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एक जंगल में कहीं से कौओं को एक जोड़ा उड़ता हुआ आया और एक ऊंचे पेड़ पर घोंसला बनाने में जुट गया। कौओं को घोंसला बनाता देख। उस पेड़ के नीचे रहने वाली एक चूहे ने कहा- “देखो भाई! इस पेड़ पर घोंसला बनाना सुरक्षित नहीं है।”
कौए ने कहा- “तो फिर हम कहां बनाएं घोंसला?”
चूहे ने कहा- “यह पेड़ ऊंचा होते हुए भी सुरक्षित नहीं हैं। तुम मेरी बात समझने की कोशिश करो। ये अंदर से खोखला है।”
अभी चूहे की बात पूरी ही नहीं हुई थी कि कौए ने कहा- “हमारे काम में दखल मत दो। तुम जमीन के अंदर रहने वाले लोग क्या जानते हैं कि घोंसला कैसे बनाया जाता है।“
इस तरह कौए ने घोंसला बनाया और फिर मादा कौए ने जल्द ही अंडे दिए। एक दिन अचानक आंधी चली और पेड़ हवा से जोर-जोर से हिलने लगा। इस तरह देखते ही देखते ही कौए का घोंसला धराशायी हो गया। उनके अंडे नीचे गिर गए। यह सब देख कौआ और मादा कौआ काफी दुखी हो गए।
चूहे ने यह सब देखा तो कौए से कहा- “तुम लोग तो कहते थे कि पूरे जंगल को जानते हो। लेकिन तुमने इस पेड़ को बहार से देखा है। मैंने पेड़ को अंदर से देखा है। पेड़ की जड़े कमजोर हो गईं थीं। लेकिन तुम मेरी बात नहीं मान रहे थे। और फिर जो नहीं होना था वह तुम्हारे साथ हो गया।“
दरअसल हमें चीजों को बाहर से ही नहीं बल्कि अंदर से भी जांचना और परखना चाहिए। यदि ऐसा नहीं करते हैं तो कठिनाइयाँ उठानी पड़ती है।’जिस जंगल में बड़े और ऊँचे विशाल पेड़ नही होते वहां ‘रेंडी,को ही वृक्ष कहा जाता है।,अब जरा भारतीय खबरे देखिये.गाय,बीफ,घोडा,जीव,राममंदिर,मस्जिद,वोट,कांग्रेस,सपा,बसपा,वामपंथीराजनीति,काश्मीर-मुस्लिम-पाकिस्तान,इतिहास–सेकुलरिज्म-साम्प्रदायिकता,अर्थनीति-स्वार्थ-पालिसी और पकड़… वंशहित!!!!
संगठन-असुरक्ष-व्यक्तिगत हानि,दलित-पिछड़ा-सवर्ण-अवर्ण,खेल-सिनेमा-साहित्य-एजुकेशन-टीवी-मनोरंजन-लेखन,विचार-,बिजनेस आदि-आदि वह शब्दावलियाँ हैं जिनके आसपास पूरी भारतीय पत्रकारिता सिमटी हुई है`इसकी नकारात्मकता,विभाजकीय मानसिकता समझिये। सब कुछ ”निहित वंशवादी राजनीतिक गोलबंदी,, तक सिमट कर रह गया है।आजादी के बाद या उससे हजार साल पहले ही कुछ वंश पनपे…सब कुछ उन्ही वंशो के इर्द सिमटा हुआ है,76 प्रतिशत अर्थ-व्यवस्था भी।आजादी के बाद वंशो ने लोकतंत्र का ठीक से दोहन किया है।कारपोरट जगत पूरा न्यायतंत्र,पूरी कार्यपालिका,मीडिया,फ़िल्में कुछ समाज का हरेक फील्ड “”वंशवादी दृष्टिकोण से प्रभावित,रहा। लगातार आगे बढ़ रहा था बस बीच में आ गई मोदी सरकार और सब गड़बड़ा गया।उनके ‘दिमाग,को लंबे समय से अपनी विरासत के लिए “”कांप्लेक्स, भरा गया है और कुछ नही…..फिर ‘मालिकानों,, का हित वंश की सत्ता में है।इन सालों में खबरे न्यूज-व्यूज तक ही सीमित न थीं।बल्कि…प्रोपेगेंडा…खबरें दबाने,प्लांट करने,ट्वीस्ट करने,मेनुपुलेट करने,प्रेशर बनाने,कैम्पेन के नये तरीके….और मैनेज करने वाले “मजबूत गिरोह, बने हुए थे।…यह तोड़-मरोड़ भी लोगो की दृष्टी में आ गईं।इस प्रकरण ने भारतीय जन-मानस को बैठे-बैठाए पत्रकारिता का प्रशिक्षण करा दिया।

कुछ दिनों पहले मोदी जी ने “”न्यूज-ट्रेडर्स,शब्द कहा था……उनके लिए यह सही मायने में सटीक शब्द था।
हालांकि इधर बड़ी तेजी से बदलाव भी सामने आ रहा है….अब उनमे बगावत के सुर भी सुनाई देने लगे हैं।
राष्ट्रहित.. देश निर्माण या सरोकार या जिम्मेदारीयाँ या मिशन उनके वैतनिक या कमीशन से उपजे ”वाग्जाल, में खो जाता है।तुलनात्मक रूप में भारतीय लोकतंत्र में अंग्रेजो की देंन वकालत पेशा इस मामले में ज्यादा जिम्मेदार, ज्यादा विजनरी,मिशनरी और प्रतिबद्ध दीखता है।वे अपनी तरह का एक टेस्ट डेवलप करते हैं।बड़े तरीके से शब्दजाल और भावनाओं के आवरण में लपेट कर वामपंथ के जामे में,जिसका भारत या दुनिया में किसी तरह का कोई अस्तित्व न था न है।बेसिकली भारतीय प्रेस-जगत अपने मस्तिष्क को ‘अफीम,लेने की भाँति मजदूर-सर्वहारा टाइप का धोखा देता है।इसे ‘आत्म-भरम,यानी खुद को धोखे में रखकर संतुष्ट रहने,, की बीमारी समझ सकते हैं।
इन समाचारों से लोगो की सम्बद्ता,अभिरुचि..या लाभ-हानि जैसी अवधारणा से कोई लेना-देना नही होता.,
एक गजब का तथ्य देखिये।आपने देखा होगा 1995 के बाद हर चुनाव में मतदान से पहले मत सर्वे दिखाया जाता है।आज तक किसी भी चैनल का सर्वे-रिपोर्ट रिजल्ट के आस-पास भी नही आया।पर हल्ला सुनिये ‘हमारे चैंनलो-अखबारों में एकमात्र।कभी ध्यान दिया है रिजल्ट और सर्वे के बीच के अंतर को??यह अंतर इतना बड़ा होता है कि’सामान्य जन भी यह महसूस कर लेता है वह प्रचार(प्रोपेगण्डा)का हिस्सा था”

राज-वंश,कारपोरल्स घरानो को तरह-तरह की पॉलिसी बनवा कर मोटा आर्थिक लाभ जो करवाता रहा है।उनकी निस्थाये आर्थिक हैं।सारा खेल उस मोटे आर्थिक लाभ के खो जाने का है।कोई देशभक्त इमानदार सरकार उनको मोनोपोली बनाने से रोकेगी।इस लिए मोदी सरकार के शत्रु हो चुके है।पर इस मामले में आप एक चीज पर खुश हो सकते हैं ‘हमारी प्रिंट मीडिया धीरे-धीरे इलेक्ट्रानिक मीडिया से ज्यादा जिम्मेदार, मेच्योर और पेशे के प्रति कमिटेड होती जा रही है।वहीँ इलेक्ट्रानिक मीडिया अपनी ‘शैशव-अवस्था,को पार ही नही करना चाहती।छोटी खबरें,मझोली खबरें और पालिसी को प्रभावित करने वाली खबरें।इतना तो आप समझ ही गए होंगे,केवल छोटी और मझोली खबरे ही दिखाई-चलाई जा सकती हैं,पालिसी और लाभ वाले सब्जेक्ट ऊपर से तय होती हैं।फिर वे खबरे बनाते हैं केवल नकली सेकुलरिज्म के लिए,राजनीति के इर्द- गिर्द,राजनीतिक घरानों के लिए,अपराध के इर्द-गिर्द,सिनेमाई व्यक्तित्व खड़ा करने के लिए।फिल्में हिट कराने के लिए,जनमत के लिए,प्रेशर के लिए,मीडिया पर्सनालिटी,बनाने/तैयार करने के लिए,कारोबारी लाभों के लिए,बाजार चलाने के लिए और सरकारें बनाने-बिगाड़ने के लिए,मठो की सुरक्षा के लिए,मालिकानो के हितो के लिए,विदेशी संरक्षण के लिए अपने कंप्लेक्सेज को बौद्दिकता के जामे में पेश करने के लिए।जो एक हद तक बहुसंख्यक विरोधी या राष्ट्रविरोधी शेप में ढल जाती हैं।विकसित लोकतंत्र की तरह उनमें आपसी प्रतिस्पर्धा की जगह एक मिल-बाँट कर खाओ-चलो वाली स्वार्थी मानसिकता बन चुकी हैं।वे पूरा गिरोह बनाकर चलते हैं।एक ने हुंआ-हुंआ किया तो दूसरे ऑटोमैटिक हुंआ-हुआँ शुरू कर देते हैं।

अब यूरोप या अमेरिकन थीम देखिये।गूगल पर कहीं न कही मिल जाएगा।उनके सर्वे रिपोर्ट और रिजल्ट ‘देख ”स्तब्ध,, रह जाएंगे।1 से 3 का अंतर कई बार यह शून्य भी होता है।ट्रम्प वाला मामला छोड़ दीजिये वह बराक हुसेन ने इन ८ सालो में वामी रुझान की मोनोपोली बनाई थी उसी की दें थी और अब शर्मिन्दा दिख रही है।अमेरिकन/यूरोपियन जन-रुझान उनके खिलाफ है बिक्री और टीआरपी दोनों तेजी से गिर रही है।किसी भी पढ़ने वाले को यह पता होता है सर्वे एक ‘मुकम्मल विज्ञान,, है।लेकिन ‘भारतीय कारपोरल मीडिया के पास तक ‘पहुँचते-पहुँचते,कला में बदल जाता है।वे इसे अपनी पार्टी के लिए ‘माहौल,बनाने या कमाई करने का जरिया बना लेते हैं।…इस मामले में पत्रकारिता से ज्यादा यह राजनीतिक हथकंडा बन जाता है।
“”(यहकेवल 1 उदाहरण है इससे ज्यादा कुछ नही।)

अब जरा न्यूज ट्रेडर्स के एक उदाहरण को ध्यान से देखे,तो खबरों के पीछे का गेम समझ सकेंगे।”2005 या 6 स्वास्थ्य मंत्रालय के एक ‘निर्देशक -पत्र,को लेकर एक चैंनल ने धीरे से खूब धूम-205 शुरू किया।नमक में ‘आयोडीन,,की आवश्यकता को लेकर.जल्द ही प्लान के अनुसार 15 चैनलों ने कांव-कांव मचा दिया।’ऐसा लगता था जैसे नमक में ‘आयोडीन,न पड़ा तो सब मरे,बिलकुल महामारी खडी होने वाली है।फिर सरकार ने समिति से सुझाव लेकर खुला नमक बेचना रोक दिया,फिर कुछ नजदीकी वंशवादी कारपोरट घ्ररानो को भारत में ‘पैकेट बन्द नमक,, बेचने का एकाधिकार और क्या?सारी दुनियां जानती है…कि नमक के बिना एक भी दिन नही चल सकता भैये..5 लाख करोड़ का कारोबार सिमट कर कुछ लोगों के नाम।आया कुछ समझ में दांडी मार्च…गांधी जी…और कांग्रेस….हे हे हे हे।चैनल वामपंथी था।सर्वहारा क्रान्ति वाला।हवाला का पैसा। ऐसे ही लोहा….लक्कड़,केरोसीन..पेट्रोल,डीजल..कपड़ा…जमीन…गैस…खनिज…कोयला…सिनेमा …. दवाइयां….मशीने….मोटर…. बीज…बिजली...हवा… पानी…. सेना…साफ्टवेयर….ठेका….न्याय…. व्यूरोक्रेसी…….. आतंकी.. आदि-आदि…सब कुछ मीडिया से लिंक है।बस आँख खुली रखिये।यह आपको ही करना होगा।ऐसे ही एक “बहुत बुजुर्ग ख्यातिनाम, सम्पादक से(जो आजकल खुलकर “लाबीबाजों,को बेपर्दा कर रहे हैं।उन्होंने नाम लिखने की अनुमति नही दी )मेरी बात हुई उनका कहना था’नये-नये लड़को को देख कर मन नही माना उमर के चलते-चलते “सच,बोलना बहुत जरूरी लगता है,अब कर्तव्य पूरा कर रहा हूँ,।उनका एक वाक्य यह भी देखिये ”देश की स्वतंत्रता के बाद,इन सालों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-केवल मालिकानो की नौकरियाँ थी…हम वही करते रहे।वह भी”ज्यादा पेइंग,नही थी।बाद में अवसरवादियों ने पूरी पत्रकारिता को कांग्रेसियों और वामपंथियों के सांप की बांबी बना दी थी,।

भारत में ‘समाचारों,, पर कोई “नियंत्रक-नियामक एजेंसी,, नही होती…हां एक कम्प्लेंड एजेंसी प्रेस-आयोग(Press Council) जरूर बनाई गई है जो केवल विवाद की स्थिति में सुनवाई करती है। नख-दन्त हीन सुनवाई।अभिव्यक्ति की स्वत्रंतता के मौलिक अधिकार के तहत खबरों का आर्टपुलेशन-मैनिपुलेशन होता है।
उसका इलाज केवल 83 मुस्लिम देशो या फिर चीन जैसे देश बढ़िया किस्म का “कापाचापी करते,, है…(एक प्रकार का काँटों वाला मोटा बांस जो)बीच में एक तथ्य और भी देखिये।दुनियां भर के मुस्लिम या कम्युनिष्ट गैर-इस्लामिक-गैर कम्युनिष्ट देशों में तो जमहूरियत चाहते हैं किंतु इस्लामिक या कम्युनिष्ट कब्जे वाले देशों में दूसरों को “”अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, तो छोड़िये पूजा-पद्दति की भी स्वतंत्रता देना गंवारा नही।

पांचवे दशक में ये ठहरा असंगठित,अशिक्षित, मुल्क।यहाँ पहले घुसे एजुकेशन में।क्योंकि “वंश, के पास अपनी कोई विचारधारा नही थी।स्वदेशी,गांधीवाद और हिंदुत्व-सनातनत्व भी खत्म करना था सो सोवियत कम्युनिष्ट की मदद से उधारी ले ली।युगों से.जनता में गुरु जी” माने की मास्टर साब, की बनी-बनाई इज़्ज़त थी।घुस गये…वहीं से तैयारी के सहारे मीडिया में।बन गयी छवि बुद्धवादी की…और चप गये देश का कबाड़ करने पर,आदतन…औकातवश.धीरे-धीरे,, जब से नेट का जमाना आया है, सब कुछ फास्ट हो गया है…अब इधर-उधर से जोर-जुगाड़ समाचारों पर विश्लेशन होने लगा।रोज ही ग़लत,और मेंनुपुलेटेड खबरों पर बहस हो रही है…जिन चीजों को लिखने में कई बोतल,कई मुर्गे और भी जाने क्या-क्या…उनकी काट दुनिया भर की रीडरशिप के साथ मिनटों में हाजिर।इहा तो वामी भैया लोग ”बुद्दीजीवी, का तमगा पहने थे,वैसे ऊ केवल हमरे देश में ही कम-बुद्दी-छाप माने जाते थे..विकसित देशों में।(बाकी के सफल और आविशकारी टाइप के आधुनिक देश,यानी कुछ कर-धरने लायक देश थे) ई “भिया, लोग ”लल्लू छाप, ही माने जाते हैं मतलब कि “लो-आइक्यू,।यानी “नान-सीरियस,इनका लिखा पढा कुछ बिकता-बिकाता नही,…अब उहाँ कालेजो,स्कूल निजी ही हैं तो ये न पाठ्यक्रमों में घुस पाते हैं न ही “”लाइब्रेरी खरीद,…एनजीओ वाला चक्क़र भी बिना कुछ किए धरे नही चला सकते।“मीडिया,या कारोबार मे घुसते हैं तो “नौकरी, परफार्मेंस मांगती हैं,वह तो इनकी प्रकृति में ही नही होती है।‘भिया,लोग ग़रीब “मुल्को,को कट्टर-वाद की तरफ भागते हैं।.फिर वहाँ से भगाए जाते हैं…अब भला ना-समझी कोई कितने दिन झेलेगा..?आप-हम और समस्त जगत इन सत्तर सालों में जान ही गये हैं “”साम्यवाद, हमेशा दूसरों के धन पर विकसित होता है न।

अर्न्स्ट हेमिन्ग्वे और. हन्टर.एस.थाम्पसन,.,(USA)मार्क ट्विन(ब्रिटिश)पाल ब्रंटन(ब्रिटिश) पत्रकारिता की परिभाषा सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कहे जा सकते हैं जिन्होंने ”लेखन को समाचारों और जिम्मेदारियों के साथ मनोरनजन की नई भूमि दे दी थी….यह एक नजीर तौर पर खडी हुई।”माट साब,,(बचपन में पढ़ाते थे) तुलना करते हैं और कहते हैं’हमारे लोग खबरों को कम्युनिज्म के’कूडे के साथ,सड़ाते हैं और परसते हैं फिर हमसे कहते हैं खाओ,हमने अच्छा खाते देखा है हम उसे क्यों खाएं।,माट साहब के अनुसार क्रिकेट,पत्रकारिता माडर्न एजूकेशन अंग्रेजो ने एक स्ट्रेटेजी के तहत स्थापित-विकसित किया था….कांग्रेस ने स्वलाभ, में उसी रणनीति को आगे बढ़ाया।आपने डॉन-बोलास(१९२८-१९७६) के प्रोग्राम Teaneck,या New Jersey,अथवा United States of America कभी जरुर देखा होगा…..उनकी स्टाइल के दीवाने आज भी पुराने-बूढ़े बुजुर्ग मिलते हैं….वे बड़े गर्व से कहते हैं उन्होंने ‘वर्तमान अमेरिका,बनाया है।

सारा कारबोनेरो (स्पेन) जेन ब्राउन ,(USA)….डायना शायर (USA,ABC World News Tonight with David Muir, 60 Minutes, Primetime, 20/20)..एल रोकर. ,(USA, Another World, Savage Skies, Christmas in Rockefeller Center, My Life in Food).मरिया मेनोंइनस,(USA, E! News, Tropic Thunder, Extra, ET on MTV)…बिल्स ओ रैले….,(USA, Inside Edition, The O’Reilly Factor, The Rumble in the Air-Conditioned Auditorium: O’Reilly vs. Stewart 2012, Legends & Lies)…कीथ ओलबरमेन,…,(USA,SportsCenter, 30 for 30, MSNBC Live, Football Night in America, Countdown with Keith Olbermann,)… इनीस सेंज(मक्सिको)……एरिन अन्द्र्युज(USA,That’s My Boy, Dancing with the Stars, Entertainment Tonight, Saturday Night Football, Jim Rome Is Burning, )….कैंडिक क्राफर्ड(ब्रिटिश अमेरिकन.Khushiyaan)….कैटी कुरिक (USA,Dateline NBC, 60 Minutes, Macy’s Thanksgiving Day Parade, Today)..रिक सांचेज (क्यूबा) मार्टिन बशीर(ब्रिटिश)……मैट लायर (Tower Heist, Land of the Lost, Dateline NBC, Today, Curious George 2: Follow That Monkey!)..एंडरसन कूपर.(Anderson Cooper 360°, 60 Minutes, Anderson Live, The Mole)..पेटी-ऐन-ब्राउन…क्रिस मैथ्यूज. (USA,Hardball with Chris Matthews, The Chris Matthews Show, Morning Glory, The Tonight Show with Jay Leno)लारा-लोगान (साऊथ अफ्रीका,60 Minutes, 60 Minutes Wednesday, Face the Nation, GMTV)डारा टोरस (USA,Toyota Pro/Celebrity Race, Today, Fox and Friends, Beijing 2008: Games of the XXIX Olympiad) …में क्या समानताएं हैं?यह सब के सब अमेरिका और दुनियां भर के चैनलों में बेस्ट “शो-एंकर-रिपोर्टर,, हैं….विश्व के ऑलटाइम शानदार 100 रिपोर्टर्स/एंकर्स या एनलिष्ट में एक भी नाम भारतीय नहीं है।हां ‘कम्युनिष्ट मालिकानों,,वाला एक चैनल यहां खुद को प्रचारित जरूर करता है की वह बड़ा तुर्रम-खा हैं।लेकिन वर्ल्ड-वाइड डिसाइड पैरामीटर पर वह चैंनल और उसके पत्रकार एक भी मानक पूरा नही करते….बल्कि दुनिया खूब हंसी उड़ाती है।हमारे रिपोर्टर आखिर करते क्या हैं?कभी समय हो तो उनके प्रोग्राम को देखें।

आज के 12 टॉप प्रस्तुतकर्ता की लिष्ट किये गए कार्यक्रमों सहित है।राबर्ट फिस्क(ब्रिटिश )….केट एडी (ब्रिटिश,The Kindness of Strangers, The Legacy of Women in World War) हू शुली (चाइना,Business Times before founding Caijing, a business and finance magazine which she was also editor-in-chief of for 11 years.)बाब वुडवर्ड (USA,Washington Post in 1972. He is currently the associate editor of the Post.) एंडरसन कूपर (USA,his coverage on the war in Iraq and Hurricane Katrina. Since 1993 where he won a Bronze Telly Award for his coverage of famine in Somalia,)लुइस थेरौक्स (ब्रिटिश, nominated for an Emmy Award for his work on TV Nation, as well as having won two BAFTA Awards (nominated three times) and a Royal Television Society Award (nominated twice) forWhen Louis Met… and Weird Weekends.)डायना शायर (अमेरिकन,first female 60 Minutes correspondent )……..शेरीन भान (भारतीय,India Business Hour, The Nation’s Business, Young Turks and Power Turks. She is also the Delhi Bureau Chief..)…………….ग्लेन ग्रीनवाल्ड (USA,columnist for The Guardian salon)……..जॉन स्टीवर्ट (USA,director, producer, writer, actor, comedian, media critic and political satirist.)
…उनके कार्यक्रम…विषय-वस्तु….प्रस्तुति..शोध…और विश्लेषण..बाडी-लैंग्वेज….और वाक्य-विन्यास तथा प्रभाव को केवल देखे नहीं..सोचें और समझे।वह आपको एक बोध पर ले जाते है।

सबसे मजे की बात हमारे पास उनके विरोध के नाम एक आरोप बचता है ‘वेस्टनाइजेशन,नंगापन,अपसंस्कृति
वही चीज हम उनसे चुरातें है,पूरी तरह …..जस की तस।इस मामले में चाइनीज हमसे अच्छे हैं।
रिवर्स प्रोजेक्टसन उनकी विशिष्टता है…आइडिया चीनी अंदाज में।मुस्लिम देशों का तो कहना ही क्या!
अगर आपको पापुलर शो और माडलिंग ही पेश करनी है तो जेन ब्राउन (USA,SportsCenter, American
Ninja Warrior, Inside the NFL,SportsNation,ESPN College Football Thursday) क्या बुरी है।लेकिन भारतीय पत्रकारिता ग्लैमर तो चाहता है,नेम–फेम के साथ रुपैया तो चाहता है पर वह श्रम और डेफ्थ नहीं चाहता।वह पेशागत इमानदारी और प्रतिबद्दता,समर्पण नही अपनाना चाहता।जब मैं कभी “अंजना ओम कश्यप,..या ”निधि कुलपति,अथवा प्रोड्युजिंग टीम के प्रस्तुतियों को देखता हूँ तो तुरंत अधकचरा-पन सामने दिखता है,।न तो पूरी तैयारी न ही गहराई…न ही कोई शोध,न ही जिम्मेदारियों का बोध।आपके पास जब कोई ठोस तर्क नहीं बचता तो आप उन पर नग्नता के आरोप लगाते हैं…जो उनके यहाँ की लाइफ-स्टाइल है.।जबकि जिसे आप नग्नता कहते हैं उससे भी फूहड़ और गंदे तरीके से अपने यहाँ टीआरपी लाभ उठाने को लालायित दीखते हैं।एक से एक अश्लील और भद्दे प्रोग्राम।एसपी सिंह,प्रभु जी सटीक और अन्तरराष्ट्रीय मापदण्डो,प्रतिस्पर्धाओ के अनुरूप चले थे।लेकिन वन्शगामी प्रणवराय,दुआ,पुरी जैसो ने वामियो का एम्पायर बना कर रख दिया।वह भी काम कराने का ठेकेदार बन गया।

गुण-वत्ता अपनाने को किसी भी तरह तैयार नहीं दिखते।तुलना में..रविश से लेकर राजदीप और अभिलाष तक का प्रेजेटेशन प्राय:बचकानी गैर-जिम्मेदाराना,देश-विरोधी गतिविधियों के कार्य-करता हुआ सा लगता है।दुनियां का एक बड़ा हिस्सा ५० वर्षीय पेटी अन ब्राउन और ३७ साला “मरिया मेनोंइनस,दारा टोरस की स्टाइल का दीवाना है।वे खबरों पर काम करते हैं, अपनी एजेंसी को मेच्योर करते हैं, तब जाकर पेश करते है..!!वे कारपोरल जरुर हैं पर किसी वंश और निहित स्वार्थ को केन्द्रित करके नहीं चलते।उनके प्रोफेशनल-इथिक्स हैं।वे उससे इंच भर भी नहीं हटते।हमारे ‘एंकर,या कुछ रिपोर्टर स्टाइल तो उनसे “नकल,मारते हैं क्वालिटी,विजन एवं हार्ड लेबर उनसे नहीं सीखना चाहते..न ही डीप स्टडी के साथ जिम्मेदाराना रवैया।जब हम भारतीय चैनलों को देख रहे होते हैं साफ़ दिखता है उनकी प्रस्तुति एक ‘व्यूरोक्रेट,जैसी होती है,धमकाते या डराते हुए सा।जैसे ब्लैकमेल कर रहे हो या…।
आप ‘रूपर्ड मर्डोक,, की टाइम्स ग्रुप, और स्टार ग्रुप मत सोचिये…वे और कोई काम नही करते….यूरोप या अमेरिकन,आस्ट्रेलियन और अफ्रीकन घराने ‘सेकंड जॉब,.न ही उनके यहां मीडिया ग्रुप के प्रेशर तले अन्य उद्योगों-व्यवसायो को चलाने की परंपरा है।मीडिया या प्रेस के सहारे कोई और धंधा नही चमकाते,बल्कि उनका मुख्य ‘पेशा,, ही यही होता है।उनके यहां यह एक बड़ी ‘इंडस्ट्री,है।इंडस्ट्री तो हमारे यहां भी है पर यहाँ दुसरे कामो का खून मुंह से लग गया है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद १९)का मखौल देखिये। ‘भारतीय मीडिया,उनकी तरह.अपने में स्वतंत्र अस्तित्व नही रखती।वह एक ‘घरानावादी,वंशवादी कारपोरेट प्रोजेक्ट्स में से एक होती है।जिसका काम ‘अन्य उपक्रमों,, के लिए प्रेशर बनाने का होता है।आप सारे ‘मीडिया घरानों, का पता करें…एक-दो पिटे हुओ को छोड़कर सबके अपने अलग ”व्यवसाय, हैं किसी का भी मुख्य काम ‘मीडिया या पत्रकारीय मानदंड नही है।कई राजनीतिक पार्टियों से घोषित-अघोषित आर्थिक हित जुड़े हुए ‘प्रेस-समूह,हैं।वेकार्यकर्ता की तरह उनके लिए काम,एजेंडे,प्रस्तावना,और माहौल तैयार करते है।कीमत क्या होती है.?स्वाभाविक है।उनकी ‘सपोर्टेड पार्टी,,सत्ता में आती है तो वे,भी सत्ता में आते हैं।लोकतंत्र का ‘चौथा खम्भा,गया तेल लेने।अब इसे भी अच्छी तरह समझ लें आजादी के ‘बाद,,सारा खेल ‘घराना केंद्रित,पालिसी और बजट का होता है….थोड़े सरकारी कागजों में बड़े-बड़े खेल होते हैं।वह पालिसियां ‘कोई भी,राष्ट्र के प्रति जिम्मेदार सरकारे न करेंगी।उन फाइलो के अंदर ‘हजारों वर्षों,की पीड़ा छिपी है..उस अथाह दर्द के आगे इस निहित स्वार्थ से भरी मीडिया की औकात ही क्या है?और ग्लैमरस दिख रहे हमारे महान पत्रकार।वे तो टूल्स है,मालिकानों के असल मालिकानों के।कारपोरेट अथवा व्यवसाइयों के।केवल तनखैया..या कैरियरिस्टिक।उन्हें जैसे बजाया जाएगा बजेंगे।कुछ छोटे-मोटे काम करवा के जी लेने वाले,नकली सम्मान की लालसा और कुछ नही होता उन बेचारों के पास।हाँ राजदीप,राहुल कँवल,पुरी,गुप्त की बात अलग है वह तो मालिकानो के रिह्तेदार हैं नौकर नही।लोकतंत्र के चौथेखंबे का इतना घटिया उपयोग किसी भी प्रजातांत्रिक देश में नही दीखता।एक वे ‘छोटे बिजनेस,… का हिस्सा बन जाते हैं,..वे गिरोह का हिस्सा भी होते हैं।वे ‘राजनीतिक कार्यकर्ता,, होते हैं या फिर अवसर की खोज में जुटे महां कालाकार।

भारतीय सिनेमा “”उद्योग, के रूप में बदल गया।टेलीविजन मनोरंजन जगत के विकास दर दुनिया के अन्य बाजारों से आगे हैं।बेईमान होने के बावजूद पब्लिशिंग इंडस्ट्री बड़े कारोबार के रूप में स्थापित हो गयी है…अन्य क्षेत्र मॉडलिंग,विज्ञापन और फैशन खरबो के कारोबार में खड़ा हो गया।परन्तु भारत में”समाचार-उद्योग,, कहने मात्र के लिए ”इंडस्ट्री, है।निश्चित ही भारतीय उप महाद्वीप का बहुत बड़ा मार्केट इसे एक ‘बड़ी इंडस्ट्री,में बदलने की क्षमता रखता है,पर 70 साल पहले की रचना ही ऐसी की गयी थी कि ‘वंश के हित,ही मीडिया घरानों के रूप में स्थापित किये गए थे,उनकी पकड़ इतनी गहरी है कि उसको आजाद कराने के लिए लम्बी प्लानिंग कड़ी मेहनत और इमानदार मनोबल की जरूरत है।तब जाकर चौथा खम्भा मजबूत होकर राष्ट्र-निर्माण के लायक खड़ा हो सकेगा।
उनके आपसी ‘आर्थिक-व्यवसायी हित, आपस में इतने ज्यादा मिक्स हैं कि उससे निकलना लगभग नामुमकिन है।
यही कारण है पैसा चुकाने के बाद भी आज हमे प्रायोजित मैनिपुलेटेड या बाजार छाप।सरकारो पर प्रेशर बनाने वाली खबरें सुननी पड़ती है।जिसमें न बहुसंख्यको की समबद्दता होती है न अभिरुचि न ही उनका हित होता है बल्कि वह एक विशेष स्थित के प्रभाव बढाने के लिए बनाये जाते हैं।अभी तक ‘अधिकतम लोगो की सम्बध्दता वाली घटना और अधिकतम रूचि, समाचार की जगह वंशहित “प्रायोजित घटनाओं को सन्दर्भ,में प्रस्तुति समाचार बना रखा है।घटनाओं को विशेष संदर्भो में,’विशिष्ट आवरण,,विशेष विचारधारा में प्रस्तुत करके जनमत बनाना,,समाचार बन गया है।यानी ‘व्यूज,न्यूज पर भारी है।’भारतीय पत्रकारिता,अभी भी एक घरानावादी या कारपोरल गुलामी अथवा वामपंथी (मानसिक) मगज-मारी में जकड़ी है।यह कह सकते हैं विशुध्द गैरजिम्मेदाराना ‘लाभ-वादी बन्धनों,,से पार नही पा रही।जैसे-जैसे उसे पता लगता जाएगा जनमत बनाना उसके हाथ में नही रह गया।’सरकारें,, वह नही बना-बिगाड़ सकता।उसका काम सूचना देना-और लेना होता है

कुछ साल पहले आए नॉबल् पुरषकृत उपन्यास “फोर्थ एस्टेट,में प्रूव किया गया था कि सेकन्ड वर्ल्ड-वार “टाइम्स, और “स्टार, (यूरोप के दो मीडिया घरानों) की लड़ाई थी,पढ़िए मज़ा आ जाएगा…यह केवल एक ही लेख नही है..बहुत सारे हैं…इनका ‘भडास डाट काम,शुरू हो चुका है।उनके हाथ से उनका :न्यूज़-ट्रेडिंग का बिजनेस,, फिसलता जा रहा है..वे घबरा रहे हैं।असल समस्या है उनका पाला अब दुनिया भर के ऐसे टेलेन्टो से पड़ रहा है जो नि:स्वार्थ ही इस धरती की बेहतरी के लिए अवैतनिक मेंहनत कर रहे है,।ये प्राचीन काल के संतो की तरह है जो लोक-कल्याण की भावना से कुछ लिखते थे और बिना किसी ”हेतू,के जगत को लोकार्पित कर देते थे।अब उनको तो अखरेगा ही ना जो‘तनख़ैया,हैं।उनकी दुकान ‘बेमोल,बंद होने की दिशा में बढ़ रही हैं,उनसे बदलाव बरदाश्त नही हो पा रहा है।क्योंकि वे इतने कट्टर हैं कि “खुद को बदलने के लिए ज़रा भी तैयार नही है..याद रखिए जो दुनियावी परिवर्तन के साथ अपने को नही ढालता वह समाप्त हो जाता है।भारत में हज़ार से भी अधिक बंद हो चुके मैगजीन (पत्र-पत्रिकाएँ) और दूरदर्शन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।.माया,मनोरमा,कादम्बनी,साप्ताहिक हिन्दुस्तान,दिनमान,रविवार,सत्य-कथा,.सन्डे,पाइनियर,स्टेट्समैन,ब्लिटज,नवजीवन,एनआईपी,नेशनल हेरार्ल्ड,आदि-आदि सब अपने समय की आंधी थी कम्युनिज्म की भेंट चढ़ गयी।अगर किसी तरह कोई निकल भी जाता होगा तो जंगल में मोर नाचा जैसा।वह कट्टरता की भेंट चढ़ गये।पूरी मीडिया फिर उसी हाल की तरफ बढ़ रहा है।

जब जनता से नित्य जबाब पाने लगे ।स्वरुप व् प्रकृति खुद बदल जा रही है।।वह अमेरिकन,यूरोपियन मीडिया की तरह प्रतिबद्ध,समर्पित,लोकतांत्रिक जिम्मेदार होता जायेगा।शोशल-मीडिया का बढ़ता दबाव और नित्य नई बढ़ती जबाबदेही भी उसके ”स्थापित घरानावादी मीडिया,,की जड़े हिला रहा।शोशल मीडिया पर उनसे सम्बंधित व्यक्तिगत प्रकरण,दस्तावेज,वीडियो,रिश्ते सब सार्वनिक हो गये।पत्रकारिता का पूर्ण-रुपेण विकेंद्रीकरण हो गया। कुछेक न्यूज-ट्रेडर्स का की पकड़ खत्म,यानी मठाधीशी का द इंड“कार्यकर्ता-पत्रकारों का गिरोह,…भी जन-सामान्य को स्पष्ट हो गया।अब हजारों ग्रुप बनें हैं,हर खबर की बैठे-बैठे चीर-फाड़ हो रही है,शोशल मीडिया के नुकता-चीन खबरों की तह तक पहुच रहें हैंहजारों ग्रुप बनें हैं,हर खबर की बैठे-बैठे चीर-फाड़ हो रही है,शोशल मीडिया के नुकता-चीन खबरों की तह तक पहुच रहें हैं …यह गले की फाँस की तरह है,क्या करें।कई चैनल और आठ-दस विशेष पत्रकार पूरी तरह बेनकाब हो गयेकई चैनल और आठ-दस विशेष पत्रकार पूरी तरह बेनकाब हो गये,शायद वे कांग्रेस सरकारों में दलाली के लिए स्टैब्लिश किये गये थे।उनकी असलियत जनता के सामने आ गयी।गत सत्तर साल का “न्यूज-घोटाला, खुलकर सामने है।अब नया भारत उसके चीर-फाड़ में लगा है।पहले बुद्धिजीवी छवि कमाई और दलाली का ज़रिया था।अब यह गले की फाँस की तरह है,…क्या करें।पहले कमाई और ज़रिया था। आशा रखिये भारत में जल्द ही आपको ईमानदार-पत्रकारिता देखने को मिलेगी।जल्द ही अपने ‘औसत-पने,(Mediocrity), से बाहर नही निकले तो अंग्रेजी के ‘अखबारों और न्यूज चैनलों वाले,हश्र को प्राप्त होने लगेंगे….और सारी बौद्दिकता धरी रह जायेगी।छोटे-छोटे स्थानीय भाषाई,अखबार,पोर्टल और चैनल वहां पहुंचा देंगे जिनके लायक ”वे, हो।अगर वे पेशेवराना ढंग से केवल अपनी “नौकरी, करते और “बेस्ट परफार्मेंस,देते तो आज उन्हे कोई समस्या ना आती।वे हर छोटी-बड़ी खबर में अपना “व्यू,डाल सालों तक देश-समाज को कंफ्यूज करते रहें हैं…देश दुनियाँ का चाहे जो हो उनकी “दुकान,तो चमक जाती थी।ऊपर से मोदिया घास भी नही डालता,उसने राष्ट्र जो जीया है।वह प्रचारक रहा है। भारत का भविष्य उज्जवल है।

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