गोल रोटी - नापतौल के हॉटपॉट से या पुराने चूल्हे से
चूल्हा जलता था थेपड़ी से हमारे राजस्थान में उपला को थेपड़ी बोला जाता है .. उपला के टुकड़ों को छाणा बोलते है .. ईंधन के रूप में लक्कड़ भी जलता जिसको कठफाड़ बोलते है ... और पतली कंटीली लकड़ियाँ जिनको छलडी कहा जाता है ... मिट्टी के कुल्हड़ में दाल सब्ज़ी कढ़ी बनती ... कुल्हड़ को हमारे तावणीया बोला जाता है .
#स्मृतियां
बचपन में हमारे घर में सिलेंडर और गैस चूल्हा नहीं था .. चूल्हे पे मेरी दादी और माँ रोटियां बनाती थी मोस्टली बाजरे की रोटी तव्वे जितनी बड़ी .. गेंहू की रोटी होली दिवाली त्यौहार या मेहमान आने पे बनती थी ..
चूल्हा जलता था थेपड़ी से हमारे राजस्थान में उपला को थेपड़ी बोला जाता है .. उपला के टुकड़ों को छाणा बोलते है .. ईंधन के रूप में लक्कड़ भी जलता जिसको कठफाड़ बोलते है ... और पतली कंटीली लकड़ियाँ जिनको छलडी कहा जाता है ... मिट्टी के कुल्हड़ में दाल सब्ज़ी कढ़ी बनती ... कुल्हड़ को हमारे तावणीया बोला जाता है .. या पीतल की देकची में बनती थी ..
चूल्हे से बाहर गर्म राख निकाल के उसिपे कुल्हड़ या पीतल की देकची रखते थे .. ताकि सब्ज़ी दाल कढ़ी गर्म रहे और उकाले (कलके) आते रहे .. उस गर्म राख को बास्ते या बोबर कहा जाता है ..
घर के आंगन में 8 चूल्हे (रसोई) थी चाचा ताऊ की .. सबका खाना एक समय लगभग बन के तैयार .. फिर हम 16 भाई और 5 बहनें कुल 21 भाई बहन बराबर के छोटे छोटे घूमते हुए आंगन में खाते थे .. आंगन के बाहर बकरियां गाय भैंस एक ऊंट और एक घोड़ी बंधती थी ... खुले में ..
राशन वाले से महीने में एक वार 15/= ₹ का 5 लीटर घासलेट (केरोसिन) मिलता .. पम्प से हवा भर के स्टोव में चाय बनायी जाती उससे ..
1994 में पहली बार गाँव में गैस एजेंसी खुलने पे सिलेंडर आया हमारे घर .. पापा सदर (दिल्ली) से 150/= ₹ में चूल्हा लाये थे .. बर्तन अब स्टील के हो गए थे ..
पीतल के बर्तन 180/= ₹ प्रति किलो के हिसाब से मैंने घरवालों से छुप के बेंच दिए थे जब 12वीं क्लास में आया तब .. और दोस्तों के साथ मिल के 20-22 हजार रुपयों का घालमेल कर लिया.. खैर... आज घर में सुख सुविधा का सब सामान है .. समय ने करवट ली है .. भगवान की कृपा है और हम सक्षम है ..
सगी बहन नहीं है मेरे .. ताऊजी की 5 बेटियां मेरी बहनें है .. 16-18 साल की उम्र में उनको बियाह दिए .. उस उम्र में मेरी बहनें घर के काम में दक्ष थी .. रोटी सब्जी पकवान बनाना .. सिलाई कढ़ाई बुनाई .. स्वेटर बुनना .. गाय भैंस बकरी का गोबर ... निरना चारना (खाना पानी) से ले के दुहने तक सब काम ...
सुबह सुबह 25 साल की एक लड़की टीवी में नाप-तौल चैनल पर बोल रही थी .. चकला कहीं जा रहा है बेलन कहीं जाता है .. रोटी गोल नहीं बनती .. तव्वे पे रोटी को पूरा जला के बोल रही है गैस चूल्हे तव्वे पे रोटी जलती है मुझसे वो भी टेढ़ी बनी हुई .. आप हॉटपॉट लो ये बेहतर है ..
वो ऐड देख के मेरे बचपन की स्मृतियां मेरे दिमाग में आ गयी ... मेरी 3 साल और 2 साल की दोनों बिटिया खाना बनते वक़्त मेरी माँ (उनकी दादी) से रसोई से आटा ले के आती है ... लकड़ी का चकला लकड़ी की बेलन ... रोटी बेलने का प्रयत्न करती है .. गोल रोटी बेलने का ..
समझ नहीं पा रहा हूं वो टीवी वाली ... 25 साल वाली छोरी है या #डाकण !!!! ...