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कल एक मित्र का फोन आया, वो डिवायडर पीर की कथा की लिंक दीजिये ना ! वैसे कथा मजेदार है, कई नए मित्रों ने पढ़ी नहीं होगी तो ये दफन कथा उखाड़कर आप के खिदमत में पेश कर रहा हूँ ।

यह एक 100% काल्पनिक कथा है, पहले ही बता देता हूँ ।
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डिवायडर पीर की कथा
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एक बड़े शहर में एक छोटा हादसा हुआ । बड़े बड़े शहरों में छोटे छोटे हादसे होते रहते हैं । रात के 2 बजे फूल स्पीड में दौड़ते एक गाड़ी से अपने ही मस्ती में रस्ता क्रॉस करता एक नशेड़ी टकराया । टक्कर इतने ज़ोर से लगी कि नशेड़ी हवा में उछाला गया और रोड डिवायड़र पर गिर पड़ा, मर गया । गाड़ीवाला भाग गया, पता नहीं कौन था। नशेड़ी की लाश मिली, बस । अब असली खेल ।

बाकी नशेड़ियों ने भाई को फोन लगाया । भाई खुद नशेड़ी नहीं था, बस नशेड़ियों को चरस बेचता था। उसका दिमाग ठिकाने पे था और सही चल रहा था । उसने तुरंत आदमी भेजे, खुदाई के हथियारों के साथ । बाकी भी ढेर सारा सामान साथ भेज दिया । लाश को ठिकाने लगा दिया ।

सुबह वहीं डिवायड़र पर एक मजार प्रगट हुई । नशेमन ई पीर एक्स वाई ज़ेड । चादर, फूल, अगरबत्ती और खंभे से आंकड़ा डालकर ट्यूब लाइट भी । चंदे के लिए एक बॉक्स भी । पीर साहब के कुछ मुरीद भी अलमस्त हालत में बैठे थे वहीं, और एक सावधान व्यक्ति भी था जो मुस्तैदी से चंदे के बक्से पर और मुरीदों पर नजर रखे हुए था ।

हवालदार साहब ठिठक गए । सावधान व्यक्ति लपका, उसने हवालदार साहब को पीर बाबा के महात्म्य से अवगत कराया । हफ्ते दर हफ्ते उनकी संपन्नता में पीर बाबा की रहमत से कैसे इजाफा होगा यह भी बताया । हवालदार अनुभवी थे, सूझ बूझ वाले व्यक्ति थे । आश्वस्त और प्रसन्न हो कर हवालदार साहब मार्गस्थ हुए । प्रसन्नता का और भी एक कारण था जिसे भारत के सभी लोग जानते हैं ।

नगर निगम के लोग भी आए, बाबा की रहमत से वे भी खुश हो कर चले गए ।
हफ्ते भर में बाबा स्थापित हो गए । साल भर में तो हर शुक्रवार वहाँ ख़ासी भीड़ होने लगी । पुलिस को ट्रेफिक डायवर्जन करने की नौबत आ जाती । लेकिन उनको उस से कोई शिकायत न थी, बाबा की कृपा उन पर भी अनवरत थी । भीड़ धंधे का मौका ! स्टॉल लगने लगे, जिनसे नगर निगम के लोगों को भी बाबा की कृपा का लाभ होता ।

एक दिन बाबा को स्थापित करनेवाले भाई ने सोच लिया कि अब बाबा की रहमत का बंटवारा नहीं होगा। पुलिस और नगर निगम के लोग काफिर होते हैं, उनपर बाबा की रहमत नहीं होनी चाहिए । भाई ने पीर बाबा की रहमत का हफ्ता बंद कर दिया उन काफिरों के लिए । उसका गणित सही था और उसने लोग जुटा भी रखे । पुलिस और नगर निगम के लोग तोड़ने आए तो वोट बैंक ने उनका बड़े कड़ाई से मार्ग रोका । नेता दौड़े आए, मंत्री भी दौड़े आए । मंत्री भी आखिर नेता ही हैं, मंत्री पद तो आता जाता रहता है, चुने जाये तब मंत्री बनेंगे ना ! वोट बैंक को संभालने की जरूरत उन्हें पता थी । पुलिस और नगर निगम वाले कुछ न कर पाये - न मजार का हरा झण्डा उखाड़ पाये , न भाई का बाल उखाड़ पाये ।

डिवायडर पीर की महिमा अपरंपार है । आप भी सजदा जरूर करिए । इस कथा को भी जो पढ़ता है उसे सख्त हिदायत है कि इसे हल्का न समझे, बल्कि तुरंत कम से कम अपने वाल पर कॉपी पेस्ट करे । कम से कम 200 लोगों को WhatsApp करें । जीतने काफिर ग्रुप हैं उसमें फॉरवर्ड करें । जिसने किया उसने कुछ काफिरों का धर्म बचा लिया। जिसने नहीं किया उसे अपने घर की औरतों के गले में काले ताबीज ( ताबीज, ताबीज; ताबिश नहीं) देखने पड़े । इसलिए पढ़ते ही इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ।

वैसे, एक लड़का था धर्मेश, जो उस रात से गायब है जिसके दूसरे दिन डिवायडर पीर बाबा प्रगट हुए थे । उसके दुखी माँ ने बताया कि उसे चरस की लत लगी थी, उसी भाई के अड्डे पर रात रात पड़ा रहता था । वैसे अभी अभी पता चल रहा है कि पीरों की और दो नई जमातें भी पैदा हुई है ।

एक हैं प्लैटफ़ार्म बाबा , दूसरे पुलिया बाबा ।

बाबा नं 1 - प्लैटफ़ार्म पीर - हर शुक्रवार किसी चयनित रेलवे प्लैटफ़ार्म पर धंधे के टाइम में आके टेम्पररी दफन हो जाते है। उस टेम्पररी मजार के इर्द गिर्द टेम्पररी बाजार भी लग जाता है ।

अब शायद ये भी प्रचलित किया जाएगा कि उनको कुछ चढ़ावा चढ़ाया जाये तो ही उस स्टेशन से जानेवालों की यात्रा सुरक्षित होगी, नहीं तो प्लैटफ़ार्म बाबा का कोप होगा, आप को कम से कम यात्रा में जुलाब होंगे जिसमें ट्रेन में खरीदे कुछ अनाप शनाप खाने का कोई रोल नहीं होगा। इस से आप प्रभावित नहीं होंगे तो कुछ और कोप भी ईजाद किए जा सकते हैं - जैसे कि गर्भवती महिला का गर्भपात या कम से कम यात्रा में ही प्रसूति होना इत्यादि । हार्ट कंडीशन वालो को दौरा भी ।

बाबा नं 2 - पुलिया पीर - किसी भी बिज़ि पादचारी पूल पर अचानक प्रगट हो जाते हैं मजार के रूप में । वहाँ कैसे और कब दफन हुए ये बात नै पूछने का ! फिर वो श्रद्धा स्थान बन जाता है । उसके बाजू लगे स्टॉल कोई तोड़ेगा नहीं जो आम हालात में तोड़े जाते । यह तो पुलिया पीर का प्रभाव है कि अब नहीं टूटेंगे । आप भी तावीज बंधवाइए ! हल्ला हो ..... और धंधा हो जमकर !

आगे पढ़ने के लिये टच या क्लिक करें - मौके के मजारों के पीछे की सोच व रणनीति

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