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" दे दी ' बरबादी 'मुझे खड्ग बिना ढाल । साबरमती के सन्त (?) तेरी नहीं मिली मिसाल! !"
" देशभक्त जनता को समर्पित ,गाँधीवादी तर्कसंगत जबाब दें ।"
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विशेष निवेदन ."सभी मित्र अवश्य पढ़ें , like या dislike दें " ...
आज की पोस्ट अत्यधिक गंभीर है । 20वीं शताब्दी के
स्वातंत्र्य आन्दोलन का तत्कालीन साहित्य ,समाचार पत्र पत्रिकाओं का स्वतन्त्र अध्ययन करने से परिस्थितिजन्य सभी साक्ष्य "भारत - विभाजन " में गांघी जी की भूमिका को संदिग्ध बना रहे हैं और कुछ अनुत्तरित प्रश्नों को जन्म दे रहे हैं । जिनका उत्तर खोजने के प्रयास के परिणाम स्वरुप देश के अप्राकृतिक विभाजन में गांधी की भूमिका विशेष उत्तरदायी रही है । वैसे तो इसके तर्कसंगत विश्लेषण के लिए एक वृहद् ग्रन्थ की आवश्यकता है तथापि कुछ प्रमुख विन्दुओं का यहाँ उल्लेख किया जा रहा ...
1.. गांधी जी के अफ्रीका से वापसी के पहले मुस्लिम लीग की
भारत के कुछ भूखंडों के स्वयत्तता की ही मांग थी ,पाकिस्तान के
लिए नहीं थी ।

2.. गान्धी के पहले कांग्रेसका नेतृत्व लोकमान्य तिलक के
के हाथ में था ,तब तक मोहम्मद अली जिन्ना प्रखर राष्ट्
वादी रहे ,उन्होंने ने मजहब के आधार पर भारत के
विभाजन का पूरी ताकत से विरोध किया ,किन्तु तिलक की
मृत्यु के पश्चात् तुर्की में खलीफा के शासन के लिए भारत
में 'ख़िलाफ़त आन्दोलन ' के गान्धी द्वारा एक इस्लामी
राज्य के समर्थन कर दिये जाने के वाद जिन्ना ने गान्धी
के नेतृत्व से चिढ़कर कांग्रेस से त्यागपत्र देकर मुस्लिम लीग
का दामन थाम लिया और नेतृत्व विहीन लीग को जिन्ना
जैसा सबल नेता मिल जाने से मुस्लिम लीग अत्यधिक
आक्रामक हो गई और उसने पूरे देश में हिंदुओं का
कत्लेआम शुरू कर दिया ।केवल केरल में लगभग एक
लाख हिन्दू उजाड़ दिए गए । 10 हजार हिन्दू महिलाओं
के साथ अमानुषिक वलात्कार किया गया ,50 हजार
हिंदुओंको बल पूर्वक मुसलमान बनाया गया । तत्कालीन
कांग्रेस नेता मैडम ऐनी बीसेंट ने मौके पर जाकर उस
उत्पीड़न और अत्याचार का वर्णन किया है ।उसको पढ़कर
किसी साधरण मनुष्य का ह्रदय कांप उठे गा । किन्तु
गान्धी जी का सन्त ह्रदय अकम्पित रहा । उनकी मौन
स्वीकृति से यह "मोपला विद्रोह "के नाम से कुख्यात नरमेध
चलता रहा उन्होंने उसका किसी भी स्तर पर विरोध नहीं
किया । अधिक निंदा होने पर ऐतिहासिक वक्तव्य जारी
कियाकि "यह तो सब मुसलमानों के मजहब के अनुकूल है ।"
अर्थात् हिंदुओं का उत्पीड़न ,हिन्दू महिलाओं का सामूहिक
वलात्कार ,उनका धर्मान्तरण मुसलमानों का धार्मिक कार्य
है ।इसमें मैं हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।
कांग्रेस के नेता गान्धी जी की इस समर्पण कारी
प्रतिक्रिया से मुस्लिम लीग और अधिक उग्र हो गई और
उसने जिन्ना के नेतृत्व में सीधे अलग मुस्लिम देश की मांग
शुरू कर दी । स्वयत्तता की मांग विभाजन में बदल गई । इसकी
अंतिम परिणति भारत विभाजन में हुई ।
निरपेक्ष विश्लेषण करें तो भारत विभाजन की नींव
में गान्धी जी की भूमिका अधिक है । प्रश्न यह है कि उन्होंने
खिलाफत आन्दोलन का समर्थन क्यों किया ? मोपला
विद्रोह ,जिसमे एक लाख हिंदुओं को अमानुषिक ढंग से
उजाड़ दिया गया , का गांधीजी ने किस नैतिकता के
आधार पर समर्थन किया ?

3.. मोपला विद्रोह के वाद गांधी जी ने घोषणा की कि मैं जीवित रहते देश का विभाजन
ैं नहीं होने दूँगा । "पाकिस्तान मेरी लाश पर बनेगा"
इससे उन्होंने गैर मुस्लिमों का विश्वाश पुनः अर्जित कर लिया
और उनके इस अभिनय में उनके "संत वेश ने महती भूमिका ''
का निर्वाह किया । हजारों लाखों वर्ष से सन्त वेश के प्रति
भारतीय जनता की शृद्धा का उन्होंने मुस्लिम लीग और
अंग्रेजो के सहयोग से बुरी तरह शोषण किया और कांगेस के
नेतृत्व का अपहरण करके उसकी राष्ट्र् वाद की मूल धारा को
ख़त्म करके उसे सेकुलर वादी अर्थात् इस्लाम वादी बना दिया ।
और यहीँ से भारत की बरबादी की आधार शिला तैयार हो गयी
राष्ट्रवाद का विरोध ,और सेकुलर वाद के समर्थन से इस्लाम
वादी ताकतें और अधिक उग्र हो गयीं इसके पीछे गान्धी का देश
हित में क्या सोच था ?

4..गांधी जी ने सैकड़ों बार कसम खाकर घोषणा की कि मेरे
जीवित रहते पाकिस्तान नहीं बने गा । और उन्होंने ने बिना
किसी प्रतिरोध के जिन्ना और माउंट बेटन द्वारा तैयार भारत
विभाजन केप्रस्ताव को कांग्रेस और भारत की जनता को
विश्वास में लिए बिना स्वीकार कर लिया । इसके लिए कोई
भी जनमत संग्रह भी नहीं कराया गया ? हमारे पूर्वजों
के भारत की अखण्डता के लिए किये गए हजारों वर्षों के
वलिदानों को गांधीजी ने मात्र कुछ घण्टो में मिट्टी में मिला दिया
और पाकिस्तान के निर्माता बन गए ।
यदि जनमत संग्रह कराया गया होता, जोकि किसी
देश के विभाजन के लिए अनिवार्य है, तो पाकिस्तान किसी
भी हालात में बन ही नहीं पाता ,क्योंकि उस समय की 90
प्रतिशत जनता भारत विभाजन के खिलाफ थी ।
गांधी जी ने जनमत संग्रह क्यों नहीं होने दिया ?

5... गांधी जी अखण्ड भारत में जन्म लिए थे ,उन्होने भारत को
विभाजित करके पाकिस्तान का निर्माण किया ।अतः वह
राष्ट्रपिता पाकिस्तान के सिद्ध होते हैं । भारत का निर्माण
नहीं किया है । अतः वह भारत के राष्ट्रपिता नहीं कहे जा
सकते । गान्धी जी को भारत का राष्ट्रपिता संबोधित करना
भारत ,भारत की अखण्डता के लिए करोड़ों शहीदों के
वलिदानों ,भारत की सम्पूर्ण देशभक्त जनता का अपमान
और उपहास तथा जले पर नमक छिड़कने जैसा है ।
अतः प्रश्न है कि गान्धी जी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाये ?
आज की पोस्ट इसी शोधपूर्ण विचार भूमि पर
आधारित है......

" गान्धी ने विकसित किया ,दर्शन एक अनूप ।
जहाँ झूठ को सच कहें ,सघन छाँव को धूप ।।
सघन छाँव को धूप , अहिंसा है मजबूरी ।
जर -जोरू का हरण , कहें सद्भाव सबूरी ।।
सेकुलर 'लीगी ' मिले , चलाई ऐसी 'आन्धी' ।
राष्ट्र् - विभाजक रहे ,जोकि वह पूजित गान्धी।।"

"सेकुलरवादी सन्त जी , ऐसा किये कमाल ।
विना खड्ग घायल किये ,भारत को बेहाल ।।
भारत को बेहाल , उसे विकलांग किये हैं ।
' उभय भुजायें' 'छिन्न 'भाल' को 'घाव' दिये हैं ।।
रहे पाक के पिता , देश को दी बरबादी ।
राष्ट्रपिता पर कहें , 'हमारे' सेकुलरवादी??"

"खण्डित होगा देश ना ,जब तक 'मुझमेँ जान' ।
गान्धी थे घोषित किये , साक्षी सकल जहान।।
साक्षी सकल जहान , शपथ सौ बार लिये वे ।
किन्तु विना प्रतिरोध , देश को बाँट दिये वे ।।
कैसे उनको करें , कहो हम महिमामंडित ?
धोखा देकर जोकि , किये भारत को खण्डित??

" रहे 'खिलाफत' 'सन्त' की , यह थी 'चाल अबूझ' !
हमसे कुछ मतलब नहीं , जिन्ना की थी 'सूझ'।।
जिन्ना की थी सूझ , खिलाफत जंग जिहादी।
गान्धी किये 'सपोर्ट' , ला दिये 'चिर बरबादी' ।।
इससे वह यों चिढ़े , कि जिन्ना 'ढाये आफ़त' ।
टूट गया फिर देश , मूल में रही खिलाफत ।।"


विशेष ........
' लीगी '...मुस्लिम लीग ,स्थापना 1906 में ।
'आन्धी' ... अंग्रेजों और मुस्लिम लीग के साथ मिलीभगत
से सभी सेकुलरवादी बुद्धिभक्षियों ने झूँठ का एक
पक्षीय ऐसा प्रचार किया गया कि भारत - विभाजन
और उसके फलस्वरूप अद्यतन निरन्तर चल रही
भारत की बरबादी के असली अपराधी पूजे जा
रहे हैं ।
'उभय भुजायें '.. भारत माँ की पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के
रूप में दोनों भुजायें ।
'छिन्न '....... काट दी गयीं या कट गईं ।
'भाल' .... भारत के नक़्शे में कश्मीर ।
'घाव '.इस्लामी आतंकवाद ,सेकुलर वाद के रूप मे इस्लामवाद।
'हमारे '.... हमारे भारत राष्ट्र् का ।
' मुझमे जान '..गान्धी ने अनेक अवसरों पर दुहराया कि मेरे जीवित
रहते देश नहीं बंटेगा ,पाकिस्तान मेरी लाशपर बनेगा ।
'खिलाफत '.. इस्लामी शरीयत के अनुरूप खलीफा (इस्लामी
शासक ) का राज । तुर्की में वहाँ के मुस्तफा कमाल
पाशा ने वहाँ के इस्लामी शासक सुल्तान का तख्ता पलट
करके पन्थ निरपेक्ष शासन कायम कर दिया । पर्दा ,दाढ़ी
आदि सभी इसलामी पहिचान समाप्त कर दी । इससे
भारत के मुसलमानों ने मुस्लिम लीग के नेतृत्व में तुर्की में
इस्लामी शासन के लिए अर्थात् "खलीफा के राज " को
पुनः कायम करने के लिए आंदोलन कर दिया इसी
आन्दोलन को 'खिलाफत आन्दोलन' के नाम से जाना
जाता है । जिन्ना ने इसका घोर विरोध किया ,किन्तु गांधी
नहीं माने और वहीँ से भारत के विखण्डन की इस्लामी
प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई जो अभी तक जारी है ।
' सन्त' ... गांधी जी ।
'चाल अबूझ '... ?
'ढाये आफ़त '... जिन्ना ने 'डायरेक्ट एक्शन ' का मुस्लिम
जिहादियों का आह्वान किया ,जिसके परिणाम स्वरुप
करोड़ों हिंदुओं की निर्मम हत्या कर दी गई और गांधी
जी ने खुलकर उसका विरोध नहीं किया उलटे हिंदुओं
को अहिंसा का उपदेश देते रहे ।

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