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जो आदमी रिजर्वेशन की टिकट से लंबी यात्रा करता है वह जाहीर सी बात है अपने शरीर और स्वास्थ्य के प्रति काफी सजग है। स्वस्थ शरीर के लिये नींद और अच्छा भोजन महत्वपूर्ण है। भारतीय रेलवे के कैन्टीन में या फिर स्टेशनों पर खाना और नाश्ता बेचने वालों ने खाना नाश्ता बेचकर पैसा तो बहुत कमाया पर लगता है कभी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया। हालात यह है कि लोगों ने लोकल खाने पीने का सामान बेचने वालों से कुछ खरीद कर खाना लगभग बंद कर दिया है। कारण एकदम घटीया क्वालिटी।रेल्वे के खुद के कैन्टीन की हालत थोड़ी बेहतर है। पर फिर भी खाना एकदम रद्दी। चार दिन लगातार खा लो तो महीना भर इंसान बिमार हो जाये।

जब की होना यह चाहीये था कि अब तक भारतीय जनता को रेलवे के खाने की आदत पड़ जानी चाहीये थी। लोग घर से लंबी यात्रा के लिये बिना खाने का सामान लिये चढना चाहीये था। लेकिन अफसोस घटीया गुणवत्ता की वजह से लोग बहुत ज्यादा मजबूरी होने पर ही रेलवे का खाना खाते हैं। अगर रेल मंत्रालय इसपर ध्यान दे तो रेलवे की आय में एक बहुत बड़ी वृद्धि हो सकती है। साथ ही लोकल समोसे और अन्य खाद्य सामग्री वालों को भी समझना चाहीये कि जिन ग्राहकों की वजह से सालों से उनका परिवार पल रहा है उनकी सेहत का खयाल रखें। दो पैसा मंहगा बेचें पर क्वालिटी दें। अन्यथा जल्द ही उनके बेरोजगार होने का समय आ रहा है।इस मानसिकता को त्यागें की यह कौन से रोज के ग्राहक हैं।

आज जबलपुर पहूँचते ही एक आदमी ने बहुत से पर्चे बाँटे और निकल गया। मैंने देखा उसमें एक शारदा होटल का विज्ञापन था जिसमें उसने अलग अलग खाने की थाली के रेट लिखे थे। भुख तो लगी ही थी,रेलवे की पैन्ट्री से खाना मंगवाने ही वाला था फिर सोचा यह तो बकबास खाना देंगे ही क्यूँ ना इस होटल का रिस्क लिया जाये। मैंने खाना ऑर्डर कर दिया। रेलवे के रेट से 40 रूपये मंहगा था पर खाना बहुत ही स्वादिष्ट था। अब मैं जब भी वहाँ से गुजरा करूँगा वहीं से खाना मँगवाया करूँगा। भारतीय रेलवे ने मेरा जैसे एक घुमक्कड़ ग्राहक खो दिया। और आगे भी यही हालत रही तो यह प्राइवेट हॉटेल्स वाले सारे ग्राहक ले उड़ेंगे।
बेहतर क्वालिटी दिजीये, बहुत स्कोप है। वरना धंधा करने वाले मौके के तलाश में ही बैठे हैं, किसी घमंड में ना रहें की कोई क्या कर लेगा। उसी तरह किसी 'सेठ' जी को भी घमंड में नहीं रहना चाहीये, यहाँ हर कोई सेठ बनने को तैयार बैठा है।


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