खत्म करेंगे ना करने देंगे ।

वाजिब सवाल उठता है - क्या ये वाकई मुल्ला के इस्लाम को खत्म करना चाहते हैं ? क्या वाकई अल्लाह का कोई इस्लाम है या इस्लाम एक ही है जो दुनिया को परेशान कर रहा है और दुनिया के क्रोध से उसे बचाने के लिए इनहोने ही ये अल्लाह के इस्लाम की मरीचिका (Mirage) का निर्माण किया है ? आप को पता है, रेगिस्तान में मरीचिका आम है । आभास होता है वहाँ पानी है, बस, होता कुछ नहीं है, बस आप भटक जाते हैं । इस्लाम आया है रेगिस्तान से ही, आप को इतना तो पता ही होगा ।

कभी इन अल्लाह के इस्लाम वालों से हुजूर के चरित्र के प्रसंग विशेष की चर्चा कीजिएगा, या फिर कुछ खास आयतों की, पहले तो आप से कहेंगे कि आप कुछ नहीं जानते, आप संदर्भ गलत दे रहे हैं, अरबी में पढ़िये.... डटे रहिए अपनी बात पर, भेड की खाल उतार फेंक भेड़िया प्रकट होगा। कम से कम आप को Hater का तमगा दिया जाएगा, क्योंकि exposer कहने को ईमानदारी चाहिए होती है जो ईमान पर सवाल आते ही खत्म हो जाती है ।

एक बात और, ये सभी अल्लाह के इस्लाम के झंडाबरदार, किसी कट्टर इस्लामी देश में नहीं रहते, बल्कि किसी सेक्युलर काफिर मुल्क में ही पाये जाएँगे, जहां इस्लाम उपद्रव कर रहा है । Ghamidi साहब ने भी जो लिखा है, बहुत अलग नहीं है । और वे भी पाकिस्तान में नहीं रहते ।

कुल मिलाकर - अल्लाह का इस्लाम - काफिर को बरगलाने का, मुल्ला के इस्लाम के लिए Time Please वाला जुमला ही दिखता है ।

कुछ कहना है तो स्वागत है । शेयर - कॉपी पेस्ट - सेव कर लीजिये, काम आएगा जब कोई फेसबुकिया सूफियों से बरगलाया कथित सेक्युलर या फिर कोई कांइया वामी मिल जाये । पग पग मिलते हैं, काम आएगा यह ।

जय हिन्द !

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