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क्या अखलाक शहीद हुआ था? अगर हाँ, तो क्यूँ शहीद हुआ था ?
क्या इस केस के असली गुनहगारों पर अभियोग चल सकता है ?
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१ जून २०१६ की नोट और पोस्ट, आज पुनर्प्रकाशित ।
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आखिर बकरा अरबी ही निकला, हिन्दी नहीं । अरबी में बकरह याने गाय ।
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>> गंभीर प्रश्न

>> अखलाकने गोवंश हत्या का गुनाह किया था जो की उप्र के कानून तहत अपराध है । इसलिए अगर जांच की रिपोर्ट ये कबूलात देती है कि यह गोमांस ही है, बकरे का मांस नहीं, तो यह गुनाह जान बूझ कर किया गया था।

>> इस से इसकी हत्या का समर्थन नहीं होता । लेकिन क्या गुनाहगार की हत्या के लिए राज्य शासन को जबर्दस्त मुआवजा देना उचित है?

>> अगर यह उदाहरण (मिसाल - precedent) बन जाये तो अगर कोई चोर या लुटेरा भीड़ के हत्थे चढ़कर मृत्यु को प्राप्त हो और वो जन्म से मुसलमान हो तो उसके परिजन भी इसी तरह का मुआवजा मांग सकते हैं ।

>> तब क्या राजनीतिक फायदे के लिए तत्कालीन सरकार को जनता के पैसों की इस तरह लूट करानी चाहिए?

>> जहां गलत कारणों के लिए नौकरी से निकाला गया हो, पुरस्कार कोई गलत व्यक्ति को दिया गया हो या रक़में गलत व्यक्तियों को बांटी गई हो तब कानूनन कारवाई द्वारा गलती सुधारने का प्रावधान होता है ।

>> क्या तत्कालीन मा मु उप्र सरकार के विरुद्ध कोई जनहित याचिका दायर कर के यह करदाताओं का धन तथा जायदाद की रिकवरी की जा सकती है? <<

अगर फैसला सरकार के खिलाफ हो तो क्या वक्फ बोर्ड अखलाक के परिजनों को भरपाई कर देंगे?

वकील मित्रों का अभिप्राय है कि PIL करने का आधार तो है । तो जरा मुद्दों की revision कर लेते हैं ।

1. उप्र राज्य कानून के तहत गोवंश की हत्या अपराध है । अखलाक ने बछिया की हत्या की थी, जो उसके खिलाफ आरोप लगाया गया था।

2. जहां का वो रहनेवाला था, उस क्षेत्र को मिनी राजपूताना कहा जाता है । क्षेत्र हिन्दू राजपूत बहुल है, कई लोगों के पास लायसेनसी शस्त्र हैं तथा ये लोग धर्म के विषय में संवेदनशील हैं । उनकी धार्मिक भावनाएँ आहात करने की उस क्षेत्र के मुसलमानों की हिम्मत नहीं । ऐसे में बछिया काटने के परिणाम जानलेवा होने के पूरे आसार थे ।

3. उस समय मैंने फेसबुक पर प्रश्न उठाया था कि क्या अखलाक जानबूझ कर शहीद तो नहीं हुआ था ? जिस तरह मृत पशु का मांस और हड्डियाँ आदि पायी गयी थी, मानों ध्यान आकर्षण करने हेतु ही रखी गई हो । याने क्या वो चाहता था कि उसे मारा जाये ? क्या उसके मृत्यु के बाद उसके परिजनों को मिला धन और फ्लैट्स इस मौत की तय कीमत थे ?

4. अब विचार करते हैं सबूत और साक्ष्यों को व्यवस्था तंत्र द्वारा झुठलाने का । सवाल - किसके कहने पर यह सब किया गया ? इन्द्र तक पहुँचने में कितने तक्षकों से निपटना होगा ?

5. दादरी में रेड करने गए पुलिस फोर्स का रजिस्टर देखा जाये और उन पुलिस कर्मियों की वहाँ के निवासियों द्वारा शिनाख्त हो ताकि उनसे कोर्ट में पूछ ताछ की जा सके ।

6. जाहिर है अखलाक के परिजन जानते थे कि पशु बछिया ही है, बकरा नहीं है ।

7. मतलब अगर वे कहते हैं कि वो बकरा ही था और अखलाक बेगुनाह था, तो वे झूठ बोल रहे हैं ।

8. इस से उनको ढेरों धन तथा अप्रत्याशित जायदाद मिली, याने झूठ बोलने का कारण है । अच्छा, इन्शुरंस के पैसों के लिए suicide करने के किस्से तो सुने ही होंगे आप ने । यहाँ तो कौम के लिए शहीद होने का डबल बेनीफिट !

9. समूचे व्यवस्था तंत्र को अपने फायदे के लिए झुकाने वाला व्यक्ति कौन था यह स्थापित करना होगा, तथा ऐसे करने से उसका क्या लाभ था यह भी स्थापित करना होगा ।

10. अगर यह हुआ तो काफी और मामलों पर से अनपेक्षित रूप मे पर्दा हटेगा। यह राजनयिक फ़ायदों को परिलक्षित कर के की गयी हत्या है । यह न भूलें कि अखलाक की हत्या के बाद ही असहिष्णुता की नौटंकी पूरे शबाब पर आई थी ।

11. जिस सरकार ने अपने बल का उपयोग कर के मामला दबाया, पुलिस बल से लोगों की आवाज दबा दी, सरकारी संस्थानों को नरो वा कुंजरों वा करने को मजबूर कर के उनकी साख मिट्टी में मिला दी, क्या उसके बरकरार रहते दबावमुक्त जांच की अपेक्षा की जा सकती है ?

एक काल्पनिक किरदार है, Pinocchio जो अगर झूठ बोलता है तो उसकी नाक लंबी हो जाती है । पुरानी कहावत है, वक्त के साथ बदलती हैं कथाएँ । आज उसकी नाक लंबी होगी या टेढ़ी, पता नहीं ।

जनहित याचिका के लिए जनमत बनाना होगा, इसलिए आप सभी से इसे शेयर करने की करबद्ध प्रार्थना है ।

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