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भारतीय राजनीति किस दिशा में जा रही है। लोकतंत्र को

मजबूत, भरोसेमंद और संविधान की मंशा के अनुसार परिपक्व बनाने की
जिम्मेदारी जिनके ऊपर है वही सवालों के घेरे में हैं। देश की आजादी के
बाद हर क्षेत्र में तरक्की हुई है, आधुनिकता आयी है, लोगों की सोच बदली
है, सुधार हुये हैं लेकिन राजनीति उतनी ही गर्त में चली गयी है।
जिम्मेदारों ने परिवेश को इतना दूषित कर दिया है कि बाहुबल, अकूत दौलत,
चारित्रिक, मानसिंक गिरावट के बगैर राजनीति में जगह बना पाना संभव नही
लगता। एक इमानदार व्यक्ति जहां सालों की कड़ी मेहनत और निष्ठा के बाद
संतोषजनक जगह नही बना पाता वहीं उपरोक्त संसाधनों के दम पर शार्ट कट
अपनाने वाले कुछ दिनों में ही अपनी जगह बना लेते हैं।

कोई भी कालखण्ड रहा हो बदलाव की उम्मीद हमेशा युवाओं से की जाती है।
भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि युवा इसमें फसना नही चाहते।
वे मामूली तनख्वाह पर काम करके अपना जीवन जी लेते हैं लेकिन राजनीति को
काजल की कोठरी बताकर इसमें जाने से परहेज कर रहे हैं। नाम गिनाने के लिये
कुछ युवा राजनीति में हैं भी तो वे ऐसे तमाम लोगों के कारण धक्के खाते
नजर आ रहे हैं जो राजनीति को अपनी जागीर समझ बैठे हैं।

सेवानिवृत्ति जैसी कोई चीज राजनीति में न होने के कारण महत्वाकाक्षा कुछ
ज्यादा होती है, जीवन के अंतिम क्षण तक लोग सांसद विधायक और मंत्री बने
रहना चाहते हैं। कहते हैं युवा देश है लेकिन राजनीति में युवाओं की
भागीदारी कितनी है। आंकड़े गवाह हैं कि युवाओं को मौका नही दिया जा रहा
है। युवा देश कहते हैं तो युवाओं पर भरोसा करना होगा, उनके आगे नही पीछे
चलकर उनकी सोच और कार्यसंस्कृति पर नजर रखनी होगी, तब हम युवा भारत का
निर्माण कर पायेंगे।

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