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यह चित्र आप पहचान ही गए होंगे, गलिवर का है । गलिवर की कहानियाँ बचपन में पढ़ी ही होंगी आप ने । जब समुद्र यात्रा में उसका जहाज टूटता है, किसी लकड़ी के सहारे वो तैरता हुआ किनारा पा लेता है । किनारे पर चला आता है और थक कर वहीं सो जाता है । नींद नहीं, यह बेहोशी होती है ।

इस बेहोशी से जागता है तो पाता है कि कसकर जकड़ा गया है । दिखने में तो उसको जकड़नेवाली रस्सियाँ छोटी छोटी लगती हैं लेकिन वे इतनी हैं कि वो उन्हें तोड़ नहीं पाता । कुछ इस कदर जगह जगह से जकड़ा गया है कि हाथ पाँव नहीं हिला सकता करवट बादल नहीं सकता, उसके अपने बाल ही बल बनाकर खूँटों से बांधे गए हैं सो गर्दन हिलाना भी नामुमकिन है ।

वो देखता है कि जैसे वो जाग जाता है, आजूबाजू चहल पहल देखता है । शरीर पर कुछ जीव चलने का एहसास होता है तो जैसे तैसे गर्दन उठाकर देखता है तो सैंकड़ों अंगूठे से भी छोटे लोग उसके शरीर पर और इर्द गिर्द विचरते होते हैं। वे भी ऐसे वैसे नहीं। बिलकुल सैनिक टुकड़ियाँ । कोई ढाल तलवार लिए, कोई भाला तो कोई तीर कमान । गलिवर जो कोशिश करता है उसपर हमला होता है । बाण तो सुइयां होते हैं लेकिन चुभते जरूर है । बदन में सेंकड़ों जगह चुभते शस्त्रों की पीड़ा से वो बेहाल हो जाता है और ठंडा पड जाता है । उसे पूरी तरह वश में लाने के बाद ही उसे कुछ शर्तें समझाई जाती हैं और उन्हें मानने के बाद ही उसे सीमित हालचाल की अनुमति दी जाती है, बंधन जरा से ढीले किए जाते हैं । फिर कुछ दिनों बाद जब उन्हें विश्वास हो जाता है कि अब ये अपना पालतू हुआ है तब उससे काम करवाए जाते हैं । चूंकि इसके पास वहाँ से भागने के लिए कोई जहाज नहीं होता, नैया भी नहीं होती, यह मान लेता है । उनके लिए पड़ोसी देश पर आक्रमण भी करता है । उनके युद्धक पोत खींचकर ले आता है । राजा रानी से शाबासी पता है ।

लेकिन उसके कोई शत्रु भी बन जाते हैं जो उसको मरवाने के चक्कर में रहते हैं । अपने खिलाफ हुए एक षडयंत्र की भनक लगते ही ये जैसे तैसे देश त्याग करता है ।

गलिवर में मुझे भारत का हिन्दू दिखता है । ताकत तो गलिवर की पूरे लिलीपुट राज्य से अधिक थी, लेकिन वो इस कदर बांध दिया गया था कि हिलना मुश्किल था। अपनी मर्जी से कुछ कर नहीं पाता था, यहाँ हाथ हिलाने की कोशिश की तो उँगलियाँ कुछ इस कदर बंधी थी कि हिला ही न सका । बंधन ऐसे कि हिल न पाये लेकिन शरीर जब अलग अलग मांगें करें और आप हिल न पाओ तो अपने आप आदमी सरेंडर कर देता है ।

गलिवर जब बेहोश था तब उसे जकड़ लिया गया, बेहोशी टूटी तो खुद को बंधा पाया । यहाँ हमें बेहोश रखा गया और नियम के नाम पर ऐसे ऐसे बंधन लादे गए हैं जो हमारा सांस्कृतिक बधियाकरण करने में सहायक हैं । संस्कृति का क्या महत्व है अगर आप ऐसे पूछेंगे तो उत्तर है कि राजनीति की उपधारा संस्कृति की मुख्यधारा से ही निकलती है । संस्कृति वो नदी है जो आप को पोषण देती है । उसी का प्रवाह विष मिश्रित कर दो, हो गया आप का काम । कई परिणाम अपने आप होते रहेंगे जैसे विष अपना धीमा असर दिखाता जाएगा। आपको सांस्कृतिक, मानसिक और आर्थिक dhimmi बना देगा और ऊपर से यही समझाएगा कि यही सही है, अभी जाकर आप सुसंस्कृत प्रजा बन रहे हैं ।

क्या हमारे साथ यही छल कपट हुआ नहीं है ?

यह चित्र तो कृष्ण धवल है लेकिन कथा में सभी व्यक्तिरेखाएँ रंगों में हैं । कपड़े लाल, हरे, नीले, सफ़ेद, सब हैं । बाकी इन सब का हमारे लिए संदर्भ आप समझ ही गए होंगे ।

गलिवर यात्रा को निकला और दुर्घटना के कारण लिलीपुट जा पहुंचा। फिर अवसर देखकर भाग निकला, आजाद हुआ । हमें कहीं भागना नहीं है, यह भूमि हमारी है, आवश्यक निर्णयों से मुंह मोड़ना मुमकिन नहीं ।

कुछ कहना है ? नहीं तो शेयर - कॉपी पेस्ट कर के अन्य गलिवरों को जगाएँ ।

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