तुम्हारे लिये
सुलभ काव्य संग्रह
पूजन, नमन, वन्दन किया प्रिये,
सजल नयन अभिनन्दन किया प्रिये!
अकिंचन था, पापी था मन मेरा,
इस मन को सनन्दन किया प्रिये!
तुम्हारे लिये, तुम्हारे लिये
तुम्हारे लिये प्रिये, तुम्हारे लिये!!
सुरभित, सुगंधित, सुष्मित, सघन
हरित मंडप पर नीलभ गगन
चिन्ताओं की आहुति दे, हो हवन
साकार हो अपना परिणयन
प्रकृति भी ऐसे सुशोभित हुई,
की हल्दी-चन्दन किया प्रिये!
पूजन, नमन, वन्दन किया प्रिये,
सजल नयन अभिनन्दन किया प्रिये!
तुम्हारे लिये, तुम्हारे लिये
तुम्हारे लिये प्रिये, तुम्हारे लिये!!
सृष्टि-रचित अद्भुत प्रीत है,
मिलन है उनका जो विपरीत हैं,
निरंतर से अंतर का ये अंत है,
नवमीत गाते नवगीत हैं!,
मिलन पर जब अश्रु अर्पण हुए,
रागों ने क्रन्दन किया प्रिये!
पूजन, नमन, वन्दन किया प्रिये,
सजल नयन अभिनन्दन किया प्रिये!
तुम्हारे लिये, तुम्हारे लिये,
तुम्हारे लिये प्रिये, तुम्हारे लिये!
एक-एक क्षण वर्षों-वर्षों का हो,
एक संबंध बिना निष्कर्षों का हो,
क्षणिक सा ये अनुराग, लम्बा चले,
कुछ अनुभव हमें उत्कर्षों का हो!
जब ये विचार हृदय ने किया,
सुखद सा स्पन्दन किया प्रिये!
पूजन, नमन, वन्दन किया प्रिये,
सजल नयन अभिनन्दन किया प्रिये!
अकिंचन था, पापी था मन मेरा,
इस मन को सनन्दन किया प्रिये!
तुम्हारे लिये, तुम्हारे लिये,
तुम्हारे लिये प्रिये, तुम्हारे लिये!!
………………. सुलभ
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