क्या आप अभी भी जज़िया तो नहीं दे रहे?
अच्छा, यह बताइये, जज़िया कैसे दिया लिया जाता था पता है ? लेनेवाले का हाथ ऊपर होता था और देनेवाले को अपमानित करके लेता था । सेठ को खुद आ कर देना पड़ता था, नौकर भेजने से काम नहीं चलता था ।
पैसा वो ताकत है जो अगर :
1 आप साहसिक हैं तो आप का साहस बढ़ाती है ।
2 आप डरपोक हैं तो आप का डर बढ़ाती है ।
आप साहसिक हैं तो पैसे की ताकत से आप अपने शत्रुओं पर अपना डर बढ़ा सकते हैं, ताकि वे आपसे लड़ने से डरे । इसमें पैसा खर्च होता है लेकिन वही खर्च आप को कई गुना कमाई भी बढ़ा देता है ।
आप डरपोक हैं तो आप ने कमाया हुआ पैसा खोने का आप को डर रहता है । अगर कोई ताकतवर आप को धमकी दें तो आप पहले ये आजमाएँगे कि क्या बिना लड़े उस से निपटा जा सकता है ? अगर यह खर्च आप के बस की बात है तो आप कर देंगे । यह खर्च कोई कमाई नहीं करता, उलटा सामनेवाले की हिम्मत बढ़ाता है और उसकी मांगें बढ़ जाती हैं । और एक दिन आप को अपना कैराना छोड़ना पड़ता है ।
जब भी कैराना टाइप करता हूँ, पहला ऑप्शन कायराना आ जाता है । सत्य से मुंह फेरकर उसे ज़बरदस्ती से कैराना करना होता है ।
हिंसक आक्रमण के विरोध में प्रतिहिंसा करना हक़ है, खुद, परिजन और अगले पीड़ियों के प्रति कर्तव्य भी है । अगर ये खुद से नहीं होता तो सहायकों में invest करना चाहिए, आक्रामकों से शांति कितने दिन खरीदी जा सकती है ?
इस्लाम औरों के साथ समादरपूर्ण सहजीवन में नहीं मानता, हमेशा हावी होने में ही मानता है और यह केवल मुसलमानों का इतिहास नहीं, इस्लाम का चरित्र है, यही इस्लाम की सीख भी है । इसी सीख के कारण ही यह मुसलमानों का इतिहास है । खुद कुरान पढ़िये, कोई मुसलमान कितना भी झूठ बोले, इस बात को काट नहीं सकता कि इस्लाम दुनिया पर गालिब (हावी) होने में मानता है और इसे अल्लाह का आदेश मानता है ।
हिन्दू और भारत के अन्य भारतीय धर्मों के व्यापारियों से सीधा सवाल कर रहा हूँ, आप ने इतने सालों में देखा ही होगा कि जिन धंधों में, मंडियों में कभी आप की आवाज बुलंद थी, आज या तो क्षीण हुई है या मिट गई है, बस बांग सुनाई देती है । ऐसी भी गद्दियाँ हैं जहां नाम पुराने हिन्दू मालिक का टंगा हुआ है लेकिन मालिक मुसलमान हैं । यह सत्य है इसे आप भी जानते हैं । बाकी विस्तार से लिखूंगा लेकिन बस एक ही सोचिए, कब तक आप का धन आप को बचाएगा अगर उसे खाया ही जाएगा इनके द्वारा ?
विदेशों में आप सब के लिए जगह नहीं है, और फिर हमारी अपनी भूमी को हम मिलकर नहीं बचाएंगे तो कौन बचाएगा ?
अच्छा, यह बताइये, जज़िया कैसे दिया लिया जाता था पता है ? लेनेवाले का हाथ ऊपर होता था और देनेवाले को अपमानित करके लेता था । सेठ को खुद आ कर देना पड़ता था, नौकर भेजने से काम नहीं चलता था ।
बाकी काफिर की बहन बेटी की सुरक्षितता रहम करम पर ही थी ।