इस्लाम फले फूले लेकिन, इस्लामवाद स्वीकार नहीं ..
जो भारत की विपुल विविधता को अंगीकृत करते हुए हमें अपने महान् पूर्वजों राम ,कृष्ण तीर्थंकर भगवान् महावीर , गुरु नानक देव , भगवान् गौतम बुद्ध , महान् चन्द्रगुप्त ,सम्राट् अशोक, विक्रमादित्य, अखण्ड भारत के दृष्टा एवम् सृष्टा आचार्य चाणक्य , स्वराज्य स्वदेशी स्वभाषा ,अछूतोद्धार और नारीशिक्षा के उद्घोषक.
इस्लाम फले फूले लेकिन , इस्लामवाद स्वीकार नहीं ।
" भारत में जनमें पले किन्तु ,' भारतमाता ' से प्यार नहीं ।
भारत में रहने का उनको , कुछभी नैतिक अधिकार नहीं।।
आतंकी दुष्ट ज़िहादी अब , स्वीकृत कोई गद्दार नहीं ।
' इस्लाम पन्थ ' भी बढ़े फले ,'इस्लामवाद' स्वीकार नहीं ।।"
विशेष .....
"भारतमाता ".... भारत माता कोई देवी नहीं न उसकी कोई परम्परागत पौराणिक मूर्ति ही है वह अखण्ड भारत की भूसांस्कृतिक चेतना की समग्रता में भारत के जनगण की सामूहिक अभिव्यक्ति है । जो भारत की विपुल विविधता को अंगीकृत करते हुए हमें अपने महान् पूर्वजों राम ,कृष्ण तीर्थंकर भगवान् महावीर , गुरु नानक देव , भगवान् गौतम बुद्ध , महान् चन्द्रगुप्त ,सम्राट् अशोक ,विक्रमादित्य , अखण्ड भारत के दृष्टा एवम् सृष्टा आचार्य चाणक्य , स्वराज्य स्वदेशी स्वभाषा ,अछूतोद्धार और नारीशिक्षा के उद्घोषक महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती , भारत और भारतीयता को पुनर्जीवन प्रदान करने वाले स्वामी विवेकानंद , अमर शहीद भगत सिंह ,चंद्र शेखर आजाद ,पं राम प्रसाद बिस्मिल , उनके महान् शिष्य क्रन्तिकारी शहीद अशफ़ाक उल्ला आदि की अविच्छिन्न परम्परागत से जोड़ती है ।साथ ही अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा पर गौरवान्वित होने का भाव उत्पन्न करती रहती है ।
"इस्लाम पन्थ".. भारत में अनेक आस्तिक नास्तिक पन्थ ,सम्प्रदाय हैं इस्लाम भी उनके अस्तित्व का आदर करते हुये उनमे से एक बनकर अन्यों की भांति एक पन्थ के रूप में निर्वाध फूल फल सकता है ।
"इस्लामवाद "..... किन्तु इस्लामवादी विचारक चिंतक अनुयायी भारत के अपने पूर्वजों को नकारते रहे हैं । उन्हें "सह अस्तित्व "बिलकुल स्वीकार नहीं है ।वे भारत के समस्त पंथों अनुयायियों का तलवार और ताकत से समापन करके समूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप का टुकड़े टुकड़े करके क्रमशः इस्लामीकरण का अनवरत ज़िहादी अभियान चलाये हुये हैं । इस के चलते भारत के अभारतीय करण के तहत वे भारत की समस्त भाषा लिपियों ,वेश भूषा , अपने और हमारे पूर्वजों की महान् सांस्कृतिक परम्परा को पूर्णतः समाप्त करके इसको इस्लामिस्तान में रूपान्तरित करने का गत एक सौ वर्ष से सफल प्रयास करते रहे हैं । उनके इस अभियान की सफलता में भारत के कथित ' महान् सन्त' और उनके अनुयायी " सेकुलर संतवादियों " का अविस्मरणीय घातक योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है । इस
"इस्लामवादी महा अभियान " की गति गत दो दशकों में कुछ अधिक तीव्र और आक्रामक हो गई है । इस गैर मुस्लिमों के समापन के साथ भारत के "इस्लामीकरण के महाअभियान" को हम "इस्लामवाद" के रूप में मानते और जानते हैं ।