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धैर्य से अंत तक पढ़ने की बिनती है । शेयर करने की भी बिनती है ।


युद्ध में सैनिक मारे जाते हैं ।
मरनेवाला हर सैनिक,
किसी माँ का बेटा होता है,
किसी बहन का भाई होता है,
किसी युवती का प्रेम होता है,
किसी महिला का पति होता है,
किसी बेटी का बाप होता है ।

उसके मरने से बूढ़ी माँ का हाल बेहाल हो जाता है, बहन भाई के लिए आँसू बहाती है, युवती उसकी याद में तड़प कर रह जाती है, पत्नी और बेटी बेबस अनाथ हो जाते हैं समाज से ठोकरें खाने, शोषण होने ।

यह सब युद्ध के कारण होता है जो हमारे बेटे, भाई, प्रेम, पति, पिता को हम से असमय छीन लेते हैं । युद्ध बुरा होता है, मुझे घृणा होती है ऐसे युद्ध से जो मेरे प्रिय व्यक्ति को काल के गाल में भेज दें, मुझे बेबसी और दुख की जिंदगी जीने पर मजबूर करें ।

युद्ध बुरा होता है, मुझे घृणा होती है युद्ध से ।

क्यों हम शांति से रह नहीं सकते ? लड़ना क्या जरूरी है ? अगर समर्पण से हमारे प्रियजन सुरक्षित रहें, हमारे बेटे, भाई, प्रेम, पति, पिता की जान बचे, तो समर्पण क्या बुरा है ? किसके लिए लड़ रहे हैं हम, क्या मिलता है लड़ने से ? कोई नहीं आता युद्ध के बाद खबर पूछने, तो उनके लिए क्यों हमारे लोग अपनी जानें गंवा दें ?

क्यों न शांति की आरती करें ? क्या हमारे धर्म में शांति का संदेश नहीं है ? कैसे होगा अगर हमारे देवी देवता सब शस्त्र लिए हैं, ऐसा धर्म क्या शांति लाएगा ? ऐसे धर्म में क्या हमारे बेटे, पति पिता सुरक्षित होंगे ?

मुझे घृणा है युद्ध से और हर उस चीज से जो युद्ध के लिए उद्युक्त करती हो । मैं शांति की पुजारन हूँ, शांति ही मेरे घर को सुरक्षित रख सकती है ।

युद्ध की सीख देनेवाला यह धर्म मेरे घर परिवार को कभी सुरक्षित नहीं रखेगा । एक स्त्री, जो माँ है, जो बहन है, जो प्रेमिका है, जो पत्नी है, जो बेटी है, कभी भी ऐसे धर्म से खुश नहीं रह सकती जो युद्ध करने की सीख देता है ।

मुझे घृणा है युद्ध से और हर उस चीज से जो युद्ध के लिए उद्युक्त करती हो । मैं शांति की पुजारन हूँ, शांति ही मेरे घर को सुरक्षित रख सकती है । शांति मेरा मौलिक अधिकार है, हमें उसने शांति से जीने के लिए बनाया है, युद्ध से ध्वस्त होने के लिए नहीं ।

धिक्कार है ऐसे धर्म को जो युद्ध करने को सिखाता है । ऐसे देवताओं के मंदिर में जाते ही लगाने लगता है कि अब अपनी बलि मांगी जाएगी । वहाँ से भाग जाने का मन करता है । मैं नहीं जाती ऐसे मंदिरों में । न खुद जाऊँगी न अपने बच्चों को जाने दूँगी । हमें अमन से रहना है सब के साथ ।
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कैसे लगा ? पता है, मेरी वाल पर जरा अजीब लगा होगा । लेकिन वामपंथी प्रोपगंडा बिलकुल ऐसे ही होता है । अगर आप ने ध्यान दिया होगा तो देखे होंगे कि यह महिलाओं को बड़े ज़हीन अंदाज से टार्गेट करता है । अब समझे होंगे कि सेना को सही लोग क्यों नहीं मिल रहे हैं जब कि वह भी एक सही करियर है ।

वीरमाता ही वीरपुत्र बनाती है । अगर स्त्री को इसी तरह मोम बनाया जाएगा तो क्या होगा यह हम देख ही रहे हैं । फिर आगे चलकर शांति के लिए आत्मसमर्पण की घुट्टी पिलाई जाती है । यह भी दिमाग में हल्के से घुसाया जाता है कि भगवा भड़काता है, हरा ठंडक पहुंचाता है ।

अब जरा ठंडे दिमाग से सोचिए, इसी तरह से सोचनेवाली कितनी महिलाओं से आज तक मिले हैं आप ? बस यही आशा करता हूँ कि इसमें आप की माँ बहन प्रियतमा पत्नी बेटी सामील नहीं होंगे ।

जय हिन्द ! कुछ कहना है ?

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