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समय मांगनेवाली पोस्ट । दो विडियो हैं और इसके बाद आप सोचेंगे भी । सेव कर के शांति से पढ़िये , तब तक के लिए शेयर कीजिये, दूसरों का भी फायदा हो ।

आज मित्र Ram Shankar जी ने जावेद अहमद घमिदी साहब के इस विडियो पर tag किया। बहुत ही अच्छा विडियो है, काफी कुछ समझ आता है ।

जावेद अहमद घमिदी साहब जाने माने विद्वान हैं लेकिन मैंने यह विडियो शायद डेढ़ साल पहले ताजा ताजा देखा था तो उनकी वेब साइट http://javedahmadghamidi.com/ छान मारी थी कि क्या काउंटर नैरेटिव बता रहे हैं । कुछ सीधा हाथ नहीं आया, लेकिन यह कहना जरूरी है कि मैं मुफ्त इंग्लिश कंटेट ढूंढ रहा था । अगर उर्दू में कुछ है तो मेरे समझ में आने से रहा। अगर कोई गैर मुस्लिम उर्दूदां हैं तो कष्ट कर देखें ।


अपने इस विडियो में घमिदी साहब 0:25 से शुरू हो कर 1:56 तक क्या बताते हैं यह बहुत ही ध्यान से सुनिए । मदरसों में क्या कंपलसरी पढ़ाया जाता है ये बहुत स्पष्टता से बता रहे हैं । फसाद की जड़ यही है ।

लेकिन हम इस बात को भूल रहे हैं कि इस्लाम कैसे फैला और आज भी उसका प्रमुख USP क्या है जो विश्व के लिए उपद्रव साबित हो रहा है । वो USP है समाज के उस तबके का आवाहन कि उठो और अपने से जो सम्पन्न हैं उनको लूटो, क्योंकि उनका धन तुम्हारे शोषण से आया है, वो तुम्हारा ही है । लूटना कोई पाप नहीं, वो लूट नहीं, हक़ है । (कम्युनिस्टों का कहना भी यही है, इसीलिए मैं कम्यूनिज़्म को "नास्तिकिस्लाम" के नाम से पुकारता हूँ) । मदीना जाने के बाद सा'लीक लोग और घिफर कबीले से क्या बाते हुई और उन्हें कैसे जोड़ा गया और इस्लाम कैसे फैला यह आप को Hamed Abdel Samad साहब के इस यू ट्यूब विडियो में मिलेगा, अरबी है लेकिन इंग्लिश सब टाइटल हैं । फतह मक्का का अहम सबक हम समझते ही नहीं जब की इस्लामी विद्वान खुलकर समझाते हैं ।


आज भी इस्लाम का यह USP बरकरार है । इसके साथ साथ और काफी बातें समय के साथ साथ जोड़ी गयी हैं क्योंकि आप जानते हैं कि वही चाय अगर बार बार उबाली जाएगी तो स्वाद बिगड़ेगा इसलिए नए नए नैरेटिव जोड़े जाते हैं लेकिन मूल नैरेटिव बरकरार है । भारत में तो वही है, पाकिस्तान और बांगलादेश चूंकि स्वतंत्र देश बन गए हैं इसलिए थोड़ा मसाला अलग से डाला जाता है । बाकी भारत में तो ईमान का क्या इनाम, बाभन की बेटी, ठाकुर की जमीन और बनिए की दुकान ।

अफसोस यह है कि यही तीनों सेकुलरी, राजनीति और कालेधन के मैनेजमेंट के लिए अमूमन इनके साथ हो लिए हैं ।

घमिदी साहब सुलझे हुए शख्स हैं, लेकिन इस्लाम उनसे ज्यादा उलझी हुई बात है । जब मुसलमान उनके जैसों की सुनेंगे और मानेंगे तब ही कुछ होगा, बाकी फिलहाल तो जो है सो हईये ही है ।

और मुसलमान तब ही उनकी सुनेगा जब उसके पास कोई और विकल्प नहीं होगा, वो गुंडागर्दी कर नहीं पाएगा या गुंडागर्दी से बाज आयेगा। ज़कात जैसे ही इन्कम टैक्स देने को भी मजबूर हो जाएगा । काले धंधे कर नहीं पाएगा या काले धंधेवालों को रहबर या रहनुमा मानना बंद करेगा, उन्हें इज्जत देना छोड़ देगा।

मानों बीहड़ का डाकू जब पारिवारिक जिंदगी बसाना चाहता है या पुलिस से परेशान होता है तब जान बचाने के लिए आत्म समर्पण की शर्तें रखता है । यही हमें समझना है कि मुसलमान के लिए यह परिस्थिति का निर्माण हमारा कर्तव्य है ताकि शांति आए । हमारे लिए ही नहीं, हमारी अगली पीढ़ियों के लिए भी ।

बहरहाल घमिदी साहब जैसे संभ्रांत और सुलझे हुए व्यक्तियों के लिए मुझे बहुत हमदर्दी रहती है । चोर की माँ को भी बेटे को सजा होती है तो दर्द होता ही होगा। घमिदी साहब तथा उनके जैसे लोगों की मेरी नजर में यही पहचान है who are defending the indefensible. छोड़ना मुमकिन नहीं है । बच्चों की खातिर जुल्मी पति और बदमाश ससुरालवालों का कहर खामोशी से सहते औरतों को कौन नहीं जानता ?

आज इस विडियो की याद दिलाने के लिए Ram Shankar जी का आभारी हूँ ।

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