हिन्दी English


अछूत

*डिस्क्लेमर-- कहानी की मांग पर कुछ अशलील बाते सांकेतिक रूप से लिखी गई है।

विकासपुरी..।। दिल्ली का एक पाॅश इलाका। चारो तरफ आलीशान कोठिया,बडे बडे शोरूम..दुकाने..माॅल..मल्टीप्लेक्स। मगर उत्तमनगर को निकलती सडक के किनारे वो झुग्गियो का जंगल..मानो मखमल मे टाट का पैबंद।।

इन्ही झुग्गियो मे बिहार, यूपी, नेपाल, बंगाल के.. गरीब और पिछडे इलाको से आये परिवार रहते है। इन परिवारो के अधिकांश पुरूष विभिन्न प्रकार की मजदूरी का काम करते है.. तो औरते/लडकिया आसपास के बडे कोठियो वाले सेठो के घर साफ सफाई बर्तन कपडे का काम करती है।

इन्ही औरतो मे एक है...सुखिया..।। बिहार के समस्तीपुर जिले से अपने परिवार के साथ रोटी रोजी की तलाश मे दिल्ली आई है।। जाति से मुसहर सुखिया.. अभी मुश्किल से अठारह की भी नही हुई । शादी को चार साल हो गये है। जिस पेट मे रोटी का जुगाड़ भी नही ...वहां चार साल मे चार बार बच्चा ठहर चुका है ..।। दो बार तो चौथे और तीसरे महीने मे गर्भपात हो गया ...मगर रोटी को तरसता पेट फिर भी दो बच्चियो को दुनिया मे धक्का देने मे कामयाब हो ही गया । बडी वाली तीन साल की है और छोटीवाली छ महीने की..ll

उसका पति..भोला.. सदर बजार मे ठेला चलाता है। शाम तक तीन चार सौ बन जाते है मगर एक दिन काम पर जाता है तो दो दिन दारू के ठेके पर। सो घर मे खर्चे के लिए सदा चिकचिक रहती है। सुखिया का महीने मे तीन चार बार पति से पिटना आम बात है।

सुखिया को बडी मुश्किल से दो घरो मे बर्तन मांजने और झाडू पोछे का काम मिला था।इन घरो की गंदगी और जूठन साफ करने का मेहनताना इतना नही मिलता था कि आराम से वो सास सहित अपना और दो दुधमुंही बच्चियो के पेट को भूख नामक गंद से निजात दिला सकती..।।.... इन्ही मे एक घर था...ललितनारायण तिवारी का।

तिवारी जी स्थानीय सेन्ट्रल बैंक मे मैनेजर थे। 48 के हो चले थे...मगर जेन्ट्स ब्यूटी पार्लर मे नियमित फेस मसाज ...ब्लीच और अधपके बालो को डाई कराकर 38 का दिखने की कोशिश करते थे।हलांकि उनकी मंहगी पतलून से बाहर लटकता तोंद ...और आंखो के गिर्द लटकती थैलियां उनके जवां दिखने के अरमानो पर पानी फेर देती थी..।। मगर चाहे जो हो ...सफेद बालो से भरे सीने के अंदर दिल अभी भी जवां ही था...।।

घर मे उनकी पत्नी के सिवा सिर्फ बूढी बीमार मां थी जो सारे दिन अपने कमरे मे ही रहा करती थी। एक बेटी थी जिसका विवाह चार साल पहले जमनापार हो चुका था। इनकी पत्नी एक मैट्रिक पास हाऊसवाईफ थी और धर्म कर्म मे बडी रूचि रखती थी। दिल्ली जैसे शहर मे रहकर भी अपने परंपरागत जातीय भेदभाव से खुद को दूर नही रख सकी थी। ऊंच नीच ..छुआछूत मे बडा विश्वास रखती थी ।यही वजह थी कि तबीयत ठीक न रहने के बावजूद ...उन्हे ये मंजूर नही था कि कोई "नीच" जातवाली उनके घर का चौका बर्तन करे। सुखिया से वो सिर्फ झाडूपोछा करवाती थी ...।।

तिवारीजी का रंगीन मिजाज भरा दिल सुखिया पर आया हुआ था। सुखिया इनके घर रोज सुबह नौ बजे आती थी और सारे घर का झाडूपोछा करके दस बजे चली जाती थी। तिवारीजी दुनिया देखे ...खाये खेले आदमी थे। सुखिया से दो चार बाते करते ही जान गये कि इसके घर आर्थिक तंगी है...परदेसी है और कोई इनका मददगार नही है। चिडिया फंसने को तैयार थी ...।। एक कुशल शिकारी की तरह तिवारी जी बस सही मौके के इंतजार मे थे ...जो वो जानते थे कि इतवार को आनेवाला था।

हर इतवार को तिवारीजी की पत्नी साढे नौ बजे एक कीर्तन मंडली मे नियमित रूप से जाती थी...और दोपहर के बाद ही लौटती थी। इस दिन तिवारीजी की छुट्टी रहती थी जिसे वो आमतौर पर सारा दिन टीवी देखकर और आराम करके गुजारते थे। इतवार को दोपहर उनके बैंक का चपरासी पांडे घर आ जाता था...जो उनकी मालिश वालिश कर देता था...गाडी धो देता था और दोपहर का खाना भी बनाता था। ये स्थापित रूटीन कई सालो से चल रहा था।

इतवार को...अपेक्षानुरूप साढे नौ बजे उनकी पत्नी चली गई। पांडे लगभग 12 बजे आता था। दो ढाई घंटे घर मे सिर्फ तिवारी जी और सुखिया..।। उनकी मां का तो होना न होना बराबर था।

तिवारी जी अपने कमरे मे चुपचाप टीवी चलाकर सुखिया का इंतजार करने लगे। अभी वो बाहर आंगन मे झाडू लगा रही थी ....और इसके बाद उनके बेडरूम की बारी थी।।

सुखिया झाडू हाथ मे लिए कमरे मे आई। अंधी हवस को बस जनाना जिस्म दिख रहा था। सैयाद ने फाख्ता पर धावा बोल दिया। कमजोर और बेबस फाख्ता ने विरोध मे पंख फडफडाये...!!

शक्ति और अमीरी ने ...गरीब और मजबूर बेबसी से.. बडी बेशर्मी से कहा..." देख सुखिया...यदि मेरी बात मान लेगी तो फायदे मे रहेगी !! हर इतवार को ये मौका आयेगा...तू बस इतवार को मेरी मुराद पूरी कर देगी तो हर बार पांच सौ रूपये दे दिया करूगा...और दो चार घरो मे काम भी दिला दूंगा ।।"

हर इतवार..पांच सौ..!! यानि उसकी बच्चियो के दूध.. दवा और कपडे का खर्च..!! जरूरत और बेबसी की मारी फाख्ता ने शिकार बनना स्वीकार कर लिया और पंख ढीले छोड दिये...।। हवस ने मनमानी कर ली ...जरूरत ने मनमानी सह ली..।।

आधे घंटे बाद .।।..मुठ्ठी मे पांच सौ रूपये दबाये सुखिया बनिये की दुकान की ओर जा रही थी...जहां से उसे दूध के पैकेट और राशन खरीदना था।।

उसके बाद हर इतवार को हवस ....मजबूरी को अपना शिकार बनाने लगी। तिवारी जी को भी बुढौती मे नये नये शौक सूझने लग गये। हर इतवार को जब सुखिया उनके कब्जे मे होती....वो अपने चालीस हजार वाले सैमसंग के नये स्मार्टफोन पर स्वीडीश पोर्न फिल्मे चला लेते...और सुखिया को भी बडे मजे लेकर दिखाते।। उन पोर्न वीडियोज को देखकर वैसी ही हरकते दोहराने की कोशिश करते ....और अपनी अंधी और कुंठित हवस को पूर्ण किया करते। सुखिया के लिए वो सबकुछ बडा अजीब और नया था। रति क्रीडा के नाम पर ऐसी ऐसी हरकते भी हो सकती है...उसने सपने मे भी नही सोचा था।। मगर पांच सौ रूपये नामक हाकिम...उससे सबकुछ करवा लेता था।

पांचवा इतवार आया..।। तिवारी जी बडी उत्कंठा से अपनी पत्नी के जाने की राह देख रहे थे। सुखिया झाडू लगा रही थी।। तभी पांडे का फोन आया कि आज वो नही आ सकेगा।

"तो आप दोपहर का खाना कैसे खायेगे..?" ....पत्नी ने तिवारी जी से पूछा

"खाना मै बना दूंगी बहूजी..।" तिवारीजी के बोल पाने से पहले ही सुखिया बोल पडी..." आप चिंता मत कीजिए।"

पंडिताइन ने हिकारत भरी निगाह से उसे देखा और धिक्कार भरे स्वर मे बोली..." चुप कर कलमुंही..!! अब ब्राह्मणो के चौके मे तुझ जैसे नीच जात के लोग घुसेगे..? तुमलोगो का तो छुआ पानी भी हराम है हमलोगो के लिए... और तिवारीजी तेरे हाथ का बना खाना खायेगे..!! हांय..? खबरदार जो चौके की तरफ कदम भी बढाया... समझ गयी..!!"

सुखिया ने चुपचाप सिर झुका लिया।

तिवारीजी ने पंडिताइन को समझाया..." अरे मै होटल मे खा लूंगा... तुम फिकर न करो और कीर्तन मे जाओ।"

सुखिया की ओर आग्नेय नेत्रो से देखती हुई पंडिताइन ...भगवद भजन के लिए रवाना हो गई। आज के लिए उन्होने एक खास भजन याद किया था जिसके बोल थे..." ये तेरी दुनिया मोरे रामा तू मालिक है सबका
कोई छोटा न बडा तू ही मालिक है सबका.."

पंडिताइन के जाते ही तिवारी ने सुखिया के हाथ से झाडू लेकर एक ओर फेंका और उसे हमेशा की तरह कमरे मे ले आये। सुखिया यंत्रवत निर्विरोध उनके साथ चली आई। तिवारी जी ने उसके हाथ मे पांच सौ रूपये थमाये और कीमत वसूलने मे लग गये।

सुखिया की नजरो के आगे अभी तक पंडिताइन का वो हिकारत भरा चेहरा घूम रहा था। तिवारीजी तबतक मोबाइल पर एक पोर्न वीडियो लगा चुके थे। सुखिया भी अबतक ऐसे कई वीडियोज देख चुकी थी। इससे पहले की तिवारी जी आज कोई नया तरीका आजमाते....अचानक सुखिया ने तिवारीजी के बाल पकडे और उनका चेहरा जबरन अपनी जांघो के बीच धंसा दिया।

एक मिनट बाद...!!

पलंग पर निर्वस्त्र लेटी सुखिया एकटक छत की ओर
पंखे को देख रही थी ।।बांयी मुठ्ठी मे सौ सौ के पांच नोट एक गोले की शक्ल ले चुके थे।। आंखो से दो बूंदे टपककर बिस्तर मे समा गई।

तिवारीजी वही कर रहे थे जो वो चाहती थी...।।

उसके कानो मे पंडिताइन की आवाज गूंज रही थी...." तुमलोगो का छुआ पानी भी हराम है हमारे लिए..।। तिवारी जी तेरे हाथ का बना खाना खायेगे...?? तिवारीजी तेरे हाथ का बना खाना खायेगे.? तिवारीजी तेरे हाथ का....तेरे हाथ का ... तेरे हाथ का...!!!"

उसके चेहरे पर एक विद्रूपपूर्ण मुस्कान तैर गई..।। उसके दिल मे जीत की एक अजीब सी खुशी हो रही थी..।। उसने तनिक सिर उठाकर हिकारत भरी नजरो से नीचे तिवारी जी को देखा...जो हवस के सागर मे गोते लगा रहे थे। वो सोच रही थी ..." क्या वो अछूत है.?..क्या उसके हाथ का बना तिवारीजी नही खा सकते.?"

पंखा चलता रहा...
वो सोचती रही...
तिवारीजी लगे रहे..

Comments

Sort by

© C2016 - 2024 All Rights Reserved