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यह कल की घटना है। युवती की किस्मत ठीक थी कि जब तक सोनू विश्वकर्मा बना अमीनुल हक़ अपनी साजिश को पूरी तरह से अंजाम दे पाता, उससे पहले ही वह पुलिस का हत्थे चढ़ गया. मामला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का है. खबर के मुताबिक, शुक्रवार की सुबह एक लड़का, नाबालिग लड़की को भगा कर ले जा रहा था. पुलिस को शक हुआ तो उन्होंने दोनों को रोक लिया. पुलिस ने पूछताछ की तो उसने लड़की को अपनी पत्नी बताया. लेकिन थोड़ी ही देर में उसका झूठ पकड़ा गया. दरअसल गोरखपुर के गुलरिहा थाना क्षेत्र के तरकुलहा गांव का रहने वाला अमीन उल हक, सोनू विश्वकर्मा बनकर एक लड़की से मोबाइल पर बातें करता था. वह चेन्नई में नौकरी करता था और उसने मोबाइल पर ही लड़की को प्रेम की बातों के जरिए फंसाया था. उसने लड़की से चेन्नई चलने को कहा तो लड़की भी राजी हो गई. उसके साथ घर छोड़ कर फरार हो गई. लेकिन गश्त कर रही पुलिस ने दोनों को रोक लिया और पहचान पूछी तो मामला खुल गया. इसके बाद तो लड़की के पैरों तले जमीन खिसक गई।फिलहाल आप इसे ऐसे समझिये देश का कोई शहर और इलाका ऐसा नही है।जहां हिंदू नामो के सहारे अल-तकैय्या करते हुए लव-जिहाद परवान न चढ़ते न पकड़ा जा रहा हो।

लड़की को जब असलियत पता चली तो उसने चप्पल से लड़की की पिटाई करते हुए कहा कि उसके साथ धोखा हुआ है. वहीं पर उसने रोते हुए बताया कि वो सोनू विश्वकर्मा बनकर उससे मोबाइल से बात करता था. जब लड़की की मां आई तो लड़की ने मां को आपबीती सुनाई और मां का पैर पकड़कर रोने लगी. उसने कहा कि लड़के के ऊपर सख्त कारवाई की जाए. लड़की ने कहा कि मै नाबालिग हूं. मेरी उम्र 16 वर्ष है. जबकि युवक की उम्र 22 वर्ष है. लड़का अभी दो दिन पहले ही चेन्नई से घर आया था. प्रभारी निरीक्षक गोपाल त्रिपाठी ने बताया कि लड़की का मेडिकल परीक्षण कराने हेतु आशा ज्‍योति केंद्र भेजा गया है. जबकि युवक के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की कार्रवाई की जा रही है.इस तरह के 20 हजार मामले हर साल पकड़े जा रहे हैं और आप सो रहे है।

इसी प्रकार २०१६ के नवम्बर में पुलिस ने एक ऐसे ही युवक को पकड़ा था इस युवक का नाम वसीम अकरम है। वह फेसबुक पर दक्ष शर्मा के नाम से प्रोफाइल बनाकर हिंदू युवतियों को फंसाता था।फिर उनका शारीरिक शोषण करता था।पुलिस ने अकरम को नजीराबाद से पकड़ा है।वसीम ने पूछताछ में बताया की लव जेहाद के नाम से ये सब कुछ चल रहा है , इससे जुड़े कट्टरपंथी हिंदू लड़कियों को फंसाकर उनसे शादी कर लेते हैं , इसका मुख्य संगठन ढाका में है तथा हिंदुस्तान में इसका मुख्या संगठन केरल में है।इस संगठन का मानना है की अगर एक मुस्लिम युवक एक हिंदू लड़की से शादी करके छः बच्चे पैदा करे तो हिंदुस्तान को इस्लामिक राष्ट्र बनाने में ४० साल लगेंगे और अगर एक मुसलमान दो हिंदू लड़कियों से शादी करके १२ बच्चे पैदा करे तो केवल २४ साल में मुस्लिम भारत पर कब्ज़ा कर लेंगे | वो कहते हैं की हिंदू लड़की से शादी करने से एक तरफ हम हिंदू आबादी को बढ़ने से रोकते हैं तो दूसरी तरफ मुस्लिम आबादी बढाते हैं। अकरम ने बताया की मुल्ला मौलवी के मुस्लिम बोलीवुड सितारों से कहते हैं की वे कमसे कम दो हिंदू लड़कियों से शादी करे जिससे की देश में हिंदू लड़कियों में मुस्लिम लड़कों के प्रति सहानुभूति बने , वो भी सितारों की नक़ल करके मुस्लिम लड़कों के प्रेम जाल में आसानी से फंस जाएं।

केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने बकायदा इस पर सदन में एक रिपोर्ट रखी। उन्होंने लव जिहाद को लेकर चिंता भी जताई। 25 जून 2014 को मुख्यमंत्री चांडी ने विधानसभा में जानकारी दी थी कि 2667 युवतियां 2006 से लेकर अब तक प्रेम विवाह के बाद इस्लाम कबूल कर चुकी हैं। वहीं केरला कैथोलिक बिशप काउंसिल ने इससे पहले 2009 में ये आंकड़ा 4500 बताया था। इसके अलावा एक अन्य संस्था ने कर्नाटक में 30 हजार लड़कियों के लव जिहाद की शिकार होने की बात कही थी। श्री नारायण धर्म परिपालन समिति के महासचिव वेलापल्ली नतेसन ने कहा था कि उनकी संस्था को पाकिस्तान और यूके में भी इसी तरह की कोशिशों की कई शिकायतें परिवारों की तरफ से आई हैं।

अक्टूबर 2009 में तत्कालीन कर्नाटक सरकार ने लव जिहाद को एक गंभीर मुद्दा माना और इसकी CID जांच के आदेश दिए। तत्कालीन डीजीपी जेकब पुनूज ने कहा था जांच में कई मामले आए, लेकिन लड़कियां यही कहती हैं कि वो अपनी मर्जी से इस्लाम कबूल रही हैं। आगे भी जांच जारी रहेगी। यानी लड़कियां अपने मन से किसी दूसरे धर्म को अपनाती हैं या नहीं पर ये पूरा मामला निर्भर करता है।

9 दिसंबर 2009 को केरल हाइकोर्ट के जस्टिस के टी.संकरन ने लव जिहाद के मामले में पकड़े गए दो मुस्लिम युवाओं की जमानत पर सुनवाई करते हुए कहा था कि पुलिस रिपोर्ट इस ओर इशारा कर रही है कि 3 से 4 हजार लड़िकयों के साथ इसी तरह के प्रेम संबंधों के मामले पिछले तीन-चार सालों में आ चुके हैं। उन्होंने ये भी बताया था कि जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाने के भी मामले मिलते हैं। ये भी पाया गया है कि धोखे में रखकर इन लड़कियों से ये संबंध बनाए गए।

टाइम्स ऑफ इंडिया की 26 जुलाई 2010 को प्रकाशित एक खबर में तत्कालीन मुख्यमंत्री वीएस अच्यूतानंदन ने भी इस विषय पर चिंता जताई थी। उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा था कि पॉपूलर फ्रंट ऑफ इंडिया और कैंपस फ्रंट जैसे संगठन दूसरे धर्मों की लड़कियों को फुसलाकर उनसे शादी कर इस्लाम कबूल करवाने की साजिश रच रह हैं। 20 सालों में केरल का इस्लामीकरण करने का प्लान बना रहे हैं।यह तालीबान के अंदाज में कॉलेजों में हमला भी कर सकता है।

दूसरे धर्मों की लड़कियों से शादी करके लव जिहाद के जरिए सांप्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ सकता है। ये भी जानकारियां तत्कालीन मुख्यमंत्री ने दी थी कि बकायदा पैसे देकर लोगों को इस्लाम कबूल करवाया जा रहा है। ये भी पहला मौका था जब केरल में चर्च और विश्व हिंदू परिषद साथ में आए थे क्‍योंकि मुस्लिम आबादी बढ़ाने का ये मकसद हर धर्म के लोगों के धर्म परिवर्तन के जरिए पूरा किया जा रहा था।

सबसे गंभीर बात केरल हाईकोर्ट की तरफ से सामने आई थी। कोर्ट ने कहा था कि हजारों लड़कियों के इस तरह धर्म परिवर्तन की बात सामने आती है, लेकिन ये साबित नहीं हो पा रहा है कि ये ऑर्गेनाइज्ड तरीके से किया गया काम है। ये बात इसीलिए गंभीर है क्‍योंकि इसमें इस जिहाद की ताकत को समझा जा सकता है। हालांकि ज्यादातर कानूनी मामलों में ये बात कमजोर ही पड़ती दिखाई दी क्‍योंकि इसमें ऐसे मामले भी सामने थे, जहां लड़कियों ने सचमुच बिना किसी जोर जबरदस्ती के अपनी पसंद के लड़के से शादी की। ये भी सच है कि दूसरे धर्मों में शादी भारत में बहुत आम बात है, ऐसे में हर मामले को लव जिहाद से नहीं जोड़ा जा सकता है।

ये मुद्दा उत्तर प्रदेश में भी जमकर उठाया गया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से कई ऐसे मामले सामने आने लगे कि लव जिहाद ने उत्तर प्रदेश में भी अपने पैर पसार लिए हैं।

प्रेम विवाह करने वाली युवतियाँ एक बार विचार जरूर करे, सभी धर्म समान हैं यह कहने से पहले विचार कर ले।

(1) जेमिमा मार्सेल गोल्डस्मिथ और इमरान खान – ब्रिटेन के अरबपति सर जेम्स गोल्डस्मिथ की पुत्री (21), पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान (42) के प्रेमजाल में फ़ँसी, उससे 1995 में शादी की, इस्लाम अपनाया (नाम हाइका खान), उर्दू सीखी, पाकिस्तान गई, वहाँ की तहज़ीब के अनुसार ढलने की कोशिश की, दो बच्चे (सुलेमान और कासिम) पैदा किये… नतीजा क्या रहा… तलाक-तलाक-तलाक। अब अपने दो बच्चों के साथ वापस ब्रिटेन। फ़िर वही सवाल – क्या इमरान खान कम पढ़े-लिखे थे? या आधुनिक(?) नहीं थे? जब जेमिमा ने इतना “एडजस्ट” करने की कोशिश की तो क्या इमरान खान थोड़ा “एडजस्ट” नहीं कर सकते थे? (लेकिन “एडजस्ट” करने के लिये संस्कारों की भी आवश्यकता होती है)।

(2) 24 परगना (पश्चिम बंगाल) के निवासी नागेश्वर दास की पुत्री सरस्वती (21) ने 1997 में अपने से उम्र में काफ़ी बड़े मोहम्मद मेराजुद्दीन से निकाह किया, इस्लाम अपनाया (नाम साबरा बेगम)। सिर्फ़ 6 साल का वैवाहिक जीवन और चार बच्चों के बाद मेराजुद्दीन ने उसे मौखिक तलाक दे दिया और अगले ही दिन कोलकाता हाइकोर्ट के तलाकनामे (No. 786/475/2003 दिनांक 2.12.03) को तलाक भी हो गया। अब पाठक खुद ही अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि चार बच्चों के साथ घर से निकाली गई सरस्वती उर्फ़ साबरा बेगम का क्या हुआ होगा, न तो वह अपने पिता के घर जा सकती थी, न ही आत्महत्या कर सकती थी।

अक्सर हिन्दुओं और बाकी विश्व को मूर्ख बनाने के लिये मुस्लिम और सेकुलर विद्वान(?) यह प्रचार करते हैं कि कम पढ़े-लिखे तबके में ही इस प्रकार की तलाक की घटनाएं होती हैं, जबकि हकीकत कुछ और ही है। क्या इमरान खान या नवाब पटौदी कम पढ़े-लिखे हैं? तो फ़िर नवाब पटौदी, रविन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से रिश्ता रखने वाली शर्मिला से शादी करने के लिये इस्लाम छोड़कर, बंगाली क्यों नहीं बन गये? यदि उनके “सुपुत्र”(?) सैफ़ अली खान को अमृता सिंह से इतना ही प्यार था तो सैफ़, पंजाबी क्यों नहीं बन गया? अब इस उम्र में अमृता सिंह को बच्चों सहित बेसहारा छोड़कर करीना कपूर से इश्क की पींगें बढ़ा रहा है, और उसे भी इस्लाम अपनाने पर मजबूर करेगा, लेकिन खुद पंजाबी नहीं बनेगा (यही है असली मानसिकता…)।

शेख अब्दुल्ला और उनके बेटे फ़ारुख अब्दुल्ला दोनों ने अंग्रेज लड़कियों से शादी की, ज़ाहिर है कि उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने के बाद, यदि वाकई ये लोग सेकुलर होते तो खुद ईसाई धर्म अपना लेते और अंग्रेज बन जाते…? और तो और आधुनिक जमाने में पैदा हुए इनके पोते यानी कि जम्मू-कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी एक हिन्दू लड़की “पायल” से शादी की, लेकिन खुद हिन्दू नहीं बने, उसे मुसलमान बनाया, तात्पर्य यह कि “सेकुलरिज़्म” और “इस्लाम” का दूर-दूर तक आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है और जो हमें दिखाया जाता है वह सिर्फ़ ढोंग-ढकोसला है।

जैसे कि गाँधीजी की पुत्री का विवाह एक मुस्लिम से हुआ, सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुत्री का निकाह विदेश सचिव सलमान हैदर के पुत्र से हुआ है, प्रख्यात बंगाली कवि नज़रुल इस्लाम, हुमायूं कबीर (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) ने भी हिन्दू लड़कियों से शादी की, क्या इनमें से कोई भी हिन्दू बना?अज़हरुद्दीन भी अपनी मुस्लिम बीबी नौरीन को चार बच्चे पैदा करके छोड़ चुके और अब संगीता बिजलानी से निकाह कर लिया, उन्हें कोई अफ़सोस नहीं, कोई शिकन नहीं। ऊपर दिये गये उदाहरणों में अपनी बीवियों और बच्चों को छोड़कर दूसरी शादियाँ करने वालों में से कितने लोग अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं? तब इसमें शिक्षा-दीक्षा का कोई रोल कहाँ रहा? यह तो विशुद्ध लव-जेहाद है।

इसीलिये कई बार मुझे लगता है कि सानिया मिर्ज़ा के शोएब के साथ पाकिस्तान जाने पर हायतौबा करने की जरूरत नहीं है, मुझे विश्वास है कि 2-4 बच्चे पैदा करने के बाद “रंगीला रसिया” शोएब मलिक उसे “छोड़” देगा और दुरदुराई हुई सानिया मिर्ज़ा अन्ततः वापस भारत में ही पनाह लेगी, और उस वक्त भी उससे सहानुभूति जताने में नारीवादी और सेकुलर संगठन ही सबसे आगे होंगे।

वहीदा रहमान ने कमलजीत से शादी की, वह मुस्लिम बने, अरुण गोविल के भाई ने तबस्सुम से शादी की, मुस्लिम बने, डॉ ज़ाकिर हुसैन (पूर्व राष्ट्रपति) की लड़की ने एक हिन्दू से शादी की, वह भी मुस्लिम बना, एक अल्पख्यात अभिनेत्री किरण वैराले ने दिलीपकुमार के एक रिश्तेदार से शादी की और गायब हो गई।

प्रख्यात (या कुख्यात) गाँधी-नेहरु परिवार के मुस्लिम इतिहास के बारे में तो सभी जानते हैं। ओपी मथाई की पुस्तक के अनुसार राजीव के जन्म के तुरन्त बाद इन्दिरा और फ़िरोज़ की अनबन हो गई थी और वह दोनों अलग-अलग रहने लगे थे। पुस्तक में इस बात का ज़िक्र है कि संजय (असली नाम संजीव) गाँधी, फ़िरोज़ की सन्तान नहीं थे।

मथाई ने इशारों-इशारों में लिखा है कि मेनका-संजय की शादी तत्कालीन सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहम्मद यूनुस के घर सम्पन्न हुई, तथा संजय गाँधी की मौत के बाद सबसे अधिक फ़ूट-फ़ूटकर रोने वाले मोहम्मद यूनुस ही थे। यहाँ तक कि मोहम्मद यूनुस ने खुद अपनी पुस्तक “Persons, Passions & Politics” में इस बात का जिक्र किया है कि संजय गाँधी का इस्लामिक रिवाजों के मुताबिक खतना किया गया था।

इस कड़ी में सबसे आश्चर्यजनक नाम है भाकपा के वरिष्ठ नेता इन्द्रजीत गुप्त का। मेदिनीपुर से 37 वर्षों तक सांसद रहने वाले कम्युनिस्ट (जो धर्म को अफ़ीम मानते हैं), जिनकी शिक्षा-दीक्षा सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज दिल्ली तथा किंग्स कॉलेज केम्ब्रिज में हुई, 62 वर्ष की आयु में एक मुस्लिम महिला सुरैया से शादी करने के लिये मुसलमान (इफ़्तियार गनी) बन गये।

सुरैया से इन्द्रजीत गुप्त काफ़ी लम्बे समय से प्रेम करते थे, और उन्होंने उसके पति अहमद अली (सामाजिक कार्यकर्ता नफ़ीसा अली के पिता) से उसके तलाक होने तक उसका इन्तज़ार किया। लेकिन इस समर्पणयुक्त प्यार का नतीजा वही रहा जो हमेशा होता है, जी हाँ, “वन-वे-ट्रेफ़िक”। सुरैया तो हिन्दू नहीं बनीं, उलटे धर्म को सतत कोसने वाले एक कम्युनिस्ट इन्द्रजीत गुप्त “इफ़्तियार गनी” जरूर बन गये।

इसी प्रकार अच्छे खासे पढ़े-लिखे अहमद खान (एडवोकेट) ने अपने निकाह के 50 साल बाद अपनी पत्नी “शाहबानो” को 62 वर्ष की उम्र में तलाक दिया, जो 5 बच्चों की माँ थी… यहाँ भी वजह थी उनसे आयु में काफ़ी छोटी 20 वर्षीय लड़की (शायद कम आयु की लड़कियाँ भी एक कमजोरी हैं?)। इस केस ने समूचे भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अच्छी-खासी बहस छेड़ी थी। शाहबानो को गुज़ारा भत्ता देने के लिये सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को राजीव गाँधी ने अपने असाधारण बहुमत के जरिये “वोटबैंक राजनीति” के चलते पलट दिया, मुल्लाओं को वरीयता तथा आरिफ़ मोहम्मद खान जैसे उदारवादी मुस्लिम को दरकिनार किया गया।

तात्पर्य यही कि शिक्षा-दीक्षा या अधिक पढ़े-लिखे होने से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता, शरीयत और कुर-आन इनके लिये सर्वोपरि है, देश-समाज आदि सब बाद में…।

(यदि इतना ही प्यार है तो “हिन्दू” क्यों नहीं बन गये? मैं यह बात इसलिये दोहरा रहा हूं, कि आखिर मुस्लिम बनाने की जिद क्यों? इसके जवाब में तर्क दिया जा सकता है कि हिन्दू कई समाजों-जातियों-उपजातियों में बँटा हुआ है, यदि कोई मुस्लिम हिन्दू बनता है तो उसे किस वर्ण में रखेंगे? हालांकि यह एक बहाना है क्योंकि इस्लाम के कथित विद्वान ज़ाकिर नाइक खुद फ़रमा चुके हैं कि इस्लाम “वन-वे ट्रेफ़िक” है, कोई इसमें आ तो सकता है, लेकिन इसमें से जा नहीं सकता।

लेकिन चलो बहस के लिये मान भी लें, कि जाति-वर्ण के आधार पर आप हिन्दू नहीं बन सकते, लेकिन फ़िर सामने वाली लड़की या लड़के को मुस्लिम बनाने की जिद क्योंकर? क्या दोनो एक ही घर में अपने-अपने धर्म का पालन नहीं कर सकते? मुस्लिम बनना क्यों जरूरी है? और यही बात उनकी नीयत पर शक पैदा करती है)।

एक बात और है कि धर्म परिवर्तन के लिये आसान निशाना हमेशा होते हैं “हिन्दू”, जबकि ईसाईयों के मामले में ऐसा नहीं होता, एक उदाहरण और देखिये।

पश्चिम बंगाल के एक गवर्नर थे ए एल डायस (अगस्त 1971 से नवम्बर 1979), उनकी लड़की लैला डायस, एक लव जेहादी ज़ाहिद अली के प्रेमपाश में फ़ँस गई, लैला डायस ने जाहिद से शादी करने की इच्छा जताई। गवर्नर साहब डायस ने लव जेहादी को राजभवन बुलाकर 16 मई 1974 को उसे इस्लाम छोड़कर ईसाई बनने को राजी कर लिया। यह सारी कार्रवाई तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय की देखरेख में हुई।

ईसाई बनने के तीन सप्ताह बाद लैला डायस की शादी कोलकाता के मिडलटन स्थित सेंट थॉमस चर्च में ईसाई बन चुके जाहिद अली के साथ सम्पन्न हुई। इस उदाहरण का तात्पर्य यह है कि पश्चिमी माहौल में पढ़े-लिखे और उच्च वर्ग से सम्बन्ध रखने वाले डायस साहब भी, एक मुस्लिम लव जेहादी की “नीयत” समझकर उसे ईसाई बनाने पर तुल गये।

लेकिन हिन्दू माँ-बाप अब भी “सहिष्णुता” और “सेकुलरिज़्म” का राग अलापते रहते हैं, और यदि कोई इस “नीयत” की पोल खोलना चाहता है तो उसे “साम्प्रदायिक” कहते हैं। यहाँ तक कि कई लड़कियाँ भी अपनी धोखा खाई हुई सहेलियों से सीखने को तैयार नहीं, हिन्दू लड़के की सौ कमियाँ निकाल लेंगी, लेकिन दो कौड़ी की औकात रखने वाले मुस्लिम जेहादी के बारे में पूछताछ करना उन्हें “साम्प्रदायिकता” लगती है।इस मामले में एक “एंगल” और है, वह है “लम्पट” और बहुविवाह की लालसा रखने वाले हिन्दुओं का… धर्मेन्द्र-हेमामालिनी का उदाहरण तो हमारे सामने है ही कि किस तरह से हेमा से शादी करने के लिये धर्मेन्द्र झूठा शपथ-पत्र दायर करके मुसलमान बने…।

दूसरा केस चन्द्रमोहन (चाँद) और अनुराधा (फ़िज़ा) का है, दोनों प्रेम में इतने अंधे और बहरे हो गये थे कि एक-दूसरे को पाने के लिये इस्लाम स्वीकार कर लिया। ऐसा ही एक और मामला है बंगाल के गायक सुमन चट्टोपाध्याय का… सुमन एक गीतकार-संगीतकार और गायक भी हैं। ये साहब जादवपुर सीट से लोकसभा के लिये भी चुने गये हैं।एक इंटरव्यू में वह खुद स्वीकार कर चुके हैं कि वह कभी एक औरत से संतुष्ट नहीं हो सकते, और उन्हें ढेर सारी औरतें चाहिये। अब एक बांग्लादेशी गायिका सबीना यास्मीन से शादी(?) करने के लिये इन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया है, यह इनकी पाँचवीं शादी है, और अब इनका नाम है सुमन कबीर। आश्चर्य तो इस बात का है कि इस प्रकार के लम्पट किस्म के और इस्लामी शरीयत कानूनों का अपने फ़ायदे के लिये इस्तेमाल करने वाले लोगों को, मुस्लिम भाई बर्दाश्त कैसे कर लेते हैं?

मुझे यकीन है कि, मेरे इस लेख के जवाब में मुझे सुनील दत्त-नरगिस से लेकर रितिक रोशन-सुजैन खान तक के (गिनेचुने) उदाहरण सुनने को मिलेंगे, लेकिन फ़िर भी मेरा सवाल वही रहेगा कि क्या सुनील दत्त या रितिक रोशन ने अपनी पत्नियों को हिन्दू धर्म ग्रहण करवाया? या शाहरुख खान ने गौरी के प्रेम में हिन्दू धर्म अपनाया? नहीं ना? जी हाँ, वही वन-वे-ट्रैफ़िक।सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये कैसा प्रेम है? यदि वाकई “प्रेम” ही है तो यह वन-वे ट्रैफ़िक क्यों है? इसीलिये सभी सेकुलरों, प्यार-मुहब्बत-भाईचारे, धर्म की दीवारों से ऊपर उठने आदि की हवाई-किताबी बातें करने वालों से मेरा सिर्फ़ एक ही सवाल है, “कितनी मुस्लिम लड़कियों (अथवा लड़कों) ने “प्रेम”(?) की खातिर हिन्दू धर्म स्वीकार किया है?” मैं इसका जवाब जानने को बेचैन हूं।

मुझे “कट्टर” और Radical साबित करने और मुझे अपनी गलती स्वीकार करने के लिये कृपया आँकड़े और प्रसिद्ध व्यक्तियों के आचरण द्वारा सिद्ध करें, कि “भाईचारे”(?) की खातिर कितने मुस्लिम लड़के अपनी हिन्दू प्रेमिका की खातिर हिन्दू धर्म में आये?

यदि नहीं, तो हकीकत को पहचानिये और मान लीजिये कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है।अपनी लड़कियों को अच्छे संस्कार दीजिये और अच्छे-बुरे की पहचान करना सिखाईये। सबसे महत्वपूर्ण बात कि यदि लड़की के सच्चे प्रेम में कोई युवक, सनातन धर्म अपनाने को तैयार होता है तो उसका स्वागत खुले दिल से कीजिये।

साभार-मौलिक लेखन व इनपुट-विभिन्न-मित्रो,स्रोतों से हैं।

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