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आक्रमण के हथियार बदल गए हैं-4

""किसी भी राष्ट्र समाज में संस्कृति की मूल संवाहक-संरक्षक स्त्रियां और बालिकाएं होती हैं।वह संस्कृति को अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करती हैं।स्त्रियाँ भ्रष्ट संस्कृति नष्ट,फिर तो राष्ट्र स्वाहा।आंतरिक कमजोर दुश्मन इसलिए स्त्रियों-बच्चो पर मौन और गोपनीय आक्रमण करता है।सदैव सजग रहना ही बचाव है।,,
""आपस्तम्ब,,

हालांकि सभी की सजगता के कारण "रईस, फिल्म बुरी तरह पिट गई..और 10 करोड़ रूपये भी न कमा सकी किन्तु कमाई के झूठे आंकड़े के मीडियाटिक वार के सहारे 'हकला,किसी तरह इज्जत बचा रहा है फिर भी....!
साम्राज्य दरकन के बावजूद एक नजर इधर डालें।
क्या यह संयोग है कि बाॅलीवुड में सभी जगह पुरुष मुस्लिमों का वर्चस्व है और उन सभी की पत्नियाॅ हिन्दू है???
शाहरुख खान की पत्नी गौरी एक हिंदू है।आमिर खान की पत्नियां रीमा दत्ता /किरण राव और सैफ अली खान की पत्नियाँ अमृता सिंह / करीना कपूर दोनों हिंदू हैं।
नवाब पटौदी ने भी हिंदू लड़की शर्मीला टैगोर से शादी की थी।
फरहान अख्तर की पत्नी अधुना भवानी और फरहान आजमी की पत्नी आयशा टाकिया भी हिंदू हैं।
अमृता अरोड़ा की शादी एक मुस्लिम से हुई है जिसका नाम शकील लदाक है।
सलमान खान के भाई अरबाज खान की पत्नी मलाइका अरोड़ा हिंदू हैं और उसके छोटे भाई सुहैल खान की पत्नी सीमा सचदेव भी हिंदू हैं।
आमिर खान के भतीजे इमरान की हिंदू पत्नी अवंतिका मलिक है। संजय खान के बेटे जायद खान की पत्नी मलिका पारेख है।
फिरोज खान के बेटे फरदीन की पत्नी नताशा है। इरफान खान की बीवी का नाम सुतपा सिकदर है। नसरुद्दीन शाह की हिंदू पत्नी रत्ना पाठक हैं।
एक समय था जब मुसलमान एक्टर हिंदू नाम रख लेते थे क्योंकि उन्हें डर था कि अगर दर्शकों को उनके मुसलमान होने का पता लग गया तो उनकी फिल्म देखने कोई नहीं आएगा।ऐसे लोगों में सबसे मशहूर नाम युसूफ खान का है जिन्हें दशकों तक हम दिलीप कुमार समझते रहे।
महजबीन अलीबख्श मीना कुमारी बन गई और मुमताज बेगम जहाँ देहलवी मधुबाला बनकर हिंदू ह्रदयों पर राज करतीं रहीं।बदरुद्दीन जमालुद्दीन काजी को हम जॉनी वाकर समझते रहे और हामिद अली खान विलेन अजित बनकर काम करते रहे। मशहूर अभिनेत्री रीना राय का असली नाम सायरा खान था।जॉन अब्राहम भी दरअसल एक मुस्लिम है जिसका असली नाम फरहान इब्राहिम है।
जरा सोचिए कि पिछले 50 साल में ऐसा क्या हुआ है कि अब ये मुस्लिम कलाकार हिंदू नाम रखने की जरूरत नहीं समझते बल्कि उनका मुस्लिम नाम उनका ब्रांड बन गया है।यह उनकी मेहनत का परिणाम है या हम लोगों के अंदर से कुछ खत्म हो गया है?
वे बड़े तरीके से एक्सेप्ट करवाते हैं।यह नार्मल है।
सहिष्णुता है।परंतु अपनी स्त्रियों को सात पर्दे में छुपा कर रखते हैं।दू-तरफा तलवार है।

ये आधुनिकता के नाम पर बाजार के माध्यम से आक्रमण है।फ्रेन्डशिप बैन्ड,ग्रीटिंग,चाॅकलेट के गिफ्ट पैक सबने अपना बाजार सेट कर लिया है।फ्रेंडशिप बैड को बाजार में बिकवाने ने वाला जेंडर है करण जौहर.....जिसके बारे में न जाने क्या-क्या प्रसिद्ध है। ""कुछ-कुछ होता है,, जैसी फिल्म से एक ट्रेन्ड सेट कर दिया.... दोस्ती शब्द का दुरूपयोग।उसने भारत के युवा वर्ग को टारगेट किया ''आधुनिकता,,के ड्रामे मे साफ्ट टारगेट खड़ा कर दिया।यह सब पूरी रचना-योजना से हुआ।लव-जेहाद का मैदान पचास साल से तैयार किया जा रहा था।जरा सोचिए!!
एक मरियल से हकले को लेकर एक कॉमन जेंडर किस युद्द के मैदान को फतह करवा रहा था।
इसका शिकार सबसे अधिक महिलाएँ हुई।
लेकिन दंगल और 'रईस,का बुरी तरह पिट जाना इस बात का संकेत है कि युद्द के नगाड़े बज चुके हैं।छुपे हथियार पहचाने जा चुके हैं।

आप पता करिये कितने पुराने मुस्लिम अभिनेताओं,कलाकारों कर्मियों की बेटियां फिल्म लाइन में जाने दी गयी??
कभी सोचा आपने महान शोमैन राजकपूर जी अपने जीते-जी कपूर खानदान की बेटियों को क्यों नही सिनेमा में काम करने देते थे।अमिताभ बच्चन अपनी बेटी को फिल्मो में क्यों नही ले गए???
बाद के सभी शिकार थे।
वामी-सामी-कामी हथकंडा सफल होता गया।

फिर जरा सोचिए कि हम किस तरह की फिल्मों को,और लोगो को बढ़ावा दे रहे हैं?
क्या वजह है कि बहुसंख्यक बॉलीवुड फिल्मों में हीरो मुस्लिम लड़का और हीरोइन हिन्दू लड़की होती है?
समझ,तथ्य,प्रमाण और आंकड़े क्लियरकट जता रहे हैं।
कि सब कुछ असहज है,कोई बड़े तरीके से चीजें कंट्रोल कर रहा है।आपकी स्त्रियां-बच्चे निशाने पर है।
फिल्म उद्योग का सबसे बड़ा फाइनेंसर दाऊद इब्राहिम,उसके गुर्गो,और हवाला माफियाओं के कंट्रोल में रहा है।वही यह चाहता है।कभी टी-सीरीज के मालिक गुलशन कुमार ने उसकी बात नहीं मानी और नतीजा सबने देखा।राकेश रोशन पर चली गोलियां...और भी तमाम कुछ।वहां एक गड़बड़ झाला काबिज है।
आज भी एक फिल्मकार को मुस्लिम हीरो साइन करते ही दुबई से आसान शर्तों पर कर्ज मिल जाता है। इकबाल मिर्ची और अनीस इब्राहिम जैसे आतंकी एजेंट सात सितारा होटलों में खुलेआम मीटिंग करते देखे जा सकते हैं।
सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान, सैफ अली खान, नसीरुद्दीन शाह, फरहान अख्तर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी,फवाद खान जैसे अनेक नाम हिंदी फिल्मों के सफलता की गारंटी इमेज में ढाल दिए गए हैं।अक्षय कुमार, अजय देवगन और ऋतिक रोशन जैसे फिल्मकार इन दरिंदों की आंख के कांटे हैं।उनकी फिल्मों के रिलीजिग के वक्त जरा मुस्लिम समुदाय के रिएक्शन पर गौर फरमाये बहुत कुछ समझ जाएंगे।

तब्बू, हुमा कुरैशी, सोहा अली खान और जरीन खान जैसी प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों का कैरियर जबरन खत्म कर दिया गया।क्या एक साथ उनका कैरियर खत्म हो जाना संयोग है??अगर आप यह समझ रहे तो फिर आप जरूरत से ज्यादा भोले हैं.....साफ़-साफ़ समझिये वे मुस्लिम हैं और इस्लामी जगत को उनका काम गैर मजहबी लगता है।
फिल्मों की कहानियां लिखने का काम भी सलीम खान और जावेद अख्तर जैसे मुस्लिम लेखकों के इर्द-गिर्द ही रहा है।आप जानकर स्तब्ध रह जाएंगे की मैक्सिमम स्क्रिप्ट राइटर या तो कम्युनिष्ट है या मुस्लिम।
वे आतंन्किय,माफियों, गुंडों,देशद्रोहियों को लॉजिकल बना कर आपके सामने लाते हैं।वे कम्पनी,माफिया,फिजा जैसी फिल्म बनाकर अपराधियो को नायक इम्पोज करते हैं।सूची बनाइये खुद साफ़ दिखने लगेगा।

जिनकी कहानियों में एक भला-ईमानदार मुसलमान, एक पाखंडी ब्राह्मण, एक अत्याचारी - बलात्कारी क्षत्रिय, एक कालाबाजारी वैश्य, एक राष्ट्रद्रोही नेता, एक भ्रष्ट पुलिस अफसर और एक गरीब दलित महिला होना अनिवार्य शर्त है।इस तरह की कुछ फिक्स सी चीजें भी हैं।इन फिल्मों के गीतकार और संगीतकार भी मुस्लिम हों तभी तो एक गाना मौला के नाम का बनेगा और जिसे गाने वाला पाकिस्तान से आना जरूरी है।अंडरवर्ड के इन हरामखोरों की असिलियत को पहचानो और हिन्दू समाज को संगठित करो तब ही तुम तुम्हारे धर्म की रक्षा कर पाओगे।
चाणक्य का एक कथन याद है न?
सबकुछ छोड़कर सबसे पहले कुल और स्त्रियों को बचाओ।

यदि इन्हें आप हीरो समझ रहे है तो आप सावधान हो जाये वरना वे आप के बचे-खुचे सभ्यता को निगल जायेगे।अपनी बहन-बेटियां बचाओ।अब युद्द मैदानों में नही लड़े जाते,न ही अब सीधे मंदिर तोड़े जाते हैं।वे औरते छीनने और बच्चो को गुलाम बनाने का कोई न कोई तरीका निकाल ही लेते हैं।अब फिल्मे इस युद्द का नया बेजोड़ हथियार है।तुम्हारी बेटियाँ-बहन,बच्चो को बर्बाद करने का हथियार।नही सम्हले तो आने वाली पीढियां आप को कायर डरपोक तो कहेंगी ही साथ में महा नासमझ-मूर्ख भी कहेंगी। कि सब कुछ जानते हूए भी आप ने उन को आपने घर में घुसने दिया।बचाने छोड़ने का रास्ता क्यों नही अपनाया।सबसे आसान तरीका है इनकी फिल्मो को अपने बच्चो को मत देखने दो मीडिया चाहे जितना कमाने का प्रचार करे।
वे पिट जाएंगे रईस, दंगल और फैन की तरह।अगर कमा रहे होते तो सभी राज्यो के मनोरंजन कर में जमा भी हुआ होता।इनकम टैक्स विभागों में हिसाब होता।
झूठ के हथकंडे खत्म हुए।

साभार-यह पोस्ट और रिफरेन्स मूलत:मेरे सहपाठी-मित्र Dharmendra Paigwar जी का भेजा हुआ है जो की भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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