झूठा वादा
श्रृंगार रस की एक कविता
झुठा वादा
कल ख्वाब में मिलनें का तुमसे
झुठा ही वादा चाहूँगा
एक नईं सोच एक नईं उमंग
एक नईं जिन्दगी चाहूँगा
सारा नीला अंबर तेरा
मैं सिर्फ चाँदनीं चाहूँगा
पहर दोपहर सब तेरे
बस तुमसे दो पल चाहूँगा
धरा तेरी सब वृझ तेरे
पलकों की छाँव मै चाहूँगा
सभी रत्न माणिक तेरे
सब आँसू तेरे चाहूँगा
खुशियाँ न्यौछावर कर तुझ पर
सब ग.म मैं तेरे चाहूँगा
कल ख्वाब में मिलनें का तुमसे
झुठा ही वादा चाहूँगा
जहां सारा देकर तुमको
बस आलिंगन मैं चाहूँगा
खुशियाँ अपनी देकर तुमको
लब तेरे छुना चाहूँगा
कल ख्वाब में मिलनें का तुमसे
झुठा ही वादा चाहूँगा !
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