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संशोधन धन और संसाधन की मांग करता है । संशोधक  / वैज्ञानिक के पास खुद का दिमाग होता है, डट कर काम करने की लगन होती है लेकिन धन नहीं होता । इसीलिए कंपनियाँ या संस्थाएं उन्हें नौकरी पर रखती हैं ।  

 संशोधन में धन का निवेश होता है इसलिए वो निरुद्देश्य संशोधन नहीं होता । आज पेटण्ट के जमाने में तो इस बात को भूल ही जाएँ । उद्देश्य होता ही है और इसीलिए अनुभव के आधार पर, संशोधन के लिए जब निवेश की प्रार्थना की जाती है तभी स्पष्ट किया जाता है कि इस संशोधन का फलित क्या अपेक्षित है । उसी के साथ साथ यह भी बताना जरूरी होता है कि उस से संस्था को क्या लाभ हो सकते हैं । तभी फंडिंग होती है ।

 आइये बात करते हैं एक वैज्ञानिक संशोधन की जिसके फल तो केवल राजनैतिक दिख रहे हैं । USA के ख्यातकीर्त संशोधक हैं डॉ Michael J Bamshad. Genetics में बड़ा नाम है । इनहोने एक संशोधन किया था जिसके निष्कर्ष 2001 में प्रसिद्ध हुए थे । आज जो मूलनिवासी आंदोलन है वो इसी संशोधन की दुहाई दे कर कह रहा है कि भारत के ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य,  विदेशी वंश के हैं ।  

इनके प्रचार का अंदाज अनोखा है । 21 मे 2001 के Times Of India में डॉ बामशाद के संशोधन के विषय में एक समाचार था । फिर ये भी कहते हैं कि ब्राह्मणों ने इस समाचार को गायब किया है, लेकिन हम ने उस पेपर की कॉपी रखी है ।  वैसे ये लोग झूठ बोलने में किसीसे हारनेवाले नहीं । खैर, पुराने रिकॉर्ड तो सशुल्क ही देखने मिलते हैं तो इनके कौन मुंह लगे?   

लेकिन आते हैं डॉ बामशाद के संशोधन पर । कुतूहल का विषय होगा कि यह संशोधन का उद्देश्य क्या था। उसकी फंडिंग किसने की थी । ज्ञान के क्षेत्र में इस संशोधन से क्या वृद्धि हुई है ।  और दूसरी बात यह, कि इस पेपर को ले कर जो  वामन मेश्राम का विडियो है उसका  Durban Conference का इससे कोई संबंध? 

 

दुर्भाग्य से डॉ बामशाद ठहरे अमेरिकन । उनसे पूछताछ कौन करें? वैसे भी जॉर्ज हेडली जैसे गुनाहगार को ले कर भी अमेरिका ने कोई सहकार्य नहीं किया, इनको ले कर करने की गुंजाइश कम ही है । कम से कम इन मूलनिवासियों की तो कड़ी पूछताछ होनी चाहिए । ये सभी उपक्रमों के लिए पैसे कहाँ से आते हैं? ये आप के तथाकथित आख्यानों के रचयिता कौन हैं, इनके सत्य होने के सबूत क्या है? पूछताछ कड़ी और कड़ाई से भी होगी तो बहुत राज खुल सकते हैं ।  

 और भी एक सवाल का जवाब मिले । जो कोई भी मूल निवासी देने से टाल जाता है अभी तक । अगर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य विदेशी नस्ल के होने का आप का दावा है और इसलिए आप उन्हें इस देश से भगाना या उनका संहार करना चाहते हैं – जी, संहार ! भगाकर ये जाएँ कहाँ ? इनके संशोधन के मुताबिक जो इनकी मूल भूमि है वहाँ तो और प्रजा हजारो सालों से बस चुकी है । देश, संस्कृति अलग है, तो वहाँ ये कैसे जाये? उत्तर स्पष्ट है । तो मेरे सवाल पर आता हूँ ।  

 ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तो इस धरती पर हजारो वर्षों से हैं। लेकिन उनके बाद जो आए और उनका डीएनए तो निर्विवाद बाहरी है – मुस्लिम – उनके बारे में क्या राय है आप की?  इस प्रश्न का जवाब देने की किसी भी मूलनिवासी की हिम्मत नहीं हुई अब तक । जाहीर है, कुत्ता अपने मालिक पर नहीं भोंकता । इनकी फंडिंग की जांच हो, काफी खुलासे हो जाएँगे । राष्ट्रिय सुरक्षा के दृष्टि से यह आवश्यक भी हो रहा है ।

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