मेरा अधूरा प्यार, मेरी यादें
मैने मन ही मन सोचा ..." हो न हो वो दूर से ही मेरी शक्ल देखकर वापस चली गई ।" खुद पर रोना आ गया । सपनो की दुनिया धाराशयी हो गई। पैरो की मानो जान निकल चुकी थी । शायद मजनू को भी लैला की शादी विरोधी कबीले के शहजादे से होने पर इतनी मायूसी न हुई हो । घोर निराशा मे डूबा ...मै वापस जाने की सोचने लग
अधूरा प्यार...😍😍
आज से कोई इक्कीस साल पहले ...ll कलकत्ता के बडा बजार मे मुजफ्फरपुरवालो की एक गद्दी मे तब आढत का व्यापार होता था । वहां रहकर.. अपने से 16 साल बडे भाई की देखरेख मे... एक लडका बीए प्रथम वर्ष मे पढाई कर रहा था । गद्दी मे उस लडके के हमउम्र तीन और लडके भी बिहार के अलग अलग शहरो से आकर अलग अलग कालेज मे पढ रहे थे । चारो मे दूर की रिश्तेदारी थी और गहरी दोस्ती भी..ll उस लडके के नाम संजय अग्रवाल था.. यानि आपका खादिम...जिसकी ये आपबीती है ।
भइया उन दिनो... भाभी और दो बच्चो के साथ साल्टलेक मे रहते थे ।और मै गद्दी मे ही रहता था क्योंकि मुझे दोस्तो के साथ रहना पसंद था । इतवार का दिन था । भइया इस दिन गद्दी पर नही आते थे। उनके निर्देशानुसार मुझे सुबह 11 बजे एक पार्टी को फोन करने पेमेंट लेने जाना था । वो 11 बजे का समय...!!! मुझे नही मालूम था कि मेरी जिंदगी मे क्या बदलाव लाने वाला है ।
मैंने फोन मिलाया ।दूसरी तरफ से एक खूसट बंगाली के फोन उठाने की उम्मीद थी ।मगर उम्मीद के विपरीत दूसरी तरफ से एक सुरीली से आवाज आई ...
हेलो ...
आवाज किसी लड़की की थी ll मैं हैरान रह गया ll फिर मुझे लगा की शायद वह उस बंगाली की बेटी होगी । मैंने पूछ लिया ..."जी आप कौन .? "
उस ने जवाब दिया .."मनीषा ..."
मेरे मुंह से अनायास ही निकला.." मनीषा कोइराला.?"
वह हंस पड़ी ll जैसे जलतरंग बज उठी ll जैसे कोयल बागो मे कूकी हो..ll वो हंसी इस 18 साल के लड़के के दिल में मानो मंदिर की घंटी की तरह बजी ।
खैर...ll फिर उसने पूछा .." जी आपने क्या नंबर मिलाया है ..? "
मैने नंबर बताया ..." 344953"
" ये 343953 है । रांग नंबर..ll"
"आपकी आवाज बडी मीठी है ।' मैने जल्दी से कहा ।
वो फोन रखते रखते रूक गई । उसने कहा .." क्या मतलब..?"
" जी मैने कहा आपकी आवाज बहुत मीठी है "
"तो...?"
"मै आपसे दोस्ती करना चाहता हूं।" मैने धडकते दिल के साथ कहा
"शटअप" ..उसने फोन रख दिया ।
साहबान...मुझे भी अचंभा ही होता अगरचे वो पहली बातचीत मे ही दोस्ती कर लेती । तब नये नये युवा हुए थे ।वो जमाना भी आज की तरह इतना खुला नही था । किसी लडकी से दोस्ती होने के ख्याल ने ही अल्हड दिल मे रोमांच सा भर दिया । खैर ...मझे उसका नंबर मालूम हो चुका था ।
फिर अगले कई दिनो तक मै अक्सर उस नंबर पर फोन मिलाता। जब कभी उसके पापा मम्मी या भाई फोन उठाते तो तुरत काट देता था ...और यदि वो उठाती तो उससे बाते करने की कोशिश करता । अब इसे मेरी वाकपटुता कहे या मेरी किस्मत...अगले एक डेढ महीने मे उसके साथ मेरी मित्रता इस हद तक तो हो ही गई कि यदि वो फोन उठाती ...और मौका होता तो हम लंबी लंबी बाते करने लगे थे । उसने बताया कि वो दसवी मे पढती थी और साल्टलेक मे उनका निवास था ।
उन दिनो साल्टलेक मे ....दिल्ली के अप्पूघर की तर्ज पर एक थीम पार्क नया नया बना था ....निको पार्क..।।फोन पर हुई मित्रता से आगे बढने के क्रम मे जब हमने पहली बार मिलने का निर्णय किया तो निको पार्क का ही चयन किया । मुझे खूब याद है वो 20 जनवरी 1996 का दिन था ।उस जमाने मे जेब मे इतने पैसे नही होते थे । मगर गद्दी के मेरे सहनिवासी दोस्तो ने मिलकर मुझे दो सौ रूपये का फाइनेंस कर दिया था ..। आखिर लडकी का मामला था...!! कमीने मुझसे जलते भी थे मगर इतने एक्साईटेड भी थे कि उन्हे गवारा नही था कि उनके साथी का परवान चढता प्यार महज सौ दो सौ रूपये की भेंट चढ जाए।
मै आपको बताऊ...कि मै बचपन से ही अपने सांवले रंग को लेकर अजीब सी हीन भावना के साथ बडा हुआ था । अपने रूपरंग को लेकर खुद मे आत्मविश्वास की बहुत कमी थी और डर रहा था कि वो मेरी शक्ल देखने के बाद मुझे रिजेक्ट न कर दे । उस दिन मैने कलाकार स्ट्रीट के एक मंहगे और फैंसी सैलून मे शेव करवाई और पहली बार फेसियल करवाया...। दो रूपये मे होनेवाले काम के लिए तब शायद 80/- उडा दिये ...वो भी सिर्फ इसलिए कि थोबडा जरा चमक जाए और उस नाजनीन पर थोबडे का ही रोब पड जाय। अपनी शक्ल को लेकर उन दिनो इतना शक था कि ... सैलून से टिपटाप बनकर निकलने के बाद ...मैने एक cool cake की टिकिया भी खरीदकर जेब मे रख ली ।
सुबह 11 बजे का वक्त तय हुआ था । मै दस बजे ही 28 नं मिनी बस पकड कर निको पार्क पहुंच गया था और food court area मे एक थम्सअप की बोतल लेकर धडकते दिल के साथ इंतजार करने लगा । उन दिनो मै संजय दत्त का तत्कालीन मशहूर हेयर स्टाइल रखता था जिसमे सामने से बाल छोटे और पीछे से कंधो तक आनेवाले लंबे बाल होते थे । अपनी पहचान के तौर मैने उसे यही बताया कि ...मेरे लंबे बाल है और हाथो मे थम्सअप होगी । अपनी उस मनोदशा को याद करता हूं तो खुद पर हंसी आती है । दस से ग्यारह बजे के दौरान मैने वाशरूम जाकर तीन बार cool cake से अपना चेहरा साफ किया था । दिल मे अजीब सी बेचैनी थी । इस दौरान उस आयुवर्ग की जो भी लडकी वहा से आ जा रही थी ...उसे देखकर प्रत्याशा मे दिल की धडकने तेज हो जाती..." क्या ये ही है .?" यदि लडकी खूबसूरत होती तो धडकने तेज हो जाती ...उसमे सिमरन और खुद मे राज का तसव्वुर करते हुए ..." तुझे देखा तो ये जाना सनम.." टाईप रोमांटिक गीत दिल मे बजने लगता । और यदि लडकी मामूली शक्लोसूरत की होती तो मेरा नास्तिक मन तब ईश्वर से मनाने लगता कि ..." हे भगवान ...ये "वो" न हो .."!!
इसी उहापोह मे बारह बज गये । तब तक थम्सअप की तीन बोतले पी चुका था और वो नही आई । दिल घोर निराशा से भर गया । मैने मन ही मन सोचा ..." हो न हो वो दूर से ही मेरी शक्ल देखकर वापस चली गई ।" खुद पर रोना आ गया । सपनो की दुनिया धाराशयी हो गई। पैरो की मानो जान निकल चुकी थी । शायद मजनू को भी लैला की शादी विरोधी कबीले के शहजादे से होने पर इतनी मायूसी न हुई हो । घोर निराशा मे डूबा ...मै वापस जाने की सोचने लगा ....कि तभी ...
नीले सलवार सूट मे एक बेहद खूबसूरत लडकी सामने से आती दिखाई दी जिसका रूख मेरी टेबल की तरफ था । वो मेरी बगल वाली कुर्सी पर निसंकोच आकर बैठी और बेहद आत्मीयता से बोली .." साॅरी ...मुझे लेट हो गई । घर मे कुछ काम था इसलिए ।"
साहबान....मेरा जैसे लल्लू को एक अनिंद्य सुंदरी लेट आने के लिए साॅरी बोल रही थी । मै उसे कैसे बताता कि उसके लिए मै एक घंटे तो क्या ...एक जीवन भी इंतजार कर सकता था ...!!
फिर अगले दो घंटे हम साथ रहे । पैडल बोट चलाई ...कुछ झूलो मे साथ झूले ...इधर ऊधर टहलते रहे। मै मानो स्वपनलोक मे विचर रहा था । जी करता था मानो वक्त रूक जाए ।
साहबान ..वो इतनी सलीकेदार और खूबसूरत थी कि उसके साथ मै खुद को हूर के साथ लंगूर फील कर रहा था । खैर ...दो बजे करीब मैने उसकी समहति से एक टैक्सी मे उसे G.C ब्लोक के मोड पर छोडा और फिर मिलने का वादा भी लिया ।
ये थी मेरे पहले प्यार से मिलने की कहानी का पहला चैप्टर । अगले तीन वर्ष की एक परीकथा की बुनियाद जिसका आगाज जितना खूबसूरत था ...अंत उतना ही दर्दनाक था । मेरी शख्सियत को संवारने मे मनीषा का अनकहा योगदान बेमिसाल था ....
बाकी की यादों का अगला भाग यहाँ पढ़ें ...😊