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दूर कोई मद्धिम तारा चमकता- बुझता ...
उस संघन छोर के ..
निशा रोर से उठता वह कोलाहल ..
कही अंतरिक्ष में एक तारा जो टूटता हैं ...
अपनी प्रेयसी के मिलन के लिये न जाने कितनी दूरी तय करता
वह उस अंधकार में अपनी गति को बचाता चला जा रहा ...
वह जानता हैं की उसका विनाश निश्चित हैं ...
परन्तु वह उस पंतगे के समान
अपनी ही मृत्यु से प्रेम कर बैठा हैं ...
उसको किसी भी बात का कोई शोक नही बस अपनी स्वनिर्मित राह पर बडा़ जा रहा मिलन को व्याकुल ...
उस आसीम आकाश के हृदय को भेदता ...
अपने सभी साथियो से आज वह अधिक उर्जावान दिख रहा क्योकि आज उसका अंतिम सफर है ...
वह उस मानव की तरह नही जो अंत में भी जीवन तलाशता हैं ....
वह प्रसन्न है उदास नही ...
क्योकि वह जानता हैं ,
अंत निश्चित हैं ...
अपनी चोच मे आकाश को दबाये वह उडा जा रहा अपनी प्रेयसी के मिलन मे अधीर ..
बिना किसी आशा के ...
वह शांत नही है ...
आज उसकी चाल मे इक दमक हैं ,
वह बताना चाह रहा कि देखो मैं जा रहा हूँ ...
अपनी प्रेमिका से मिलन के लिये इस अमिट ब्राह्मांड को चीर कर ..
अपने पीछे वह छोडे जा रहा एक काला स्याह धब्बा जो शायद अधिक समय तक रिक्त ही रहेगा ...
पर क्या उसके अासतित्व को भूला दिया जायेगा ...
नही वह अपनी छाप को अपनी प्रेयसी पर छोड कर अमर हो जायेगा ...
हर्ष और प्रेम का एक मिला जुला रूप हैं ..
वह तारा अजीब हैं न बिल्कुल मानव स्वभाव के विपरीत ...
क्योकि वह प्रेमी है ...
हा इक पगला सा प्रेमी जो अपना सब कुछ अपनी प्रेयसी को सौप कर अपने खनिजो से उसमे एक नव जीवन का संचार करना चाहता हैं ...
एक क्षण में वह विलीन हो गया ...
पृथ्वी की भुजाओ में
जिस कारण से वह टूटा था उस संघन अंतरिक्ष के छोर से आज पुर्ण हुआ ...
अपने पीछे वह छोड़ गया इक अंधकार जो उसके प्रेम की कहानी कहता ..
युगो तक जिवित रहेगा ....
@अंकित तिवारी "आवारा"

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