श्री गणेशाय नम:
|| देव लोक से चिट्ठी आई है, आई है, चिट्ठी आई है || || बड़े दिनों के बाद हम भक्तों की याद गणपति बप्पा को आई है ||
प्रिय भक्तजनों,
महाकाल व माँ पार्वती का लालन हूँ |
मै सिद्ध विनायक हूँ,मै ही गजानन हूँ |
गणेश जी भी मैं ही हूँ, व्यंजनों में मोदक मुझे अति प्रिय हैं |
वैसे तो मूषक मेरा वाहन है फिर भी करोड़ों मील की यात्रा पलक झपकते ही पूरी करता रहता हूँ,
भक्तजन प्यार से हमें मनौतियों के राजा के नाम से पुकारते हैं, कुछ लोग हमें गणपति बप्पा के नाम से भी पूजते हैं,
शुभ कार्यों व अनुष्ठानों की पूर्ति के लिए मेरा नाम प्रथम लेना सदा से प्रथा व प्रचलन में रहा है बीते कई वर्षों से पूरे भारतवर्ष में तथा संसार भर में मेरा प्राकट्य उत्सव बड़ी ही श्रद्धा व धूमधाम से भक्तजन कराते रहे हैं |
आज उन्हीं भक्तों ने एक स्मारिका के माध्यम से मेरी महिमा प्रचारित वह प्रसारित करने का संकल्प लिया है वह सब मेरे हैं और मैं उनका हूँ सभी भक्तजन साधुवाद के पात्र हैं |
वैसे तो मैं अदृश्य रहकर भी भारतीय जनमानस के बीच सदा रहता हूँ | लाखों लाख भक्तों को दर्शन हेतु कतारबद्ध खड़ा होकर खड़ा देखकर बड़ा ही अधीर हो जाया करता हूँ |
मैं इस पत्रिका के माध्यम से पृथ्वी लोकवासियों को यह संदेश देता हूँ कि वह माता-पिता का आदर अनुसरण करें भाई-बंधुओं व बहन बेटियों व अन्य परिजनों का सम्मान करें, ऐसा करने वालों पर हमारी कृपा दृष्टि सदा बनी रहती है |
सत्य तो यह है कि सांसारिक गतिविधियों को देखकर ही मैं देवलोक पर कम पृथ्वी लोक पर ज्यादा भक्तों के मध्य रहता हूँ |
मैं वचन देता हूँ कि जो भी भक्त मेरे बताए संस्कारों का पालन करते हुए जीवन यापन करेंगे उसका हमेशा ही श्री गणेशाय नम: होता रहेगा, सदा आपका शुभ मंगल होता रहेगा |
स्मारिका का प्रत्येक अक्षर एक पुष्प की तरह सुसज्जित हो यही मेरा शुभ आशीष है |
|| ॐ शांति: शांति: शांति: ||