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वन्स अपॉन अ टाइम इन देल्ही

दिल में बड़े बड़े अरमां लिये एक आदमी कल सुबह जल्दी ही उठ गया था... अपने बंगले के बाहर उसने जश्न मनाने की बड़े पैमाने पर तैयारी कर रखी थी.. आतिशबाज़ी, ढोल नगाड़े, मिठाईयां सब कुछ था.. बंगले को सजा धजा रखा था.. बंदनवार लगे थे.. मेहमानों की ख़ातिरदारी के लिये लाल रंग का कालीन बिछा रखा था.. उसके जीवन का एक और बहुत बड़ा दिन था...

बहुत सपने संजोए हुए वो जल्दी नहा धोकर, मफ़लर, स्वेटर पहनकर, उकड़ू होकर अपने खास साथियों के साथ सुबह से टीवी के सामने बैठ गया था... उन्हें उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास था कि अब हम छोटे से शहर की घुटन से निकलकर दो बड़े सूबों की खुली हवा में सियासत की खुशबू का मज़ा लेंगे... वो राजनीति बदलने और अपने से बड़े सूरमाओं को धूल चटाने को बेताब था... जिस दाढ़ी वाले आदमी से वो परेशान था.. इस बार वो उसे सबक सिखाने की कसम खाकर बैठा था...

लेकिन... लेकिन... लेकिन... सुबह से दोपहर हुई और दोपहर से शाम हो गई... सूरज ढल गया... इसी के साथ उसकी गंदी और मनहूस शकल भी पूरी तरह उतर गई... उसके लिए कहीं से कोई खुशखबरी नहीं आई..

उसके बंगले में एक अजीब सी ख़ामोशी छा गई थी.. सबकी शक्लों पर बारह बज रही थी.. उसकी पार्टी दोनों सूबों से चुनाव हार चुकी थी... एक ने तो उसे एक सीट भी देने लायक नहीं समझा और दूसरे ने उसे उम्मीद से बेहद कम सीटें दीं.. सब तरफ से हताश निराश.. वो और उसके साथी समझ ही नहीं पा रहे थे कि बोलें क्या...

इसी बीच एक दुबला पतला आदमी बंगले में दाखिल हुआ.. और कमरे में जाकर मनहूस शकल वाले आदमी के ठीक पीछे जाकर खड़ा हो गया और धीरे से कहा.. सरजी... जैसे ही वो पीछे मुड़ा उसने पूरी ताक़त से उसके गाल पर एक झन्नाटेदार तमाचा रसीद कर दिया.. और बोला.. हरामखोर.. अब कुछ काम कर ले दिल्ली के लिए.. नहीं तो जानता है न लाली बोलते हैं मुझे.. तेरी औक़ात से ज़्यादा पहले ही तुझे बहुत कुछ मिला है अब चुपचाप रोज़ दफ़्तर जाया कर और ज़्यादा ट्विटर ट्विटर किया न तो तेरी ऊँगलियाँ भी तोड़ दूँगा..

बड़ी तेजी के साथ वो दुबला पतला बंगले से बाहर निकल गया और बंगले में वो आदमी अब अपनी उतरी हुई मनहूस शकल को सुजाकर बैठा था... उसके साथी एक एक करके जाने लगे.. उसके तमाम अरमानों पर "झाड़ू" फिर चुका था...

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